आयुर्वेद के 3 चिकित्सक निकले फर्जी, केवल पंजीयन किया गया निरस्त
आयुर्वेद के 3 चिकित्सक निकले फर्जी, केवल पंजीयन किया गया निरस्त

रायपुर। एक दशक पहले आयुर्वेद, यूनानी एवं प्राकृतिक चिकित्सा बोर्ड, छत्त्तीसगढ़ में अपना पंजीयन कराने के बाद बाकायदा प्रैक्टिस कर रहे आयुर्वेद डॉक्टरों के बारे में बोर्ड को अब जाकर पता चला है कि इनकी डिग्री तो फर्जी है। इस खुलासे के बाद फ़िलहाल इनके पंजीयन निरस्त किये गए हैं, मगर इनके खिलाफ FIR का कोई फैसला फ़िलहाल नहीं किया गया है।

डॉ संजय शुक्ल, रजिस्ट्रार

आयुर्वेद, यूनानी एवं प्राकृतिक चिकित्सा बोर्ड के रजिस्ट्रार डॉ संजय शुक्ल ने TRP न्यूज़ को बताया कि सन 2012 से 2015 के बीच बोर्ड में पंजीकृत डॉ गोविंदराम चंद्राकर (ग्राम- हनोदा, दुर्ग), डॉ अजय कुमार जंघेल (पंडरिया, राजनांदगांव) डॉ खगेश्वर वारे (ग्राम- हिर्री,सारंगढ़ रायगढ़) की डिग्रियों का सत्यापन उनके शैक्षणिक दस्तावेज से संबंधित विश्वविद्यालयों से कराया गया, जहां से यह जानकारी भेजी गयी कि डिग्रियां फर्जी हैं। इनके द्वारा बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर, पटना, बिहार से जारी BAMS की अंकसूचियां जमा की थी, इसी के आधार पर इनका छत्तीसगढ़ में प्रैक्टिस के लिए पंजीयन किया गया था।

बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर

बोर्ड की लापरवाही हुई उजागर

बोर्ड ने जिन फर्जी डॉक्टरों का पंजीयन निरस्त किया है वे लगभग 10 साल से अपने इलाके में प्रैक्टिस कर रहे हैं। डिग्रियां फर्जी होने के बावजूद ऐसा इसलिए संभव हो सका क्योंकि इनके पंजीयन के समय बोर्ड ने संबंधित विश्वविद्यालय से इनकी डिग्रियों का सत्यापन ही नहीं कराया था। ऐसा उस समय क्यों नहीं कराया गया इसके पीछे बोर्ड के तत्कालीन अमले पर भी संदेह की सुई घूम रही है।

पंजीयन से पहले ही पकड़ में आ गया था फर्जीवाड़ा

आपको बता दें की कुछ माह पूर्व ही आयुर्वेद बोर्ड में पंजीयन के लिए अनेक युवाओं ने अपनी डिग्रियों के साथ आवेदन जमा किया था, मगर संबंधित विश्विद्यालयों से सत्यापन के दौरान लगभग एक दर्जन की डिग्रियां फर्जी पायी गयीं, जिसके बाद इन सभी का बोर्ड में पंजीयन नहीं किया गया। इसी घटनाक्रम से सबक लेते हुए बोर्ड में पूर्व में जिन चिकित्सकों के प्रमाण पत्रों का सत्यापन नहीं किया गया है, उसे संबंधित संस्थानों में भेजने का फैसला किया गया। डॉ संजय शुक्ल बताते हैं कि आयुर्वेद में पंजीकृत केवल 3 डॉक्टरों का ही सत्यापन पूर्व में नहीं हुआ था, अब जांच के बाद इनकी डिग्रियां फर्जी पायी गई हैं, इसलिए बोर्ड में किया गया इनका पंजीयन निरस्त कर दिया गया है।

अब होमियोपैथी की बारी

डॉ संजय शुक्ल ने बताया कि बोर्ड में पंजीकृत आयुर्वेद डॉक्टरों की डिग्रियों की जांच पूरी हो चुकी है। अब होमियोपैथी की बारी है, इस पैथी के तहत पंजीकृत डॉक्टरों द्वारा जमा प्रमाणपत्रों का सम्बंधित संस्थानों से सत्यापन कराया जायेगा।

FIR का फैसला नहीं..!

आयुर्वेद बोर्ड में पूर्व में जिन आवेदकों के प्रमाणपत्र फर्जी पाए गए थे, न तो उनके खिलाफ और न ही वर्तमान में जिन 3 आयुर्वेद डॉक्टरों को फर्जी पाया गया है, उनके खिलाफ भी पुलिस में कोई FIR दर्ज कराया गया है। इस सवाल पर रजिस्ट्रार डॉ संजय शुक्ल का कहना है कि इस संबंध में न तो एक्ट में कोई प्रावधान है और न ही उच्चाधिकारियों ने इस संबंध में कोई दिशा-निर्देश दिया है। हालाँकि उन्होंने यह भी कहा की कुछ लोगों के स्पष्टीकरण अब तक नहीं मिले हैं।

बोर्ड में जिस तरह के फर्जीवाड़े के मामले सामने आ रहे हैं, उनमे संबंधितों के खिलाफ FIR नहीं करना गंभीर मसला है, जबकि शासन के दूसरे विभागों में ऐसे प्रकरणों में तत्काल FIR दर्ज कराया जाता है। छत्तीसगढ़ आयुर्वेदिक तथा यूनानी चिकित्सा पद्धति एवं प्राकृतिक चिकित्सा बोर्ड द्वारा ऐसा करने के पीछे तथाकथित फर्जी लोगों को बचाने की मंशा तो नहीं है? अगर ऐसा नहीं है तो पूर्व में जिन लोगों ने पंजीयन के लिए फर्जी डिग्रियां जमा की थी, उन्हें क्यों बख्श दिया गया, वहीं बीते 10 सालों से फर्जी डिग्री होने के बावजूद प्रैक्टिस कर रहे फर्जी डॉक्टरों को भी मामला उजागर होने के बाद भी केवल पंजीयन निरस्त करने की कार्रवाई की जा रही है, आखिर क्यों ? यह सवाल अब भी बरक़रार है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जिस तरह से फर्जीवाड़े की जाँच करके मामला उजागर किया गया, उसी तरह फर्जी डॉक्टरों को उनके किये की सजा मिले, इसके लिए भी बोर्ड आगे आएगा।

आयुर्वेदिक बोर्ड द्वारा जारी प्रेस नोट :

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