नई दिल्ली। देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की सरकार है। लेकिन दिल्ली देश की राष्ट्रीय राजधानी होने और सुरक्षा को लेकर अतिसंवेदनशील होने के कारण पूर्ण रूप से केंद्र सरकार के नियंत्रण में है। अधिकार को लेकर दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच तनाव की स्थिति निर्मित होने लगी है। केंद्र और राज्य सरकार के बीच सामजस्य नहीं होने के कारण इसका असर दिल्ली के विकास पर पड़ने लगा है।

दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच अधिकारों पर नियंत्रण विवाद की सुनवाई अब पांच सदस्यीय सवंधान पीठ करेगी। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ गठित करने के लिए सहमत हो गया है। दरअसल, दिल्ली सरकार ट्रांसफर-पोस्टिंग समेत अधिकारियों पर पूर्ण नियंत्रण की मांग कर रही है। केंद्र की तरफ से सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने मामले को संविधान पीठ को सुनवाई के लिए रेफर करनी की मांग की थी।

इस मामले में आज हुई सुनवाई के दौरान आम आदमी पार्टी की ओर से पेश हुए अधिवक्ता ए एम सिंघवी ने कहा कि इस मुद्दे पर तत्काल सुनवाई की जरूरत है। उन्होंने कहा, मामला यह बहुत जरूरी है। और इसे सूचीबद्ध किया जाना चाहिए। इस पर सीजेआई ने कहा, हम जल्द से जल्द इसे सूचीबद्ध करेंगे।

28 अप्रैल को कोर्ट ने फैसला रखा था सुरक्षित

28 अप्रैल को केंद्र की दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। केंद्र सरकार की याचिका का दिल्ली सरकार ने कड़ा विरोध किया था। बता दें 6 मई को शीर्ष अदालत ने दिल्ली में सेवाओं के नियंत्रण के मुद्दे को पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेजा था।

फिलहाल ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार एलजी के पास

बता दें कि पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा इस मामले में संशोधन के बाद से अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार एलजी यानी उपराज्यपाल के पास है। गौरतलब है कि पिछली सुनवाई के दौरान केंद्र की तरफ से सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि ये मामला दिल्ली अधिनियम से हुए संशोघन से भी जुड़ा है।

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