बिलासपुर : प्रदेश की न्यायधानी की दो युवतियाँ प्रदेश की पारम्परिक बुनाई को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने की कोशिश कर रही हैं। और इनकी इस पहल को विदेशों में भी काफी पसंद किया जा रहा है। दरअसल बिलासपुर की दो बहनों कविता और अंजली ने ‘बेबाक़’ (Bebaak) नाम का स्टार्टअप चला रही हैं। उनके इस स्टार्टअप का उद्देश्य प्रदेश की पारम्परिक बुनाई को मॉडर्न फैशन के साथ मिलाकर छत्तीसगढ़ के हैण्डलूम और छत्तीसगढ़ के बुनकरों को लाभ पहुँचाना है।

विदेशों में है मांग

‘बेबाक़’ चलाने वाली कविता जायसवाल ने TRP से चर्चा में बताया कि विदेशों में भी छत्तीसगढ़ के हैंडलूम से बने आधुनिक कपड़ों की बहुत मांग है। उनके इस स्टार्टअप में विदेशों से बड़ी मात्रा में आर्डर आते रहते हैं। जिसे बनाने का काम बिलासपुर के प्रोडक्शन यूनिट में किया जाता है। जहां 10 महिलाओं का समूह सभी ऑर्डरों को बनाकर डिस्पैच करने का काम करता है।

Artisans of Bebaak

राजनांदगाँव के कोऑपरेटिव बुनकर करते हैं काम

कविता ने बताया कि ऑर्डर के लिए जरूरी हैंडलूम बनाने का काम राजनांदगांव के कोऑपरेटिव बुनकरों के माध्यम से किया जाता है। आवश्यकता के अनुसार नए प्रिंट और नए पैटर्न के कपड़े का आर्डर ‘बेबाक़’ के द्वारा इन बुनकरों को दिया जाता है। जिसका निर्माण बुनकर कर के प्रोडक्शन युनिट तक पहुंचाते हैं। जिसके बाद यहां से उन्हें मॉडर्न फैशन के कपड़ों में बदला जाता है।

चेंज करना है लोगों का माइंडसेट

कविता ने बताया कि उनका लक्ष्य लोगों को हैण्डलूम के महत्व को समझाना है। उनका उद्देश्य आने वाले 5 सालों में ‘बेबाक़’ को राष्ट्रीय स्तर की कंपनी बनाना है। लेकिन इस रास्ते में कई समस्याएँ हैं। पुराने पारंपरिक कार्य से नए काम में आने में इन बुनकरों को काफी समस्या का सामना करना पड़ता है। डिजाइनर कपड़ों के काम करने में उन्हें काफी रिस्क का अनुभव भी होता है। जिसे कारण वे इस काम में अधिक रूचि नहीं लेते। अगर वह इस काम के महत्व को समझ पाएँ तो यह उनके लिए और प्रदेश की पहचान के लिए भी बहुत अच्छा होगा।

Artisans of Bebaak

इसके साथ ही कुछ लोग यह भी मानते हैं कि यह कपड़े बहुत महंगे हैं। लेकिन कविता का मानना है कि अगर लोग इसके पीछे की पूरी कहानी समझें तो उन्हें इन कपड़ों की कीमत समझ में आएगी। कविता का कहना है कि यह पूरा प्रयास ही लोगों के माइंड सेट को चेंज करने का है।

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