नंदिनी सिंह, टीआरपी डेस्क। छत्तीसगढ़ रायपुर की साधना ढांड आज किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन के दम पर साबित किया है कि हौसले बुलंद हों तो शारीरीक अक्षमता भी बाधा नहीं बनती। साधना ढांड छत्तीसगढ़ के उन कलाकारों में से एक हैं जिन्होंने जिन्होंने अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया है। उन्होंने अपनी कमजोरियों को अपनी ताकत बनाकर कल के क्षेत्र में एक नई मिसाल पेश की है।

65 वर्षीय ढांड भंगुर हड्डी रोग (ऑस्टियोपोरोसिस) से पीड़ित है और इसके साथ ही उन्होंने 12 साल की उम्र में अपनी सुनने की क्षमता भी खो दी थी। इस बिमारी के कारण उनकी लंबाई 3.3 फीट रह गई। लेकिन, यह बिमारी इतनी मजबूत नहीं थी जो उनके पेंटिंग के जुनून को आगे बढ़ाने से रोक सके।

बता दें साधना ढांड को उनकी कलाकृतियों के लिए बहुत सारे राष्ट्रीय पुरस्कार मिले है। इसके अलावा उन्हें पेंटिंग और फोटोग्राफी के लिए राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कई खिताबों से नवाजा गया हैं। इसके बाद भी उनका सफर थमा नहीं अब वह अपनी इस कला को अन्य छात्रों को सिखा रही है और अपने घर पर कक्षाएं संचालित करती है। पिछले 30 वर्षों के दौरान, उन्होंने विभिन्न कला रूपों में 12,000 से अधिक छात्रों को प्रशिक्षित किया है।
इन सबके साथ ही साधना ढांड एक सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं और मानसिक और शारीरिक रूप से दिव्यांग बच्चों के साथ काम करने वाले विभिन्न संगठनों को दान देती हैं। बता दें छत्तीसगढ़ के रायपुर की साधना को रोल मॉडल श्रेणी (महिला) के तहत ‘दिव्यांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार 2012’ के लिए चुना गया है। साधना को उनके असाधारण कौशल के लिए विश्व विकलांग दिवस के अवसर पर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से पुरस्कार मिला है।

बता दें अबतक उनकी इस स्थिति करीब 80 फ्रैक्चर और सुनने की अक्षमता है, जिसके चलते उनके घर के बाहर आंदोलन प्रतिबंधित हो गया है। कम उम्र में ही उनकी माँ का स्वर्गवास हो गया था, बता दें उनकी मां (स्वर्गीय राजकुमारी ढांड) ने ही उन्हें उनकी कला को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया गया था।
बात करें उनकी कला कि तो, अपनी सीमित गतिशीलता के बावजूद, वह विभिन्न प्रकार की कलाओं और चित्रों की विशेषज्ञ हैं और उन्होंने राज्य स्तर पर कई पुरस्कार जीते हैं। 1998 में, उन्हें अखिल भारतीय ललित कला प्रदर्शनी में भगवान गणेश के चित्रों के साथ प्रयोग करने के लिए वर्ष की सर्वश्रेष्ठ कला का पुरस्कार मिला।

जिसके बाद उन्हें 1999 में छत्तीसगढ़ की फोटोग्राफिक सोसायटी द्वारा उत्कृष्ट फोटोग्राफी के लिए और 2005 में ‘स्त्री शक्ति सम्मान’ से सम्मानित किया गया था। राज्य चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज ने कला के क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों के लिए 2011 में ‘महिला शक्ति सम्मान’ के साथ साधना को सम्मानित किया।
साधना समय-समय पर अपनी कलाओं की प्रदर्शनी (Exhibition) करती है। उन्होंने रायपुर, भिलाई, भोपाल, जयपुर, नागपुर, पुणे और नई दिल्ली में प्रदर्शनियों का आयोजन किया है।

“साधना की पेंटिंग केवल कैनवास तक ही सीमित नहीं हैं। उन्होंने अलग-अलग पत्तियों का उपयोग कर कई सारी विभिन्न आकृतियों को डिजाइन किया है। बाद में उन्होंने अपने कामों की तस्वीरें खींचीं जिसके बाद उन्होंने उन्हें कैनवास पर लागू किया।
इसके आलावा उन्हें गार्डनिंग का भी बहुत शौक है। उनके घर में 200 बोनसाई का संग्रह है और फूलों की सजावट से लेकर लैंडस्केप फोटोग्राफी तक के अपने काम के लिए उन्होंने कई पुरस्कार जीते हैं।
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