उद्यानिकी विभाग में पॉली हॉउस के नाम पर हुआ करोडो का घोटाला उजागर, दोषी अधिकारियों पर लटकी तलवार
उद्यानिकी विभाग में पॉली हॉउस के नाम पर हुआ करोडो का घोटाला उजागर, दोषी अधिकारियों पर लटकी तलवार

रायपुर। सरकार की योजनाओं का माखौल उड़ाते हुए अधिकारी और बिचौलिए किस तरह करोड़ो के वारे-न्यारे कर जाते हैं, उसका जीता-जगता नमूना है महासमुंद के उद्यानिकी विभाग में हुआ पॉली हाउस घोटाला, जिसकी खबर को TRP न्यूज़ ने प्रमुखता से उठाया और मामले की जांच में सारी गड़बड़ी उजागर हो गई।

मुख्यालय स्तर पर की गई जांच

महासमुंद में उद्यानिकी विभाग में हुए घोटाले के TRP NEWS में प्रकाशन के बाद स्थानीय विधायक और संसदीय सचिव विनोद सेवन लाल चंद्राकर ने मामले की लिखित शिकायत विभाग के डायरेक्टर माथेश्वरन से की। जिसके बाद मामले की जांच का जिम्मा संयुक्त संचालक व्ही के चतुर्वेदी को सौंपा गया, जिन्होंने विस्तृत जांच के बाद जांच रिपोर्ट डायरेक्टर को सौंप दी है।

इस मामले की जांच के दौरान एन.एस. कुशवाहा, तत्कालीन सहायक संचालक उद्यानिकी विभाग, महासमुंद ने विभाग को बताया था कि 17 किसानों को शेड नेट के लिए 253.037 लाख यानी ढाई करोड़ का अनुदान दिया गया। वहीं 66 किसानों को पैक हाउस के लिए 132 लाख का अनुदान दिया गया।

जांच में हकीकत हो गई उजागर

उद्यानिकी विभाग के डायरेक्टर के निर्देश के बाद जमीनी तहकीकात शुरू हुई। जांच टीम महासमुंद के सराईपाली पहुंची। यहां अब्दुल नईम, ननकी बाई पटेल और सुरेश पटेल के पैक हाउस को देखा गया। इसी दौरान सराईपाली में ही उत्तम बरिहा, ननकी बाई और भरत लाल पटेल के यहां बनाए शेडनेट का भी परिक्षण किया गया। मौके पर इन सभी किसानों के बयान दर्ज किए गए।

ठेका एक कंपनी को, भुगतान दूसरी को

जांच के दौरान पता चला कि महासमुंद में दफ्तर के रिकार्ड में शेडनेट को दुर्ग की एग्रोटेक कंपनी ने बनाया है, जबकि किसानों ने बताया रायपुर के जय गुरुदेव फर्म ने इसे बनाया है। पूछताछ में रायपुर की फर्म ने स्वीकार भी किया कि तीन किसानों से 19.81 लाख, 19.88 लाख और 9.94 लाख रुपए उसने प्राप्त भी किए। जांच अधिकारी ने इससे संबंधित सभी कर्मचारियों कृपाशंकर गिलहरे, प्रीति सेन और भूषण लाल ध्रुव के बयान दर्ज कर लिए।

नेट हाउस के निर्माण में भारी गड़बड़ी

महासमुंद में जांच के दायरे में आये 17 शेडनेट का भौतिक सत्यापन किया गया, तो जांच अधिकारी ने स्पष्ट लिखा कि योजना के प्रावधान के विपरीत काम किया गया। इस दौरान किसी भी किसान के नेट हाउस में पैरापिट नहीं था, जो होना चाहिए था। नेट हाउस में मजदूरों से संबंधित सभी कामों को नेट हाउस निर्माता को कराना था, जबकि ये काम किसानों ने खुद कराया।

ढाई करोड़ के घालमेल का अनुमान

करोड़ों के इस घोटाले में यह बात साफ़ हो गई कि सहायक संचालक, महासमुंद ने बिना जांच पड़ताल के अनियमित भुगतान किया। दस्तावेजों में पेमेंट बताया गया दुर्ग की फर्म को और पेमेंट किया गया रायपुर की फर्म को। इसके अलावा एक ही किसान के यहां दो नेट हाउस बना दिखाया गया, जबकि मौके पर एक ही मिला। इसमें केंद्र-राज्य के खाते में टैक्स से संबंधित अनियमितता भी पाई गई है। जांच प्रतिवेदन से भी स्पष्ट है कि महासमुंद जिले में लगभग ढाई करोड़ की बन्दरबांट की गई है।

पैक हाउस की जांच के तथ्य

नियम कायदों को ताक पर रखकर बनाये गए 21 किसानों के पैक हाउस अधूरे पाए गए जबकि सब इंजीनियर ने सभी को पूर्ण बताया और भुगतान भी पूरा किया गया। इतना ही नहीं, सरकारी जमीन पर बेजा कब्जा कर पैक हाउस बनाकर उसका भुगतान कर दिया गया।
आश्चर्य तो इस बात का है कि एक मामले में पैक हाउस का निर्माण पिता की जमीन पर किया गया और भुगतान बेटे को कर दिया गया।

आकार छोटा था तो भुगतान क्यों..?

जांच के दौरान नेट हाउस के आकार में भी गड़बड़ी पाई गई। दस्तावेज में जितना बड़ा नेट हाउस बनाना बताया गया है, मौके पर उस आकार का नहीं मिला। इसमें चार हितग्राहियों को करीब साढ़े 24 लाख रूपये का ज्यादा भुगतान किया गया। पैक हाउस 54 वर्ग मीटर में बनना था मगर उससे छोटा बनाया गया। कायदे से ऐसी स्थिति में भुगतान नहीं होना था, लेकिन कर दिया गया। इसमें 73 लाख से ज्यादा का भुगतान हुआ। इस घोटाले में मूल्यांकनकर्ता और सब इंजीनियर बराबर के साझेदार हैं, क्योंकि इन लोगों ने ही स्थल निरिक्षण और सत्यापन के अलावा मूल्यांकन भी किया। हालांकि यह भी जानकारी मिली है कि इस मामले में जिम्मेदार अधिकारियों का बयान ही नहीं लिया गया है।

किसानों को मिलती है 14 लाख की सब्सिडी

बता दें कि पॉलीहाउस के निर्माण में सरकार की ओर से किसानों को सब्सिडी दी जाती है। उद्यानिकी विभाग से मिली जानकारी के अनुसार 19 लाख के पॉलीहाउस के निर्माण में 14 लाख की सब्सिडी दी जाती है। वहीं, ग्रीन हाउस का निर्माण में ढाई लाख की सब्सिडी दी जाती है। विभाग द्वारा 20 किसानों को पॉली हाउस की जगह ग्रीन हाउस बनाकर दिया गया है। इस तरह 2 करोड़ 80 लाख रुपए की राशि विभाग के अफसर और ठेकेदारों की जेब में गई है।

GST में गड़बड़ी की आशंका

जांच टीम को आशंका है कि निर्माण कार्य में लगी कंपनियों के भुगतान में जिस तरह की गड़बड़ी की गई है, वह GST को बचाने के फेर में की गई होगी। यही वजह है कि फर्मों के संदर्भ में जीएसटी का विवरण वाणिज्यकर विभाग से मांगा गया है, ताकि गड़बड़ी का पूरी तरह खुलासा हो सके।

पूरे प्रदेश में हुई है गड़बड़ी

TRP NEWS के पास इस बात की पुख्ता जानकारी है कि महासमुंद के उद्यानिकी विभाग की तरह दूसरे जिलों में भी घोटाला हुआ है, जानकारों का कहना है कि अगर दूसरे जिलों में भी पॉली हाउस, नेट हाउस, ग्रीन हॉउस और पैक हाउस के निर्माण की जाये तो लगभग 60 करोड़ का घोटाला उजागर रहोगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि विभाग के सचिव और डायरेक्टर इस मामले को संज्ञान में लेकर दूसरे जिलों में हुए कार्यो की भी जांच का आदेश जारी करेंगे।

घोटाला उजागर, मगर कार्रवाई में देरी

महासमुंद के उद्यानिकी विभाग में गड़बड़ी पूरी तरह उजागर हो गई है, धोखाधड़ी साफ़ नजर आ रही है, मगर कार्रवाई में अभी और देरी नजर आ रही है। उद्यानिकी विभाग के सचिव एस भारतीदासन का कहना है कि जांच रिपोर्ट में और भीआरोप जोड़े गए हैं, जिसकी जांच होगी और जो भी दोषी पाया जायेगा उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। हालांकि जांच दल ने दोषी पाए गए लोगों के खिलाफ FIR की अनुशंसा भी की है। बहरहाल देखना यह है कि उच्चधिकारी इस मामले में कब तक क़ानूनी कार्रवाई करते हैं।

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