डीएमएफ का दोहन : भाजपा के शासनकाल में बेतहाशा दुरूपयोग हुआ DMF का, तब हुए करोडों के निर्माण कार्यों का नहीं हो पा रहा है कोई उपयोग
डीएमएफ का दोहन : भाजपा के शासनकाल में बेतहाशा दुरूपयोग हुआ DMF का, तब हुए करोडों के निर्माण कार्यों का नहीं हो पा रहा है कोई उपयोग

रायपुर। डीएमएफ का कानून मूलतः खनन प्रभावितों के कल्याण के लिए बनाया गया था। लेकिन छत्तीसगढ़ में इसका बेतहाशा दुरुपयोग हुआ है। कोयले सहित अन्य गौण खनिज के खनन से प्रभावित इलाकों में मुलभूत सुविधाओं और लोगों की जरुरत के हिसाब से कार्य करने के लिए DMF की रकम का इस्तेमाल किये जाने का नियम है। मगर सरकार किसी की भी हो इस राशि का इस्तेमाल जिलों में जिस तरह हो रहा है उससे ऐसा लगता है कि अधिकारी अपने आकाओं को खुश करने के लिए ऐसे निर्माण कार्य कर रहे हैं। और यह भी अहसास होता है कि DMF की मूल आत्मा इन्हीं निर्माण कार्यों के ईंट-गारों में दबकर रह गई है। हम आपको ऐसे निर्माण कार्यों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनका आज कोई भी औचित्य नहीं रह गया है। इसकी शुरुआत हम कोरबा जिले से करने जा रहे हैं।

काले हीरे की नगरी कोरबा देशभर के ऐसे जिलों में शुमार है, जहां जिला खनिज न्यास के मद में हर वर्ष अरबों की रकम जमा होती है। कोरबा जिले में ऐसे अनेक निर्माण कार्य हैं जिनका कोई उपयोग ही नहीं हो रहा है। ऐसे ही कार्यों का लेखा-जोखा हम आपको बताने जा रहे हैं जिन्हें सिर्फ कमाई के लिए स्वीकृत कर दिया गया, और जिम्मेदार लोग अपना हिस्सा बटोर कर चले गए।

DMF का कानून लागू होते ही शुरू हुई कहानी

कोरबा जिले में तत्कालीन कलेक्टर पी दयानंद के कार्यकाल में जैसे ही डी एम एफ का कानून लागू करने का आदेश पहुंचा। आनन-फानन में तीन साल का लगभग 600 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करके DMF के लिए गठित समिति से स्वीकृत करा लिया गया। इस दौरान यह भी नही देखा गया कि जिला खनिज न्यास के कानून के दायरे में यह कार्य आते हैं या नहीं। इसके बाद जिले में जिला खनिज न्यास की रकम का जमकर दुरुपयोग हुआ।

सहायक आयुक्त को बना दिया नोडल अधिकारी

कायदे से जिला खनिज न्यास की समिति का नोडल अधिकारी खनिज विभाग के प्रमुख को बनाना चाहिए था। लेकिन कलेक्टर पी दयानन्द ने पूर्व में अपने अधीन कार्य कर चुके सहायक आयुक्त, आदिवासी विकास श्रीकांत दुबे को नोडल अधिकारी बना दिया गया। फिर दोनों ने DMF की रकम का अनाप-शनाप तरीके से खर्च किया। इसका सबसे बड़ा नमूना है कोरबा के स्याहीमूड़ी में जिला खनिज न्यास से बना एजुकेशन हब, जिसमें बेतहाशा तरीके से रुपये खर्च किये गए। वर्तमान में इस भवन में आज एजुकेशन हब की बजाय दूसरी संस्थाएं चल रही हैं।

एजुकेशन हब बनाने के पीछे दिया ये तर्क

कोरबा में खनिज न्यास से दंतेवाड़ा जिले के जावंगा में बने एजुकेशन सिटी की तर्ज पर एकीकृत शैक्षणिक परिसर याने एजुकेशन हब के निर्माण का प्रस्ताव इस तर्क पर दिया गया कि जिले भर में आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा संचालित 46 प्री मैट्रिक, पोस्ट मैट्रिक छात्रावास एवं आश्रम भवनविहीन हैं, जिनके निर्माण में 73 करोड़, 57 लाख, 92 हजार रुपए का खर्च आएगा।

इसी तरह 43 आश्रम और छात्रावास के भवन 50-60 वर्ष पुराने हैं, जिनके जीर्णोद्धार में 10 करोड़ 99 लाख रुपये का बोझ पड़ेगा। इस तरह शासन पर कुल 84 करोड़ 56 लाख रुपये का व्यय होगा। इसके स्थान पर ग्राम स्याहीमूड़ी, विकासखंड कटघोरा में 25 एकड़ शासकीय भूमि पर एकीकृत शैक्षणिक परिसर के निर्माण का प्रस्ताव रखा गया, जिसकी क्षमता 2400 विद्यार्थियों की बताई गई।

इसके निर्माण का व्य्य 45 करोड़, 74 लाख, 52 हजार, 696रुपये बताया गया, और यह भी बताया कि एक साथ सारे आश्रम छात्रावास की जगह एकीकृत शैक्षणिक परिसर के निर्माण से शासन को 38 करोड़ 72 लाख रुपये की प्रत्यक्ष तौर पर बचत होगी।

दूसरे चरण में भी बेतहाशा खर्च

कोरबा शहर के दर्री इलाके में स्थित स्याहीमुड़ी बस्ती में 25 एकड़ भूभाग पर प्रस्तावित एजुकेशन हब यानि एककृत परिसर को पहले तो लगभग 46 करोड़ रूपये बचत वाला प्रोजेक्ट बताकर शुरू किया गया। बाद में दूसरे चरण में भी इस विशालकाय प्रोजेक्ट में बेतहाशा खर्च किये गए। एक जानकारी के मुताबिक इस एकीकृत परिसर में कुल 150 करोड़ रूपये खर्च किये गए। आपको बता दें कि तब कोरबा जिले को DMF से लगभग 600 करोड़ रूपये एक वर्ष में मिला करते थे, इस रकम का लगभग 25% हिस्सा एजुकेशन हब में ही लगा दिया गया। और इस जगह का नाम रखा गया पंडित दीनदयाल उपाध्याय एकीकृत परिसर।

छात्रावास, आश्रमों में भी डीएमएफ का दुरुपयोग

आदिवासी विकास विभाग के तत्कालीन सहायक आयुक्त श्रीकांत दुबे ने एकीकृत शैक्षणिक परिसर के निर्माण के पीछे तर्क दिया था कि इससे कोरबा जिले के पुराने छात्रावास आश्रमों के जीर्णोद्धार का खर्चा बचेगा, लेकिन बाद में उन्होंने इन्ही तथाकथित जर्जर छात्रावास, आश्रमों के जीर्णोद्धार के नाम पर भी करोड़ों रुपए का फंड जिला खनिज न्यास से स्वीकृत करा लिया। एक तरफ उन्होंने एकीकृत शैक्षणिक परिसर का निर्माण कराया, वहीं दूसरी ओर छात्रावास आश्रमों के जीर्णोद्धार के लिए भी दोहरा खर्च किया और जिला खनिज न्यास की रकम का दुरुपयोग किया।

फिर भी काम नहीं आ सका एकीकृत शैक्षणिक परिसर

जिला खनिज न्यास का कानून देश भर में इसलिए लागू किया गया ताकि इसके मद में आने वाली रकम से खदानों से प्रभावित परिवारों और इसके आसपास के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभावितों का कल्याण किया जा सके। इसी के आधार पर कोरबा जिले में एकीकृत शैक्षणिक परिसर याने एजुकेशन हब की नींव रखी गयी। इसके निर्माण में तमाम भ्रष्टाचार हुए और अनाप शनाप रकम खर्च की गई। वहीं जिस उद्देश्य को लेकर एकीकृत शैक्षणिक परिसर का निर्माण किया गया, उसकी पूर्ति ही नहीं हो सकी।

एकीकृत शैक्षणिक परिसर के विशालकाय भवन के निर्माण के बाद जब संचालन की बारी आयी तब तक जिले से कलेक्टर पी दयानन्द का तबादला हो चुका था। यहां एजुकेशन हब खोलने की योजना के लिए बैठक आयोजित की गई, तब यहां के लिए शिक्षकों की व्यवस्था कैसे होगी, इतने बड़े परिसर में 2400 विद्यार्थियों की पढाई और उनके हॉस्टल का संचालन कैसे होगा। यह सोचकर सबके माथे पर बल पड़ गए और सभी ने हाथ खड़े कर दिए। तत्कालीन कलेक्टर और अन्य अधिकारियों ने इसमें रूचि नहीं दिखाई और तब के जिम्मेदार मंत्री और नेताओं ने भी यहां एजुकेशन हब खोले जाने में कोई रूचि नहीं दिखाई। कुल मिलकर यह प्रोजेक्ट ड्रॉप करना पड़ा।

पूर्व मुख्यमंत्री ने भी नहीं दिखाई रूचि

कोरबा जिले में एजुकेशन हब का निर्माण भाजपा के शासनकाल में ही हुआ और तब इसका निर्माण भी पूरा हो गया। मगर जब इसके चलाने की बारी आयी तब सरकार ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया। तब प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने भी इसके संचालन में रूचि नहीं दिखाई। उलटे जब उन्होंने देखा कि यह भवन बेकार पड़ा है तब उन्होंने यहां “सिपेट” संस्था के संचालन के लिए भवन के एक हिस्से को देने का आदेश जारी कर दिया। बाद में उन्होंने सिपेट का हॉस्टल भी खोले जाने का आदेश दे दिया।

यही नहीं सिपेट में किये जाने वाले खर्च के लिए भी इस संस्था को जिला खनिज न्यास के मद से 25 करोड़ रूपये दे दिए गए। अब यहां के एक हिस्से में सेन्ट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ़ प्लास्टिक इंजीनियरिंग एन्ड टेक्नोलॉजी “सिपेट” का संचालन हो रहा है।

खानापूर्ति के लिए शुरू किया गया विद्यालय

एजुकेशन हब का निर्माण चूंकि शिक्षण संसथान चलने के लिए किये गया था, इसलिए वर्तमान में खानापूर्ति के तौर पर एकीकृत शैक्षणिक परिसर में 90 बच्चों का हिंदी और अंग्रेजी विषय का प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय का संचालन किया जा रहा है। ये विद्यालय भी जिले के ग्राम बाम्हनपाट में कोयला खदान के चलते बंद हो चुके सरकारी विद्यालय के नाम पर चलाया जा रहा है। जिले भर के 2400 प्रतिभावान विद्यार्थियों का भविष्य उज्ज्वल बनाने के नाम पर बनाये गए एकीकृत शैक्षणिक परिसर में मात्र 90 बच्चे पढ़ रहे हैं।

“प्रयास” विद्यालय भी किया शुरू

एकीकृत विद्यालय परिसर के खली पड़े भवनों को देखते हुए यहां सरकार ने प्रयास विद्यालय भी संचालित करने की अनुमति दे दी। इस विद्यालय में नक्सल प्रभावित परिवारों के बच्चों के अलावा स्थानीय बच्चों के लिए भी सीटें आरक्षित हैं। इस तरह अब यहां परिसर में तीन संस्थाएं सिपेट, प्रयास और हिंदी अंग्रेजी माध्यम के स्कूल चल रहे हैं।

फर्नीचर खरीदी में भी घोटाला

जिला प्रशासन द्वारा एजुकेशन हब के लिए समय से पहले ही DMF के मद से 85 लाख रुपये से अधिक की फर्नीचर की खरीदी कर ली गई। आज यहां एजुकेशन हब की बजाय सिपेट संचालित है और हब के लिए खरीदे गए फर्नीचर धूल खा रहे हैं। इसी तरह छात्रावासों और एकलव्य विद्यालय में 60 लाख रुपए की लागत से जिम की स्थापना की गई। जिम की सामग्रियां काफी ज्यादा दर पर खरीदी गईं हैं।
एकीकृत शैक्षणिक परिसर के निर्माण की आड़ में करोड़ों रुपए का भ्रष्टाचार कोरबा जिले के तत्कालीन प्रमुख अधिकारी और आदिवासी विकास विभाग के अमले और ठेकेदारों ने मिलकर किया है। बाद में की गई जांच में यह खुलासा भी हो गया है।

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