उचित शर्मा
कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई देश में चर्चा का विषय बन गई है। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या को गुलाम नबी आजाद को दिए गए पद्म भूषण सम्मान को लेकर पार्टी दो धड़ों में बंटी दिखाई दे रही है।
कांग्रेस हलकों में बहस छिड़ी गई है कि आखिर नबी…ग़ुलाम हुए या आज़ाद…। कुछ नेता जहां इसका स्वागत करते दिख रहे हैं तो कुछ उन्हें निशाने पर ले रहे हैं। हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि एक दिन गुजरने के बाद भी कांग्रेस के किसी शीर्ष नेता ने उन्हें बधाई तक नहीं दी।
हालांकि ग्रुप 23 के नेता कपिल सिब्बल ने उन्हें भाई जान बधाई का संदेश तो जरूर दिया पर उनकी बधाई में बधाई कम कांग्रेस आलाकमान पर तंज ज्यादा था।
लड़ाई तब और तीखी हो गई जब नाराज नेताओं में शामिल कपिल सिब्बल ने आश्चर्य जताया कि जिसकी (आजाद) उपलब्धियों और योगदान को देश मान्यता दे रहा है, उसकी पार्टी में कोई उपयोगिता नहीं है। अब तक सिर्फ तीन कांग्रेसी नेताओं ने आजाद को बधाई दी है शशि थरूर ने सबसे पहले बधाई दी और कहा- दूसरे पक्ष की सरकार ने भी आपकी उपलब्धियों को पहचाना और सम्मानित किया, इसके लिए बधाई हो।
वहीं G-23 नेताओं में से एक ने कहा कि गुलाम नबी आज़ाद ने जनता के लिए बहुत कुछ किया है। वह इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में मंत्री थे। वह देश के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले कैबिनेट मंत्रियों में से एक रहे हैं, और पुरस्कार किसी विशेष पार्टी से नहीं हैं। यह बहुत बुरा है कि उन्हें इस विवाद में घसीटा जा रहा है। आनंद शर्मा भी गुलाम नबी आजाद के साथ खड़े नजर आए।
आनंद शर्मा ने अपने बधाई संदेश में लिखा है कि गुलाम नबी आजाद जी को जन सेवा और संसदीय लोकतंत्र में उनके आजीवन समृद्ध योगदान हेतु योग्य मान्यता के लिए हार्दिक बधाई।
दो धड़ों में बांटी कांग्रेस में टीम राहुल के रणनीतिकार माने जाने वाले जयराम रमेश ने उन पर परोक्ष रूप से सरकार का गुलाम होने का बड़ा तंज कसने में देर नहीं की।
जयराम रमेश ने बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री और वाम नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य की ओर से सम्मान लेने से इनकार किए जाने पर प्रतिक्रिया जताते हुए कहा, ‘बुद्धदेव ने सही किया, उन्होंने गुलाम होने के बजाय आजाद रहना पसंद किया।’ बताने की जरूरत नहीं कि जयराम का ट्वीट बुद्धदेव की प्रशंसा से ज्यादा आजाद की आलोचना करना था, जिन्होंने इस सम्मान को स्वीकार किया।
दरअसल गुलाम नबी आजाद की राज्यसभा से विदाई पर मोदी का भावुक होना, कांग्रेस पार्टी के साथ मनमुटाव होना और अब उन्हें भाजपा द्वारा स्वागतीय तोरण देना। यह सब एक सुनियोजित घटना क्रम सा लगता है मगर वर्तमान में कांग्रेस पार्टी में पहला बड़ा सवाल यही है कि अब नबी कितना सत्ता पक्ष के वैचारिक ग़ुलाम होते हैं और कितना अपनी ही पार्टी से आज़ाद…।
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