बीज निगम ने हाईब्रीड मक्के की खरीदी में कर दिया खेल, बीज की आपूर्ति में चुपके से हटा दी DNA टेस्ट रिपोर्ट की जांच की अनिवार्यता
बीज निगम ने हाईब्रीड मक्के की खरीदी में कर दिया खेल, बीज की आपूर्ति में चुपके से हटा दी DNA टेस्ट रिपोर्ट की जांच की अनिवार्यता

रायपुर। छत्तीसगढ़ के किसानों को हाईब्रीड मक्के के बीज की आपूर्ति बीज निगम के माध्यम से होती है। निगम द्वारा बीज की खरीदी के लिए तमाम नियम कायदे तय किये गए हैं ताकि किसानों को अच्छी किस्म का बीज मिल सके। मगर इस बार निगम ने ऐन वक्त पर आपूर्ति किये गए बीज की DNA टेस्ट रिपोर्ट की अपने स्तर पर जाँच की अनिवार्यता को ख़त्म कर दिया है। ऐसा करने से गुणवत्ताहीन बीजों की आपूर्ति का खतरा बढ़ गया है।

छत्तीसगढ़ राज्य बीज एवं कृषि विकास निगम लिमिटेड प्रदेश में कृषि विभाग के अधीन कार्यरत है। इसके द्वारा रेट कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर अलग-अलग फर्मों से हाईब्रीड मक्के और धान के बीजों के अलावा कृषि उपकरणों की आपूर्ति भी की जाती हैं। किस गुणवत्ता की सामग्री दी जानी है, यह तय होता है, मगर बीज निगम के जिम्मेदार अधिकारियो की मिलीभगत के चलते अक्सर गुणवत्ता को दर किनार कर दिया जाता है।

करोड़ों की खरीदी में हो गया झोल

बीज निगम द्वारा हर वर्ष प्रदेश के किसानों के लिए लगभग 35 करोड़ के हाईब्रीड मक्के की खरीदी की जाती है। पिछले वर्ष भी लगभग इतने की ही खरीदी की गई थी। इस बार की निविदा में भी DNA टेस्ट रिपोर्ट की अनिवार्यता दर्शायी गई है, मगर बताया जाता है ऐन वक्त पर बीज के DNA की निगम द्वारा जो जाँच कराई जाती है उसकी अनिवार्यता को ख़त्म कर दिया गया है।

Glowing yellow corn seed and food production leads to the next

ज्यादा वक्त लगने का दे रहे बहाना

हाईब्रीड बीज की निगम द्वारा DNA टेस्ट की अनिवार्यता को ख़त्म करने के पीछे निगम के अधिकारियों का तर्क है कि DNA टेस्ट की रिपोर्ट आने में काफी वक्त लग जाता है, और इसमें सप्लायर को बीजों का भुगतान करने में देरी होती है।
मगर ऐसा करना न तो किसानों के हित में है और न ही प्रदेश के हित में, क्योंकि इससे बीजों की गुणवत्ता घटिया होने की संभावना बढ़ जाती है। इस मामले में कृषक कल्याण परिषद् की चुप्पी भी सवालों के घेरे में हैं जो प्रदेश में किसानों के हित में काम करने का दावा करती है।

प्रदेश नहीं है डीएनए टेस्ट के लिए कोई लैब

सवाल यह उठता है कि बीजों की जांच के लिए प्रदेश में सरकार का अपना कोई लैब क्यों नहीं है? धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में धान के साथ ही मक्के और सब्जियों की पैदावार भी बड़े पैमाने पर होती है। इसके बीजों के अलावा खाद और पेस्टीसाइड की भी आपूर्ति किसानों को की जाती है।

जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ में पेस्टीसाइड की जांच के लिए राजनांदगांव में, तो बीज की जांच के लिए राजधानी रायपुर में लैब है, मगर लोड अधिक होने के चलते जांच के लिए सैंपल दूसरे राज्यों के लैब में भेजे जाते हैं। वहीं बीजों के DNA टेस्ट के लिए तो यहां कोई लैब ही नहीं है। आलम यह है कि दूसरे राज्य में जहां DNA की जांच होती है, वहां भारी मात्रा में सैंपल होने के चलते रिपोर्ट के आने में महीनों लग जाते हैं।

कृषि के क्षेत्र में करोड़ों और अरबों खर्च करने वाली छत्तीसगढ़ की सरकार इस तरह के अत्याधुनिक जांच के लिए अपना लैब क्यों नहीं स्थापित करती ? अपना लैब होने से जांच में विलम्ब नहीं होगा और हम यहां के किसानों को अच्छी गुणवत्ता का बीज दे सकेंगे।

बीजों की ब्रीड की अनुशंसा भी है जरुरी

किसी भी नस्ल के बीज की आपूर्ति राज्य में तभी की जा सकती है, जब बीज यहां की मिट्टी के अनुकूल होने की अनुशंसा कम से कम 10 साल पुरानी हो। इस नियम को भी बीज निगम द्वारा अक्सर अनदेखा किया जाता है। यही वजह है कि कई बार किसानों की पैदावार उतनी नहीं होती जितने का दावा संबंधित बीज कंपनी द्वारा किया जाता है।

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