केरल में जज ने महिला पर ही दोष मढ़ा

त्रिवेन्दम। केरल में कोझीकोड के सेशन कोर्ट ने यौन उत्पीड़न के एक मामले में प्रभावित महिला को ‘यौन उत्तेजक’ कपड़े पहनने की बात कहते हुए अभियुक्त को ज़मानत दे दी। अदालत के इस फै़सले को लेकर कानून विशेषज्ञ काफी नाराज हैं।

कोझीकोड सेशन कोर्ट के जज एस कृष्ण कुमार का यह फै़सला प्रकाश में आया। फै़सले में कहा गया, ”अभियुक्त की ओर से ज़मानत याचिका के साथ पेश किए गए फोटो से पता चलता है कि शिकायतकर्ता ने जो कपड़े पहने, वो यौन उत्तेजक थे।” इसके चलते जज ने माना है कि अभियुक्त सिविक चंद्रन उर्फ सीवी कुट्टन के ख़िलाफ़ पहली नज़र में आईपीसी की धारा 354 ए के तहत यौन उत्पीड़न का मामला नहीं बनता। अभियुक्त चंद्रन लेखक और एक्टिविस्ट हैं।

अदालत ने कहा, ”यह स्वीकार करते हुए कि उनके बीच कोई शारीरिक संपर्क नहीं हुआ, ऐसा मानना संभव नहीं है कि 74 साल की उम्र का और शारीरिक रूप से कमज़ोर कोई आदमी शिकायतकर्ता को ज़बरदस्ती अपनी गोद में बिठा सकता है और उनकी छाती को छू सकता है।”

10 दिन पहले भी दी थी जमानत

इस फै़सले के 10 दिन पहले भी सीवी कुट्टन को इन्हीं जज एस कृष्ण कुमार ने 42 साल की एक महिला के यौन उत्पीड़न के दूसरे आरोप में ज़मानत दे दी थी। उस केस के फै़सले में जज ने कहा था, ”यह मानना विश्वास से बिल्कुल परे है कि अभियुक्त ने यह अच्छी तरह से जानते हुए भी कि पीड़िता दलित है, उन्हें छुआ होगा।”

पहले वाले मामले में अभियुक्त कुट्टन पर आरोप था कि उन्होंने 8 फरवरी, 2020 को नंदी बीच पर एक कैंप लगाया था। जब प्रतिभागी कार्यक्रम से लौट रहे थे तो अभियुक्त ने 30 वर्षीय शिकायतकर्ता का हाथ पकड़ा और ज़बरदस्ती उन्हें एकांत में ले गए। आरोप लगाया गया कि ”अभियुक्त ने वहां शिकायतकर्ता को अपनी गोद में लेटने को कहा। उसके बाद उन्होंने उनकी छाती दबाई और उनका शील भंग करने की कोशिश की।”

यह मामला 29 जुलाई, 2022 को दर्ज किया गया था। हालांकि अभियुक्त के वकील ने इन आरोपों को उनके दुश्मनों द्वारा उनके खिलाफ गढ़ा गया और झूठा मामला करार दिया। अदालत को यह भी बताया गया कि अभियुक्त की बड़ी बेटी सरकार में एक अहम पद पर है जबकि दूसरी बेटी असिस्टेंट प्रोफेसर है। अभियुक्त के वकील ने तर्क दिया, ”यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि 30 साल की महिला ने उस शख़्स पर आरोप लगाए हैं जिनकी समाज में काफ़ी इज़्ज़त है।”

दूसरी ओर अभियुक्त की ज़मानत का विरोध करते हुए आरोप लगाने वाली महिला के वकील ने कहा, ”अभियुक्त का कवयित्रियों का उत्पीड़न करने की आदत रही है और अभियुक्त के खिलाफ यह दूसरा मामला है। कई और लोग अभियुक्त के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने को तैयार हैं।”

वहीं 16 जुलाई, 2022 को दर्ज दूसरे मामले में अभियुक्त कुट्टन के बारे में कहा गया कि ”ऊंची जाति के इस अभियुक्त ने शिकायत करने वाली महिला से प्यार का इज़हार किया और अचानक उनकी गर्दन के निचले हिस्से को चूम लिया।” इस मामले की पीड़िता ने 16 जुलाई 2022 को शिकायत दर्ज करवाई।

अभियुक्त के वकील ने इस आरोप को ‘निहायती अविश्वसनीय’ करार देते हुए तर्क दिया कि ”अभियुक्त 74 साल के हैं, जबकि पीड़िता 42 साल की हैं। विभिन्न बैठकों की तस्वीरों को देखकर पता चलता है कि अभियुक्त बिना किसी सहायता के खड़े नहीं हो सकते। वहीं आरोप लगाने वाली महिला अभियुक्त से क़द में लंबी भी है। इसलिए अभियुक्त की उम्र और ख़राब सेहत को देखते हुए यह यक़ीन नहीं किया जा सकता कि बिना सहमति के वे आरोप लगाने वाली महिला की पीठ चूम सकते हैं।”

अदालत में कुछ तस्वीरें पेश कर दावा किया गया कि महिला और अभियुक्त के बीच क़रीबी संबंध थे और उनके बीच आरोप लगाने वाली महिला की रचना के प्रकाशन को लेकर कुछ विवाद था। बचाव पक्ष ने अदालत को बताया कि महिला के साथ यौन उत्पीड़न हुआ था और उन्होंने सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों पर अपने मानसिक सदमे के बारे में बताया था।

फ़ैसले में कहा गया, ”पीड़िता ने अभियुक्त पर उसकी जाति जानकर उन पर छूने के जो आरोप लगाए हैं, उसे मानना बहुत अविश्वसनीय है। अभियुक्त सुधारवादी हैं और सामाजिक गतिविधियों से जुड़े हैं। वे जाति व्यवस्था के खिलाफ हैं, वे जातिमुक्त समाज के लिए लिखते और लड़ते आए हैं।”

अदालत ने यह भी कहा, ”यहां उपलब्ध दस्तावेज़ों से साफ ज़ाहिर होता है कि यह अभियुक्त की समाज में छवि खराब करने का प्रयास है। वे जाति प्रथा के खिलाफ लड़ाई और अन्य आंदोलनों से जुड़े रहे हैं।” अदालत ने कहा कि ऐसे में पहली नज़र में अभियुक्त पर अनुसूचित जाति और अनसूचित जनजाति उत्पीड़न क़ानून के तहत मामला नहीं बनता।

इस फै़सले के बारे में केरल हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस कमाल पाशा ने कहा, ”जज ने इस फ़ैसले में, पीड़िता के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की है। उनका यह नज़रिया पूरी तरह से ‘पुरुष वर्चस्ववाद’ है। आदेश में वे पीड़िता के कपड़ों को दूसरों के लिए यौन उत्तेजक करार देनी वाली टिप्पणी करते हैं। वे ऐसी टिप्पणी कैसे कर सकते हैं?”

जस्टिस पाशा आगे कहते हैं, ”जज ये कैसे कह सकते हैं कि 74 साल के किसी शख़्स के लिए किसी महिला का यौन शोषण करना आसान नहीं है? कई साल पहले मेरे सामने एक मामला आया था, जिसमें 78 साल के एक शख्स ने 88 साल की महिला से बलात्कार किया था। ऐसे मामलों का उम्र से कोई लेना-देना नहीं होता।”

अदालत के फैसले में की गई टिप्पणियों पर जस्टिस पाशा ने बताया कि इसके खिलाफ पीड़ित महिला निश्चित तौर पर हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटा सकती हैं। वो कहते हैं, “अभियुक्त को ज़मानत दिया जाना कोई मसला नहीं है। लेकिन अदालत का फ़ैसला ऐसे नज़रियों पर आधारित नहीं हो सकता. मान लें कि किसी महिला ने कपड़े नहीं पहने, तो क्या कोई उसके साथ बलात्कार होने की बात कह सकता है?” जस्टिस पाशा कहते हैं, ”ये महिला को तय करना है कि उसे क्या पहनना है। ये मर्द नहीं कह सकता है कि महिला को कौन से कपड़े पहनना चाहिए।

Hindi News के लिए जुड़ें हमारे साथ हमारे
फेसबुक, ट्विटरयूट्यूब, इंस्टाग्राम, लिंक्डइन, टेलीग्रामकू और वॉट्सएप, पर