सुप्रीम कोर्ट


नई दिल्ली। राजीव गांधी हत्या कांड से जुड़े मामले में 36 साल की सजा काट चुके एजी पेरारिवलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आज केंद्र सरकार से पूछा कि राजीव गांधी  की हत्या में 36 साल की सजा काट चुके एजी पेरारिवलन को रिहा क्यों नहीं किया जा सकता है?

तमिलनाडु सरकार ने इस मामले पर कहा कि केंद्र केवल कानून में स्थापित स्थिति को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा है। शीर्ष अदालत ने कहा कि जब कम अवधि की सजा काटने वाले लोगों को रिहा किया जा रहा है, तो केंद्र उन्हें रिहा करने पर सहमत क्यों नहीं हो सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया में उसे लगता है कि राज्यपाल का फैसला गलत और संविधान के खिलाफ है। वह राज्य मंत्रिमंडल की सलाह से बंधे हैं। यह संविधान के संघीय ढांचे पर प्रहार करता है।

न्यायमूर्ति एलएन राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सालिसिटर जनरल केएम नटराज से कहा कि वह एक सप्ताह में उचित निर्देश मांगें अन्यथा वह पेरारिवलन की दलील को स्वीकार कर इस अदालत के पहले के फैसले के बाद उन्हें रिहा कर देगी। नटराज ने कहा कि कुछ स्थितियों में राष्ट्रपति सक्षम प्राधिकारी होते हैं न कि राज्यपाल, खासकर जब मौत की सजा को उम्रकैद में बदलना पड़ता है।

पीठ ने विधि अधिकारी से कहा कि दोषी 36 साल जेल की सजा काट चुका है और जब कम अवधि की सजा काट चुके लोगों को रिहा किया जा रहा है तो केंद्र उसे रिहा करने पर राजी क्यों नहीं है। पीठ ने कहा, “हम आपको बचने का रास्ता दे रहे हैं। यह एक विचित्र तर्क है। राज्यपाल के पास संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत दया याचिका पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। यह वास्तव में संविधान के संघीय ढांचे पर आघात करता है। राज्यपाल किस स्रोत या प्रावधान के तहत राज्य मंत्रिमंडल के फैसले को राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं।

न्यायमूर्ति राव ने कहा कि अगर राज्यपाल राज्य कैबिनेट के उन्हें रिहा करने के फैसले से असहमत हैं तो वह इसे वापस कैबिनेट में भेज सकते हैं लेकिन राष्ट्रपति को नहीं भेज सकते। पीठ ने कहा, “हमारा प्रथम दृष्टया विचार है कि राज्यपाल की कार्रवाई गलत है और आप संविधान के विपरीत तर्क दे रहे हैं। राज्यपाल राज्य मंत्रिमंडल की सहायता और सलाह से बंधे हैं।

जस्टिस गवई ने कहा कि अगर केंद्र की बात माननी है तो यह संविधान के संघीय ढांचे पर हमला होगा। संविधान को फिर से लिखना होगा कि कुछ स्थितियों में अनुच्छेद 161 के तहत मामलों को राष्ट्रपति के पास भेजा जा सकता है।” न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि पिछले साढ़े तीन साल से राज्यपाल ने यह रुख अपनाया है जो “विचित्र” है।

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