सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने फैसला दिया है कि किसी प्रकाशन में कोई लेख छपने पर मुख्य संपादक के खिलाफ अवमानना का मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। यह तभी चलाया जा सकता है जब आरोप विशेष रूप से मुख्य संपादक पर ही हों।

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस यूयू ललित की पीठ ने प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ बुक्स ऐक्ट, 1867 की धारा 7 कहती है कि अखबार या मैगजीन में में छपी सामग्री के लिए संपादक और मुद्रक जिम्मेदार होगा। मुख्य संपादक या एडिटर इन चीफ इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह तभी संभव है जब मुख्य संपादक के खिलाफ आरोप पर्याप्त और विशेष रूप से लगाए गए हों।

एक मामले की सुनवाई करते हुए अदालन ने कहा कि इस मामले में इंडिया टुडे के मुख्य संपादक अरुण पुरी के खिलाफ कोई आरोप नहीं है। ऐसे में यह नहीं माना जा सकता कि मुख्य संपादक भी लेख के लिए जिम्मेदार हैं। यह कहते हुए कोर्ट ने अरुण पुरी के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मामला समाप्त कर दिया।

क्या था मामला

मामला 2007 में इंडिया टुडे में छपे एक लेख से संबंधित था जिसमें ब्रिटेन में भारतीय उच्चायोग में तैनात तीन अधिकारियों द्वारा यौन शोषण किए जाने के आरोप थे और बाद में इन अधिकारियों को देश वापस बुला लिया गया था। इनमें से एक अधिकारी ने इस लेख पर पुरी और इंडिया टुडे के रिपोर्टरों के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया था। मामला दिल्ली की अदालत में विचाराधीन है। इस मामले को दिल्ली हाईकोर्ट ने समाप्त करने से इनकार कर दिया था। इसके खिलाफ पुरी सुप्रीम कोर्ट गए थे।

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