Ukraine-Russia Conflict से बढ़े Crude Oil के दाम, अब पड़ेगा आपकी जेब पर असर

टीआरपी डेस्क। रूस यूक्रेन तनाव से कच्चा तेल का दाम आसमान पर पहुंच गया है। बाजार में 100 डॉलर प्रति बैरल की बोलियां लगने लगीं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने माना कि यह स्थिति चिंताजनक है। बता दें कि भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी तेल आयात (Crude Oil Import) करता है और भाव करीब आठ साल बाद एक बार फिर 100 डॉलर के करीब हैं।

अनुमान यह भी है कि तेल (Oil & Gas) और गैस के बाजार में जल्द नरमी नहीं होगी। यानी भाव लंबे वक्त तक ऊपर रहने वाले हैं। ऐसे अनुमान इसलिए उछाले जा रहे क्योंकि तेल के बाजार में रूस का दबदबा है।

महंगे होंगे पेट्रोल-डीजल

भारत दुनिया का बड़ा ऑयल इंपोर्टर है। वह अपनी जरूरत का 80 फीसदी तेल आयात करता है। जरूरत का 50 फीसदी गैस भी आयात किया जाता है। रूस-यूक्रेन में संघर्ष कच्चे तेल का भाव बढ़ा है। कच्चे तेल की कीमतें गुरुवार को 100 डॉलर प्रति बैरल का स्तर पार कर नये रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई हैं। विश्लेषकों को उम्मीद है कि अगले महीने राज्य के चुनाव समाप्त होने के बाद भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें तेजी से बढ़ेंगी, जिससे सरकार और केंद्रीय बैंक पर मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाने का दबाव बढ़ जाएगा।

बता दें कि रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक और तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। रूस से हर रोज 50 लाख बैरल कच्चा तेल निर्यात होता है। यूरोप की 48 और एशियाई देशों की 42 फीसद निर्भरता रूस पर ही है। इसलिए रूस से आयात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। फिलहाल तो दुनिया का सबसे बड़ा तेल निर्यातक सऊदी भी रूस के साथ खड़ा दिख रहा।

इस बात को तर्क देने वाले आंकड़े पिरोइए, 2020 के दौरान रूस में 22 लाख करोड़ क्यूबिक फीट से ज्यादा नेचुरल गैस का उत्पादन हुआ और उसमें 8.5 लाख करोड़ क्यूबिक फीट का निर्यात हुआ। निर्यात होने वाली गैस में लगभग 90 फीसद गैस यूरोप और यूरोएशिया के देशों ने खरीदी, आधे से ज्यादा खरीद जर्मनी, फ्रांस, इटली और बेलारूस ने की, यानी गैस के लिए यूरोप की रूस पर निर्भरता बड़ी है। यही कारण है कि रूस और यूक्रेन संकट से यूरोप कांप रहा है।

बीते 2 महीने में वैश्विक बाजार में गैस के दाम एक तिहाई से ज्यादा बढ़ गए हैं, दिसंबर अंत में भाव 3.54 डॉलर प्रति यूनिट से अब 4.86 डॉलर तक पहुंच चुका है। सिर्फ तेल और गैस ही नहीं बल्कि कोल और न्यूक्लियर पावर में भी रूस बड़ा प्लेयर है। यानी लब्बोलबाब यह कि दुनिया के एनर्जी मार्केट की धुरी फिलहाल रूस है और यह पुतिन की धुन पर नाचने को मजबूर है।

अब सुनिए अपनी कहानी हम शांतिप्रिय भारतीय अब अपने घर में महंगे तेल के साथ मुसीबत भी आयात करेंगे। कमजोर होते रुपए से महंगा तेल खरीदना और भारी पड़ता है। चुनाव के बाद पेट्रोल डीजल रसोई गैस की कीमतें तेजी से बढ़ेंगी। सरकार के पास भी विकल्प सीमित हैं. तेल कंपनियां पहले ही भारी कर्ज से दबी हैं और सरकार के बजट में यह कुव्वत नहीं कि इस झटके को झेल जाएं यानी लंबे समय तक तेल की महंगाई हमें मारेगी।

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