रायपुर। एक समय था जब महिलाओं को पुरुषों की तुलना कम आंका जाता था। बात छत्तीसगढ़ की करें तो सघन वन क्षेत्र होने से आदिवासी जनजाति अधिक हैं और अन्य राज्यों की तुलना यहां विकास की डगर की गति धीमी रही है। मगर वर्ष 2000 में मध्यप्रदेश से अलग होने के बाद छत्तीसगढ़ बना उसके बाद धीरे-धीरे यहां की आवोहवा में बदलाव आने की संभावना बढ़ीं और आज 21 वर्ष होने के साथ प्रदेश विकास की राह में अग्रसर हुआ है। अब यहां रोजगार के कई संसाधन भी उपलब्ध हुए हैं। यहां तक की राज्य की महिलाएं भी स्वयं अपने पैरों पर खड़े होने की कवायद कर रहीं हैं।

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मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की महत्वाकांक्षी ‘नरुआ, गरुवा, घुरवा, बारी’ योजना कहीं न कहीं ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को वरदान साबित हुई है। इसके अंतर्गत ग्रामीण इलाके जो वक्त की मार और सरकार की अनदेखी से पिछड़ रहे थे वहां रोजगार के आसार दिखने लगे हैं। ऐसा ही हुआ है तिल्दा विकासखंड के ताराशिव गांव में। यहां इस योजना के अंतर्गत महिला सदस्यों द्वारा केंचुआ खाद बनाया जा रहा है और अभी तक करीब डेढ़ लाख रुपए विक्रय भी किया गया है। वहीं नेपियर घास उगाने का कार्य भी बिहान योजना से संगठित ‘गौमाता स्व-सहायता समूह’ की दस महिलाओं द्वारा किया जा रहा है। महिलाओं का कहना है की वर्मी खाद से अभी तक डेढ़ लाख रुपए की आमदानी हुई है और लगभग पूरा खाद विक्रय होने के बाद करीब साढ़े चार लाख रुपए की आय होना संभावित है।

मिल रहा सरपंच व कृषि विभाग का मार्गदर्शन
ग्राम ताराशिव में छत्तीसगढ़ शासन की महत्वाकांक्षी योजना ‘नरूवा,गरूवा,घुरवा,बारी’ योजना अंतर्गत गौठान का निर्माण किया गया है। इसके तहत पशुओं के उचित रख-रखाव हेतु शेड, कोटना, पानी की टंकी का निर्माण किया गया है। सरपंच, सचिव गौठान समिति अध्यक्ष के सहयोग,कृषि विभाग के मार्गदर्शन से बिहान योजना से संगठित गौमाता स्व – सहायता समूह की दस महिलाओं द्वारा गौठान संचालित किया जा रही है।
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स्व-सहायता समूह बनें रोजगार का जरिया
महिला स्व-सहायता समूहो के माध्यम से यहां विविध गतिविधियों को बढ़ावा दिया गया है। हरे चारे की उपलब्धता के लिये यहां तीन एकड़ भूमि पर चारागाह विकास कर नेपियर घास लगाया गया है। यह घास पशुओं के स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम है और इससे जहां एक और पशुओं में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है वहीं दूसरी और पशुओं में दूध उत्पादन क्षमता भी बढ़ती है। गौठान की अतिरिक्त भूमि को बाड़ी के रूप में विकसित कर विभिन्न प्रकार की सब्जियों तथा अरहर, तिल्ली, हल्दी, अदरक का उत्पादन लिया जा रहा है। एकीकृत कृषि का प्रयास किया जा रहा है। ग्राम पंचायत के सहयोग से पानी की समुचित उपलब्धता हेतु बोर खनन और क्रेडा विभाग के सहयोग से सोलर पंप की व्यवस्था की गई है।

मनरेगा के माध्यम से मिल रहा रोजगार
मनरेगा योजना के माध्यम से गौठान परिसर में बकरी शेड, मुर्गी शेड, मशरूम शेड निर्माण कराया गया। मशरूम उत्पादन भी प्रारंभ किया गया है। पशुपालन विभाग द्वारा दस बकरी, एक बकरा एवं 250 चूजें उपलब्ध कराए गए है, बकरी और मुर्गी पालन से समूह की महिलाओं को अतिरिक्त आय हो रही है।
बिहान द्वारा बकरी,मुर्गी पालन एवं कम लागत में आहार निर्माण पर प्रशिक्षण प्रदान किया गया और अभी तक मुर्गी विक्रय से 70 हजार रूपये, सब्जी विक्रय से 95 हजार रूपये का व्यवसाय किया जा चुका है। इसी तरह महिलाओं द्वारा यहां कैंटीन का संचालन भी किया जा रहा है तथा मशरूम, तिल आदि उत्पादों से विक्रय कर लाभ कमाया जा रहा है।
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