किसान परिवारों पर बढ़ा कर्ज का बोझ, 2018 तक पांच साल में 57% तक बढ़ा भार

टीआरपी डेस्क। किसान परिवारों का औसत बकाया ऋण 2018 में 57.7 प्रतिशत बढ़कर 74,121 रुपये हो गया, जो कि पांच साल पहले 2013 में 47,000 रुपए था। यह बात राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के एक सर्वे के ताजा निष्कर्षों में सामने आई।

मिनिस्ट्री ऑफ प्रोग्राम इंप्लीमेंटेशन एंड स्टैटिस्टिक्स ने 10 सितंबर को इस सर्वे के निष्कर्ष जारी किए। जो ग्रामीण भारत में परिवारों की कृषि परिवारों और भूमि जोत की स्थिति, 2019 पर अधारित हैं। इसमें अनुमान लगाया गया है कि 2012-13 में 6,426 रुपए की तुलना में 2018-19 में ‘भुगतान किए गए खर्च’ दृष्टिकोण के आधार पर विभिन्न स्रोतों से औसत मासिक आय 59 प्रतिशत बढ़कर 10,218 रुपए हो गई। आय में वृद्धि का 50 प्रतिशत से अधिक मासिक वेतन के कारण था, जो 2013 में 2,071 रुपए की तुलना में 2018 में लगभग दोगुना होकर 4,063 हो गया।

बता दें कि भारत में कृषि वर्ष जुलाई से शुरू होता है और अगले जून में समाप्त होता है। सर्वे में जुलाई-दिसंबर 2018 के दौरान 4.67 करोड़ बकाया ऋण वाले कृषि परिवारों की संख्या का भी पता चला, जो 2013 के अनुमान से लगभग एक लाख कम हैं। 2018-19 के दौरान कृषि परिवारों की संख्या 9.30 करोड़ अनुमानित की गई थी।

सर्वे एक कृषि परिवार को कृषि गतिविधियों से उपज मूल्य के रूप में 4,000 रुपए से अधिक प्राप्त करने वाले के रूप में परिभाषित करता है (उदाहरण के लिए खेत की फसलों की खेती, बागवानी फसलों, चारा फसलों, वृक्षारोपण, पशुपालन, मुर्गी पालन, मत्स्य पालन, सुअर पालन, मधुमक्खी पालन, वर्मीकल्चर, रेशम उत्पादन आदि) और बीते 365 दिनों में कृषि में कम से कम एक सदस्य स्वरोजगार में या तो प्रमुख स्थिति में या सहायक स्थिति में है।

जुलाई-दिसंबर 2018 में राष्ट्रीय औसत बकाया ऋण 74,121 रुपए था। यह आंध्र प्रदेश में सबसे अधिक 2.45 लाख रुपए और नागालैंड में सबसे कम 1,750 रुपए था। जिन 28 राज्यों के लिए डेटा उपलब्ध है, उनमें से 11 राज्यों – आंध्र प्रदेश, केरल, पंजाब, हरियाणा, तेलंगाना, कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश – में प्रति परिवार औसत बकाया ऋण राष्ट्रीय औसत से अधिक (2018 में) था।

तीन राज्यों – आंध्र प्रदेश (2.45 लाख रुपए), केरल (2.42 लाख रुपए) और पंजाब (2.02 लाख रुपए) में प्रति कृषि परिवार का औसत बकाया ऋण दो लाख रुपये से अधिक था, जबकि पांच राज्यों – हरियाणा (1.82 लाख रुपए), तेलंगाना (1.52 लाख रुपए), कर्नाटक (1.26 लाख रुपए), राजस्थान (1.13 लाख रुपए) और तमिलनाडु (1.06 लाख रुपए) में यह एक लाख रुपये से अधिक था।

2013 और 2018 के बीच 25 राज्यों में प्रति कृषि परिवार औसत बकाया ऋण 13.52 प्रतिशत से बढ़कर 709 प्रतिशत हो गया है, जबकि तीन राज्यों – तमिलनाडु (-8 प्रतिशत), मणिपुर (-9 प्रतिशत) और अरुणाचल प्रदेश (34 प्रतिशत) – में गिरावट दर्ज की गई।

प्रतिशत के लिहाज से 16 राज्यों में राष्ट्रीय औसत 57.7 प्रतिशत से अधिक वृद्धि देखी गई। इनमें से 10 में 100 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई – मिजोरम (709 प्रतिशत), असम (382 प्रतिशत), त्रिपुरा (378 प्रतिशत) प्रतिशत), सिक्किम (225 प्रतिशत), हिमाचल प्रदेश (206 प्रतिशत), नागालैंड (191 प्रतिशत), जम्मू और कश्मीर (149 प्रतिशत), मध्य प्रदेश (131 प्रतिशत), हरियाणा (131 प्रतिशत) और छत्तीसगढ़ (110.23 प्रतिशत)।

प्रति कृषि परिवार 10,218 रुपए की औसत मासिक आय (‘भुगतान किए गए खर्च’ के दृष्टिकोण के आधार पर) में से 4,063 रुपए मजदूरी से आए, जमीन को पट्टे पर देने से 134 रुपए, फसल उत्पादन से शुद्ध प्राप्ति के रूप में 3,798 रुपए, पशुओं की खेती से 1,582 रुपए और गैर-कृषि व्यवसाय से 641 रुपए आए।

2018-19 में प्रति कृषि परिवार ‘भुगतान किए गए खर्च और लगाए गए खर्च’ पद्धति के आधार पर औसत मासिक आय 8,337 रुपए अनुमानित की गई थी। ऐसे मामलों में जहां किसी खास इनपुट के लिए परिवार द्वारा कोई वास्तविक खर्च नहीं किया गया था (मतलब घरेलू स्टॉक से या मुफ्त संग्रह से उपयोग किया गया इनपुट, उदाहरण के लिए खुद के स्टॉक से बीज, स्वयं और अवैतनिक पारिवारिक श्रम, स्वामित्व वाले पशु और मशीन श्रम आदि), वहां सर्वेक्षण में ‘लगाए गए खर्च’ की सूचना दी गई है।

प्रति कृषि परिवार 8,337 रुपए की औसत मासिक आय (‘भुगतान किए गए खर्च’ के दृष्टिकोण के आधार पर) में से 4,063 रुपये मजदूरी से आए, जमीन को पट्टे पर देने से 134 रुपए, फसल उत्पादन से 3,058, पशुओं की खेती से 441 रुपए और गैर-कृषि व्यवसाय से 641 रुपए आए।

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