नई दिल्ली। आज के दिन को विश्व एड्स दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह इसलिए कि लोगों को एड्स को लेकर जागरूक किया जा सके। राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन एनएसीओ के मुताबिक, 2021 में भारत में एड्स के 62,967 नए मामले सामने आए थे और 41,968 लोगों की मौत हो गई थी। यानी हर दिन औसतन 115 मौतें। एड्स का कारण एचआईवी या ह्यूमन इम्युनोडिफेशिएंसी वायरस है। ये वायरस शरीर के इम्युन सिस्टम पर हमला करता है और उसे इतना कमजोर कर देता है कि शरीर दूसरा कोई संक्रमण या बीमारी झेलने के काबिल नहीं बचता।


एचआईवी के संक्रमण के मामले में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, अब भी ये वायरस हर साल लाखों लोगों को संक्रमित कर रहा है. 2021 के आखिर तक दुनिया में 3.84 करोड़ लोग ऐसे थे जो इस वायरस से संक्रमित थे. 2021 में दुनियाभर में 6.5 लाख लोगों की मौत का कारण एचआईवी ही था।
एचआईवी ऐसा वायरस है, जिसका समय पर अगर इलाज नहीं किया गया तो ये आगे चलकर एड्स की बीमारी बन जाता है। इसका अभी तक कोई पुख्ता इलाज नहीं है, लेकिन कुछ दवाओं के सहारे वायरल लोड को कम किया जा सकता है, जिससे शरीर का इम्युन सिस्टम मजबूत बना रहता है।


एचआईवी का पता 1981 में ही चल गया था, लेकिन भारत में इसका पहला मामला 1986 में सामने आया था. तब चेन्नई की रहने वालीं कुछ सेक्स वर्कर्स में इस संक्रमण की पुष्टि हुई थी।  उस समय तक दुनिया के कई देशों में एचआईवी पहुंच चुका था और भारत में भी इसकी एंट्री हो गई थी। इसी साल मध्य प्रदेश के रहने वाले एक्टिविस्ट चंद्र शेखर गौर ने एक आरटीआई दायर की थी, जिसके जवाब में नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन ने बताया है कि 10 साल में भारत में 17 लाख से ज्यादा लोग असुरक्षित यौन संबंधों के कारण एचआईवी की चपेट में आए हैं। एनओसीए के मुताबिक, 2011 से 2021 के बीच 15,782 लोग ऐसे हैं जो संक्रमित खून के जरिए एचआईवी पॉजिटिव हुए हैं। जबकि 4,423 बच्चे माओं के जरिए संक्रमित हुए हैं।


एचआईवी से संक्रमित होने का सबसे बड़ा कारण असुरक्षित यौन संबंध है।  कई मामलों में संक्रमित खून के संपर्क में आने से भी संक्रमण हो जाता है। वहीं, बच्चों में ये संक्रमण उनकी माताओं से आ जाता है। इस वायरस को दुनिया में आए 40 साल से ज्यादा समय हो चुका है, लेकिन अब तक इसका कोई ठोस इलाज नहीं है। इससे संक्रमित लोगों को एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी  दी जाती है, जिससे वायरल लोड कम होता है। अगर समय पर इलाज हो जाए तो काफी मदद मिलती है, लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो एड्स  होने का खतरा बढ़ जाता है।
क्या कहते हैं आंकड़े?


एनएसीओ के मुताबिक, 2021 में भारत में एड्स के 62,967 नए मामले सामने आए थे और 41,968 लोगों की मौत हो गई थी. यानी हर दिन औसतन 115 मौतें । यूएनएआईडीएस के आंकड़े बताते हैं कि 2021 तक भारत में 24 लाख लोग एचआईवी संक्रमित थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि कोरोना के कारण एचआईवी एड्स की रोकथाम का काम नहीं हो पाया है और हो सकता है कि इस कारण अगले 10 साल में 77 लाख लोगों की मौत हो जाए।


ऐसे फैलता है वायरस
पहली स्टेजः व्यक्ति के खून में एचआईवी का संक्रमण फैल जाता है। इस समय व्यक्ति बहुत से और लोगों में संक्रमण फैलने का खतरा सबसे ज्यादा होता है। इस स्टेज में फ्लू जैसे लक्षण दिखते हैं। हालांकि, कई बार संक्रमित व्यक्ति को कोई लक्षण भी महसूस नहीं होते।


दूसरी स्टेजः ये वो स्टेज होती है जिसमें संक्रमित व्यक्ति में कोई लक्षण नहीं दिखता, लेकिन वायरस एक्टिव रहता है। कई बार 10 साल से भी ज्यादा वक्त गुजर जाता है, लेकिन व्यक्ति को दवा की जरूरत नहीं पड़ती। इस दौरान व्यक्ति संक्रमण फैला सकता है। आखिर में वायरल लोड बढ़ जाता है और व्यक्ति में लक्षण नजर आने लगते हैं।


तीसरी स्टेजः अगर एचआईवी का पता लगते ही दवा लेनी शुरू कर दी जाए तो इस स्टेज में पहुंचने की आशंका बेहद कम होती है। एचआईवी का ये सबसे गंभीर स्टेज है, जिसमें व्यक्ति एड्स से पीड़ित हो जाता है। एड्स होने पर व्यक्ति में वायरल लोड बहुत ज्यादा हो जाता है और वो काफी संक्रामक हो जाता है। इस स्टेज में बिना इलाज कराए व्यक्ति का 3 साल जी पाना भी मुश्किल होता है।


कैसे बचा जाए?
एचआईवी का संक्रमण फैलने का सबसे ज्यादा खतरा असुरक्षित यौन संबंध से होता है। अगर एचआईवी का पता चल जाए तो घबराने की बजाय तुरंत एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी शुरू करें, क्योंकि एचआईवी शरीर को बहुत कमजोर बना देता है और धीरे-धीरे दूसरी बीमारियां भी घेरने लगती हैं। अभी तक इसका इलाज भले ही नहीं है, लेकिन दवाओं के जरिए इससे बचा जा सकता है।

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