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“मूल निवासियों को बेदखल कर कॉर्पोरेट होंगे फायदे में”

रायपुर। “कोल ब्लॉक परियोजना के तहत होने वाली ओपन कास्ट माइनिंग के लिए 2000 एकड़ में फैले जंगल का सफाया करना पड़ेगा यानी करीबन 6,50,000 पेड़ों की बलि चढ़ाई जाएगी। यदि ऐसा हुआ तो छत्तीसगढ़ के पर्यावरण को इतना बड़ा नुक्सान होगा जिसकी भरपाई शायद ही छत्तीसगढ़वासी कभी कर पाएंगे।” उक्त बातें आज रायपुर के बैरनबाजार पैस्टोरल सेंटर में हसदेव बचाओ संघर्ष समिति और छत्तीसगढ़ बचाओ समिति के प्रतिनिधियों द्वारा आयोजित बैठक में सोशल एक्टिविस्ट आलोक शुक्ला द्वारा कही गयी।

बैठक में सोशल एक्टिविस्ट आलोक शुक्ला ने हसदेव की स्थिति को सपष्ट करते हुए आगे बताया कि – हसदेव अभ्यारण्य का क्षेत्रफल 2000 वर्ग किलोमीटर है। जिसमे 3000 से अधिक किस्म के औषधीय पेड़ पौधे और हज़ारो की तादात में जानवर बसते हैं। इसके अलावा वहां आदिवासी परिवारों का भी बसेरा है। जिसके कारण केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने हसदेव अरण्य को “नो गो” क्षेत्र भी घोषित किया था। लेकिन कुछ साल पहले खुलासा हुआ कि यहां 1 बिलियन मीट्रिक टन से भी ज़्यादा कोयला दबा हुआ है। जिसके बाद साल 2011 में इस क्षेत्र में 3 कोल ब्लॉक ( तारा, परसा ईस्ट, केते बासन) को केंद्र सरकार द्वारा ये कहते हुए खनन अनुमति दे दी कि इसके बाद हसदेव अरण्य में किसी और परियोजना को स्वीकृति नहीं दी जाएगी।

लेकिन दुखद रूप से हाल ही में परसा नए कोल ब्लॉक और पूर्व संचालित परसा ईस्ट केते बासेन कोल ब्लॉक के दूसरे चरण में खनन की अनुमति हेतु छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा दी गई। अंतिम वन स्वीकृति से लगभग 6 हजार एकड़ क्षेत्रफल में 4 लाख 50 हजार पेड़ो को काटा जायेगा। आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों को दरकिनार कर, हसदेव अरण्य क्षेत्र की समृद्धत्ता, पर्यावरणीय महत्व और उसकी आवश्यकता को समझते हुए भी केंद्र और राज्य सरकार मिलकर अडानी कम्पनी के मुनाफे के लिए इसका विनाश कर रहीं है l

6,50,000 पेड़ों की बलि चढ़ा देगा ये परियोजना

आलोक शुक्ला ने बताया कि इस परियोजना में पूरे इलाके में 20 कोल ब्लॉक चिन्हित हैं। जिनमें से 6 ब्लॉक में खदानों के खोले जाने की प्रक्रिया जारी है। इन परियोजनाओं में करीब 1865 हेक्टेयर निजी और शासकीय भूमि सहित 7730 हेक्टेयर वन भूमि का भी अधिग्रहण होना है जिसमें करीब 6,50,000 पेड़ काट दिए जाएंगे। इस परियोजना का विरोध हसदेव क्षेत्र के 40 गाँव के आदिवासी द्वारा किया जा रहा है। इस आंदोलन में अब तक कई आदिवासियों पर आर्म्स एक्ट और जान से मारने की धाराएं लगा कर FIR दर्ज की जा चुकी है।

खुदाई अगर एक बार शुरू हो गयी तो कभी बंद नहीं होगी

नयी परियोजना का विरोध करने वाले आदिवासियों का कहना है सरकार कह रही है कि देश को कोयले की जरूरत है। हम उनसे पूछना चाहते हैं कि क्या देश को जंगलों, ताजी हवा की, साफ पानी की जरूरत नहीं है ? सरकार कहती है कि कोयले से बिजली बनेगी, पर सरकार के पास यह अनुमान नहीं है कि उन्हें बिजली बनाने के लिए कितने कोयले की जरूरत है। यानी खुदाई अगर एक बार शुरू हुई तो फिर कभी नहीं रुकेगी।

बता दें कि ये अरण्य क्षेत्र हसदेव नदी और उस पर बने मिनीमाता बांगो बांध का केचमेंट है जो जांजगीर-चाम्पा, कोरबा, बिलासपुर के नागरिकों और खेतो की प्यास बुझाता है और संविधान की पांचवी अनुसूची में भी शामिल है। जिसके तहत अनुसूचित क्षेत्रों में ग्रामसभाओं को अपने जल -जंगल -जमीन, आजीविका और संस्कृति की रक्षा करने का संवैधानिक अधिकार है l भारतीय संसद द्वारा बनाए गए पेसा अधिनियम 1996 और वनाधिकार मान्यता कानून 2006 ग्रामसभाओं के अधिकारों को और अधिक शक्ति प्रदान करते हैं। लेकिन आज इन सब बातों को ताक पर रख कर केंद्र और राज्य सरकारें कहीं न कहीं अनदेखी कर आदिवासियों के हक़ और प्रकृति से खिलवाड़ कर रहीं हैं।

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