IPS अधिकारी

रायपुर। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर राष्ट्रपति के सराहनीय सेवा पदक से नवाजे गए IPS अफसर और आईजी, बिलासपुर की जिम्मेदारी संभाल रहे रतन लाल डांगी ने अपने IPS बनने का किस्सा सोशल मीडिया में शेयर किया है। उन्होंने Facebook पर जिस वाकये का जिक्र किया है, आइये पढ़ते हैं उन्हीं की जुबानी…

“एक वाक़या जिसने लक्ष्य को शीघ्र प्राप्ति की ओर अग्रसर किया।”
“तुम्हारे जैसे लोग यूपीएससी/आरपीएससी परीक्षा नहीं पास कर सकते। क्यूँ समय बर्बाद करते हो?”

“बात उस समय (1996-97) की है जब मैं DIET कुचामन सिटी, नागौर में लैब असिस्टेंट के पद पर पदस्थ था। कार्यालय समय के बाद जब भी समय मिलता प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए घर में देर तक पढ़ता रहता था। एक रात में अचानक तबीयत बिगड़ गई। मुझे बेहोशी आ गई। मकान मालिक और मिसेज ने मुझे हॉस्पिटल ले जाकर एडमिट कराया।

यह घटना जो मेरे अहम पर चोट थी

डॉक्टर की देखरेख में सुबह मुझे होश आ गया। तब मैंने पाया कि मैं तो हॉस्पिटल के बेड पर हूं। फिर मिसेज ने रात की पूरी कहानी बताई की कल रात में क्या हुआ था ? उसी दौरान एक घटना घटित हुई जो मुझे आज भी कभी कभी याद आ ही जाती है। वो घटना मेरी काबिलियत पर सवाल था। मेरे भविष्य पर सवाल था। मेरे अहम पर चोट थी।

जब तक मैंने अपने को साबित नहीं कर दिया उस समय तक ऐसा ही महसूस होता था। लेकिन यह सोचकर उनका धन्यवाद भी देता हूं की काश वो ऐसा नहीं बोलते तो मैं वही रुक जाता। उस सुबह हॉस्पिटल के उस वार्ड में मेरे कार्यालय से एक सज्जन आए।

उनकी नजर मेरे पर पड़ी। तुरंत पूछा, क्या हुआ ? कैसे बीमार हो गए ? मैंने बताया सर मैं कल रात में खाना खाने के बाद स्टडी कर रहा था । तब अचानक पेट में दर्द उठा था उसके बाद मुझे पता ही नहीं चला कि क्या हुआ ? मुझे यहां लेकर आ गए अब ठीक हूं।

आइने में शक्ल…

उन्होंने पूछा अब क्या स्टडी कर रहे हो ? मैंने बोला सर मैं आरएएस/आईएएस की परीक्षा की तैयारी करता हूं। मेरा ऐसा बोलना हुआ की तुरंत अपनी भंगिमा बदल कर बोले। तुम जैसे लोग ऐसे एग्जाम पास नही कर सकते? क्यूं अपना समय बर्बाद कर रहे हो ? ऐसे ही शरीर को कष्ट दे रहे हो ? ऐसे परीक्षा पास करने वाले लोग दूसरे ही तरह के होते है ? आइने में शक्ल अच्छे से देखना ?

मैं चुपचाप सुन रहा था। कुछ बोलते भी नहीं बन रहा था। मैंने इतना ही बोला जी सर मैं ध्यान रखूंगा। और वो चले गए। एक तो अस्पताल में भर्ती, दूसरा सुबह-सुबह ऐसी निरुत्साहित करने वाली बातें सुनकर मन खिन्न सा हो गया। लेकिन यह सब ज़ेहन में बैठ गया की घर लौटने के अब तो और ज़्यादा मेहनत करूंगा। एक दिन मौका मिलेगा तो इन सर को बताऊंगा कि आपका ऑब्जर्वेशन ग़लत था। समय बीतता गया। मैं सर की बात को ग़लत साबित करके तहसीलदार सेवा में आ गया था।

4 साल बाद जब वो फिर मिले

समय का चक्र घूमता गया (लगभग 4 साल बाद )। अचानक एक दिन एक सज्जन मेरे ऑफिस में आकर मिलने के लिए स्लिप भिजवाए। स्लिप में नाम पढ़ा कुछ जाना पहचाना लगा। सज्जन को बिना विलम्ब के अंदर बुलाए। मैंने खड़े होकर उनका अभिवादन किया। उन्होंने भी वैसा ही किया। मैंने पूछा- बताए क्या काम है? उन्होंने काम बताया जो मेरे कार्यालय से संबंधित ही था। मैंने तुरंत कर दिया। उनको पानी और चाय पिलाई।

फिर मैंने पूछा- सर, आपने मुझे पहचाना। वो बोले नही पहचान पाया। मैंने बोला सर मैं आपको अच्छे से जानता हूं ।आप DIET में अमुक साल में थे। मैं भी वही लैब असिस्टेंट था। बात सुनकर वो खुश हुए, लेकिन अगले ही क्षण उनके भाव बदल गए। जब मैंने उनको याद दिलाया कि सर एक बार आप कुचामन में किसी काम से अस्पताल आए हुए थे। उस दिन मैं वही एडमिट था। मुझे देखकर आप मेरे पास आए थे और आपने मुझसे बीमार कैसे हुए ? पूछा था ।

जब मैंने आपको बताया कि मैं आरएएस/आईएएस की तैयारी कर रहा हूं, तब आपने बोला की तुम कभी भी ये परीक्षा पास कर नही कर सकते। इतने कमजोर दिखते हो कि शक्ल से भी अधिकारी नहीं लगोगे, लेकिन सर मैं आज आपके सामने ही बैठा हूं। आपका आंकलन ग़लत हो गया। वो कुछ नहीं बोल पा रहे थे। फिर मैंने उनको नॉर्मल किया और बोला सर आपका बहुत बहुत आभारी हूं। हो सकता है आप इतना ताना नही मारते तो मैं तैयारी नही कर पाता और वहीं कहीं उसी पद पर काम करता रहता।

इतना सुनकर वो तुरंत ही जाने को तैयार हो गए। मैं उनको बाहर तक छोड़ने गया और अभिवादन के साथ विदा किया। इसके बाद मैंने सिविल सर्विसेज की परीक्षा पास की।

निगेटिव बातों से निराश न हों

कई बार कुछ बातें आपके जीवन को बदल देती है। बस आपको अपने पर विश्वास होना चाहिए । यह मायने नही रखता लोग आपके बारे में क्या राय रखते है। मायने यह रखता है कि आप अपने बारे में क्या राय रखते हैं। कुछ लोग आपको निरुत्साहित करने की कोशिश करेंगे लेकिन हौसला बनाए रखना। जब तक सफल ना हो जाएं, तब शांत रहकर अपनी तैयारी करते रहे। आपकी सफलता ही ऐसे लोगों को जवाब है ।

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