रायपुर। आज के दिन को पूरा देश हिंदी दिवस के रूप में मनाता है। हम हिंदी को एक भाषा का नहीं, बल्कि मां का दर्जा देते हैं। कहा जाता है कि अंग्रेजी व्यापार की भाषा है, उर्दू प्यार की भाषा मगर हिंदी व्यवहार की भाषा है। समाज को जोड़ने का काम हिंदी ने ही किया है। तभी हिंदी से हिंदुस्तान का नाम पड़ा। आज मगर बदलते परिवेश में हिंदी को अंग्रेजी से कम आंका जाने लगा है। हमारे देश के युवा खुद हिंदी बोलने में संकोच करने लगे हैं। जबकि विदेशों में आज भी उनकी मातृभाषा प्रोफेशनल बनी हुई है।

हमारे देश में ज्ञान की परिभाषा है- एकोज्ञानं ज्ञानं, विविधं ज्ञानं विज्ञानम्। जो विश्व का पिता है-सूर्य- वह ‘फादर्स डे’ में सिमट गया। जो गुरु, मोक्ष तक साथ रहता है, वह ‘टीचर’ बनकर, हर साल बदल जाता है। सूचनाओं और जानकारियों को ज्ञान मान लिया। प्रज्ञा पुरुष तो अब पैदा ही नहीं होंगे। परिणाम क्या हुआ- आज किसी का अपमान होने का अर्थ रहा है- ‘उसकी हिन्दी कर दी’।
मगर एक बात और है की हमारे देश मे सिनेमा को ग्रहण करने वालों की संख्या अधिक है। लोग फिल्मों को देखकर उनके जैसा कॉपी करने की कोशिश करते हैं। तो हम आज हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में बताने जा रहे हैं कुछ ऐसी फिल्में जिन्होंने वर्ल्ड लेवल पर हिंदी का मान बढ़ाया है।
हिंदी मीडियम
साल 2017 में आई फिल्म हिंदी मीडियम ने देश की सबसे बड़ी सच्चाई को सामने रखा। फिल्म में दिखाया गया कि कोई भी माता पिता अपने बच्चे को हिंदी मीडियम स्कूल में नहीं पढ़ाना चाहता है और अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ाई उनके लिए कितनी जरुरी है। इस फिल्म में इरफान खान और सबा कमर मुख्य भूमिका में थे।
इंग्लिश विंग्लिश
साल 2012 में आई इस फिल्म में हर भारतीय नारी खुद को देख पा रही थी। ये फिल्म शशी नाम की महिला पर आधारित थी जो अंग्रेजी भाषा को नहीं बोल पाती, जिसकी वजह से उनके अपने ही उसकी इज्जत नहीं करते। फिल्म में शशी का किरदार श्रीदेवी ने निभाया था।
नमस्ते लंदन
साल 2007 में आई नमस्ते लंदन फिल्म ने लोगों के अंदर सोई हुई हिंदी और अपने देश के प्रति सम्मान को जगाने में अहम भूमिका निभाई थी। इस फिल्म के डायलॉग्स इतने वायरल हुए थे कि लोगों की जबान पर चढ़ गए थे। खासतौर पर भारत की सभ्यता को समझाते हुए अक्षय कुमार के डायलॉग बेहद पसंद किया गया था। फिल्म के इस डायलॉग का जादू ऐसा चला था कि सिनेमाघरों में लोग तालियां बजाते नजर आ रहे थे। इस फिल्म में अक्षय कुमार और कटरीना कैफ मुख्य भूमिका में थे।
साथ ही मातृ भाषा में व्यावसायिक शिक्षा की पढ़ाई से प्रेरित होकर भारत में भी हिंदी भाषा में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की शुरुआत की गई थी लेकिन ये प्रयास विफल हो गया। लेकिन आज वो समय दुबारा वापस आया हैं जब हिंदी भाषा में उतरप्रदेश में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कराई जाएगी। सरकार इसके लिए सतत प्रयास कर रही है। जिसका परिणाम है की आज सभी क्षेत्रीय भाषाओं में इंजीनियरिंग की पढ़ाई होगी।
देश का पहला विश्वविद्यालय
विदेशों में मातृ भाषा में व्यावसायिक शिक्षा की पढ़ाई से प्रेरित होकर भारत में भी हिंदी माध्य से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की शुरुआत की गई, भोपाल स्थित अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय ने वर्ष 2016 में यह शुरुआत की। लेकिन यह प्रयास सफल नहीं हुआ। यह देश का पहला विश्वविद्यालय है जिसने केवल हिंदी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की।
90 सीट के लिए केवल 12 छात्रों ने किया था आवेदन
लेकिन राष्ट्रवाद से प्रेरित यह पहल सफल नहीं हो सकी और कई परेशानियों के चलते कोर्स बंद करना पड़ा। इसके बाद इन छात्रों को अन्य संस्थानों में समायोजित किया गया। सिविल, इलेक्ट्रिकल और मेकैनिकल में कुल 90 सीट के लिए आवेदन मांगे गए थे, लेकिन केवल 12 छात्रों ने आवेदन किया था। कम छात्र संख्या के अलावा कोर्स को ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ टेक्निकल एजुकेशन की मंजूरी भी हासिल नहीं थी।
रोजगार पाने के अवसर सीमित
यह धारणा भी बलवती थी कि हिंदी में कोर्स करने पर रोजगार पाने के अवसर सीमित हो सकते हैं। इस मामले में तत्कालीन कुलपति ने कहा था कि- विश्वविद्यालय का लक्ष्य केवल रोजगार सुनिश्चित करना नहीं है, हम चाहतें हैं कि छात्र नौकरी करने की जगह नौकरी प्रदान करे।
इंजीनियरिंग की विषय सामग्री तैयार करने के लिए विश्वविद्यालय ने अनुवादकों की सेवा ली, लेकिन उन्होंने उन्हीं अंग्रेजी पदों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया जिससे मुक्ति पाने की उनसे अपेक्षा थी। ऐसे में विश्वविद्यालय ने अनुवादकों की सेवा लेना बंद कर दिया।
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