कोयले का भंडार खत्म होने के बाद क्या होगा कोरबा जिले का ?
कोयले का भंडार खत्म होने के बाद क्या होगा कोरबा जिले का ?

रायपुर। देशभर में आपूर्ति होने वाले कोयले का 16 फीसदी हिस्सा अकेले कोरबा जिले में उत्पादित होता है और यह जिला कोयले से 7 हजार करोड़ रूपये (यूएस $1.0 बिलियन) से भी अधिक टैक्स हर वर्ष सरकार को देता है। चिंता करने वाली बात यह है कि आने वाले 30 वर्षों में कोयले का स्टॉक ख़त्म होने लगेगा तब इस जिले का क्या होगा? यह अभी से सोचने की जरुरत है। देश की एक गैर सरकारी संस्था आईफॉरेस्ट iFOREST ने छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले पर एक रिपोर्ट तैयार की है कि कोयला अर्थव्यवस्था खत्म होने पर इस जिले और छत्तीसगढ़ प्रदेश के लिए वैकल्पिक अर्थव्यवस्था क्या हो सकेगी?

महंगी बिजली के घटेंगे खरीदार

iFOREST संस्था के प्रमुख चंद्रभूषण ने आज मीडिया के समक्ष इसकी जानकारी देते हुए बताया कि कोयले से प्रमुख तौर पर बिजली का उत्पादन होता है और इससे बनने वाली बिजली महंगी होती जा रही है। इसके मुकाबले में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा या पन बिजली सस्ती होती जा रही है। ऐसे में लोग सस्ती बिजली खरीदेंगे तब कोयला खदानों का क्या होगा, और ऐसे खदान वाले इलाकों की अर्थव्यवस्था का क्या होगा?

कोयले के बाद के विकल्पों पर हो रहा है विचार

आईफॉरेस्ट नाम की यह संस्था छत्तीसगढ़ सरकार के साथ मिलकर इस पर विचार-विमर्श कर रही है, और आज आईफॉरेस्ट के प्रमुख, चंद्र भूषण ने रायपुर में यह विस्तृत रिपोर्ट जारी की है जो कि कोरबा के भविष्य पर उठने वाले संभावित सवालों के जवाब तलाशती है।

कल राज्य शासन के साथ अपनी लंबी बैठकों के बाद आज आईफॉरेस्ट के प्रमुख लोगों ने छत्तीसगढ़ के मीडिया के बीच इस रिपोर्ट को जारी किया, जिससे यह खुलासा होता है कि देश के कोयला उत्पादन में अकेले कोरबा जिले का कितना बड़ा योगदान है। कोरबा जिले का कोयला उत्पादन पूरे झारखंड के कुल कोयला उत्पादन से अधिक है, और देश का 16 फीसदी कोयला कोरबा से निकलता है। अकेले कोरबा से पिछले साल 7 हजार 150 करोड़ रुपये के केंद्रीय टैक्स भारत सरकार को दिया गया है।

300 कोयला खदानों के बंद होने का खतरा

जारी रिपोर्ट और सरकारी आंकड़ों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में कोल इंडिया की दो तिहाई खदानें घाटे में चल रही हैं, और देश भर में कोल इंडिया की गिनी-चुनी खदानें ही मुनाफे में हैं। कोल इंडिया घाटे में चल रही खदानों को बंद करने का विचार कर रहा है। ऐसे में आने वाले दिनों में कोल इंडिया की 3 सौ खदानें बंद हो सकती हैं, जिनमें छत्तीसगढ़ की भी दो तिहाई खदानें शामिल हैं।

iFOREST की टीम ने कोरबा जिले का अध्ययन करके अभी वहां की अर्थव्यवस्था, रोजगार, कारोबार और टैक्स, कोयले का उत्पादन जैसी चीजों को सामने रखा है। आज के प्रस्तुतिकरण में इस रिपोर्ट के हवाले से यह बताया गया है कि कोयला उत्पादन घटने के साथ और कोयले खदानें बंद होने पर आज से 25-30 बरस बाद जाकर किस तरह की वैकल्पिक जिंदगी वहां हो सकती है, और इस बारे में राज्य सरकार को अभी से तैयारी करनी चाहिए। कोरबा जैसे जिले को तुरंत ही भविष्य के लिए तैयार करने की योजना शुरू की जानी चाहिए।

पावर प्लांट भी होंगे बंद..?

इस रिपोर्ट का कहना है कि कोरबा जिले के आधे थर्मल पावर प्लांट 30 साल से अधिक पुराने हैं और अगले 40 बरस में इन सबके बंद हो जाने की संभावना है। इसलिए अभी से यह योजना बनानी चाहिए कि खदान और बिजली घर के मजदूर, कर्मचारी आगे चलकर किस तरह का रोजगार पा सकते हैं, कारखानों और बिजलीघरों की जमीन और ढांचे का क्या इस्तेमाल हो सकता है, गहरी खुदी खदानों और खदान इलाकों में कौन से नए काम शुरू किए जा सकते हैं? इस तरह की योजना अभी से बनानी जरूरी है ताकि पूरे जिले और बाकी प्रदेश पर भी कोयले के बाद की जिंदगी के असर को देखते हुए फेरबदल किया जा सके।

आईफॉरेस्ट के सीईओ चंद्रभूषण ने कहा कि कोरबा में सबसे बड़ा प्रभाव कोयला खनन और कोयला आधारित उद्योग जैसे थर्मल पावर प्लांट, सड़क परिवहन, कोल वाशरी आदि में आजीविका के लिए निर्भर 85,000 से अधिक श्रमिकों द्वारा महसूस किया जाएगा। हालांकि, जिले की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को देखते हुए, जस्ट ट्रांजिशन एक समग्र विकास का रूप होना चाहिए।

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