सलवा जुड़ूम से विस्थापित आदिवासी फिर दोराहे पर, आंध्र और तेलंगाना सरकारों ने काबिज जमीनों से किया बेदखल
सलवा जुड़ूम से विस्थापित आदिवासी फिर दोराहे पर, आंध्र और तेलंगाना सरकारों ने काबिज जमीनों से किया बेदखल

रायपुर। बस्तर में 17 साल पहले नक्सलियों के खिलाफ चलाये गए सलवा जुड़ूम अभियान के दौरान हजारों आदिवासियों ने आंध्र प्रदेश की ओर पलायन किया था। वहां अब तक जंगल की जमीन पर कब्ज़ा करके खेतीबाड़ी करके गुजरा कर रहे इन आदिवासियों को उन जमीनों से बेदखल करके वहां पौधरोपण कर दिया गया है। इससे परेशान अनेक आदिवासी परिवार छत्तीसगढ़ सरकार से मिलकर गुहार लगाने के लिए राजधानी पहुंचे हैं।

644 गांवों से आदिवासियों ने किया था पलायन

बस्तर में 17 साल पहले जब सलवा जुडुम आंदोलन के कारण हिंसा बढ़ी, तब एक सरकारी आँकड़े के मुताबिक 644 गांवों से 55 हज़ार लोग हिंसा से बचने के लिए अपना घर और गाँव छोड़कर पड़ोसी राज्य आँध्रप्रदेश (अब तेलंगाना भी) चले गए थे। जहां पर विस्थापन के बाद जंगल काटकर ये पिछले 17 वर्षों से खेती कर किसी तरह अपना और अपने परिवार का जीवन यापन कर रहे थे। इन आदिवासियों को मदद कर रहे स्वयं सेवी संगठनों द्वारा किये गए सर्वे के मुताबिक ये परिवार आंध्र और तेलंगाना के लगभग 262 बसाहटों में रह रहे हैं। मगर पिछले दो सालों में जब देश कोरोना महामारी के कारण लॉक डाउन पर था, तेलंगाना और आन्ध्रप्रदेश की सरकारों ने इन विस्थापितों से उनकी लगभग आधी ज़मीन वापस लेकर उस पर पौधारोपण कर दिया है।

कोई पहचान नहीं है इनकी

दरअसल 17 साल पहले जब इन परिवारों ने बस्तर से पलायन किया तब से इनके पास आंध्र और तेलंगाना में कोई पहचान पत्र भी नहीं है। वहां की सरकारें भी इन्हें अपना नहीं मानतीं। इसकी वजह से इन्हें कोई मदद भी नहीं मिल रही है। उलटे पिछले तीन माह से दोनों सरकारों ने विस्थापितों की आधी बची ज़मीन पर भी पौधारोपण शुरू कर दिया है, और कुछ बसाहटों को जंगल से निकालकर सड़क किनारे आने को भी मजबूर किया है।

वन अधिकार पट्टे की मांग अनसुनी

इन विस्थापितों ने वनाधिकार की धारा 3,1, m अदला बदली के क़ानून के तहत आवेदन किया है, पर आवेदनों में अब तक कोई प्रगति नहीं हुई है। इस क़ानून के अनुसार यदि कोई आदिवासी 2005 के पहले के अपने क़ब्ज़े की वन भूमि से अपनी मर्ज़ी के बग़ैर विस्थापित हुआ है, तो सरकार उन्हें बदले में दूसरी जगह ज़मीन देगी।

कश्मीर की तरह बस्तर फाइल्स की उठी मांग

आंध्र और तेलंगाना से कल ही 50 से अधिक आदिवासी राजधानी रायपुर आये हुए हैं, जो सोमवार को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकात कर उन्हें अपनी समस्याओं से अवगत कराएंगे। इनकी मदद कर रहे एक्टिविस्ट शुभ्रांशु चौधरी ने TRP न्यूज़ से बातचीत में कहा कि वर्तमान में कश्मीर फाइल्स काफी चर्चा में है। माओवाद के चलते बस्तर से जो पलायन हुआ है, उस पर भी फिल्म बनाने की जरुरत है। आज ये आदिवासी आज अपनी पहचान को तरस रहे हैं।

शुभ्रांशु चौधरी ने बताया कि 4 अप्रैल को सुबह 11 बजे रायपुर में विस्थापितों का दल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकात करेगा। साथ ही वनाधिकार के तहत अदला बदली के लिए 1000 विस्थापितों के आवेदन पत्र प्रस्तुत कर उस पर शीघ्र कार्यवाही की मांग करेगा। इसके अलावा विस्थापित ग्रामीण 6 अप्रैल को इन्हीं मांगों के साथ जंतर-मंतर दिल्ली में एक दिवसीय धरना प्रदर्शन करेंगे।

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