रविंद्र चौबे
Suspense Remains On The Reservation Bill -मंत्री चौबे बोले लीगल ओपिनियन में तीन-तीन दिन लगना चिंतनीय

टीआरपी डेस्क

आरक्षण विधेयक पर बात करते हुए संसदीय कार्य मंत्री रविंद्र चौबे ने चिंता जाहिर करते हुए कहा की विधेयक सर्वसम्मति से पारित हुआ था। महामहिम ने स्वयं कहा था कि विशेष सत्र बुलाकर आरक्षण के पक्ष में कानून बनना चाहिए। उन्होंने स्टेटमेंट भी दिया था कि जैसे ही बिल उनके पास आएगा वे तत्काल अनुमति जारी कर देंगी। इस आधार पर हम पांच मंत्रियों और प्रशासनिक अधिकारियों ने उसी दिन राजभवन जाकर विधानसभा की कार्यवाही से उन्हें अवगत कराया था। आज तीसरा दिन हो गया।

मुझे लगता है कि महामहिम को भी इसमें शीघ्रता करना चाहिए। छत्तीसगढ़ के हजारों-हजार लोगों की नियुक्तियों, भविष्य और अवसर का सवाल है। उम्मीद है कि आज हस्ताक्षर हो जाएगा। लेकिन महामहिम के दफ्तर में केवल लीगल ओपिनियन में तीन-तीन दिन लग जाना हम लोगों को चिंतित करता है।

छत्तीसगढ़ में आरक्षण का मुद्दा विषेश सत्र आहूत होने के बाद भी सुलझने का नाम नहीं ले रहा । मुद्दे पर बयान बाजी के जरिए पक्ष विपक्ष दोनों ही आने सामने है। बता दें की प्रदेश में आरक्षण का मुद्दा उस समय गरमाया जब छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने 19 सितम्बर को गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी मामले में फैसला सुनाते ही छत्तीसगढ़ में चल रहे 58% आरक्षण को असंवैधानिक बताकर खारिज कर दिया।

क्या है बड़े सवाल

इस पुरे मामले पर विधयक पारित होने के बाद भी कुछ सवाल है जो सुलझ नहीं पाए है जैसे मुख्य रूप से पोस्टिंग, वेतन, रोस्टर और विभाग में वेकेंसी इत्यादि। जानकारों की मने तो आरक्षण का मुद्दा पूरी तरह से राजनैती है इसमें स्टेट गवर्नमेंट अपना बॉल बीजेपी के पक्ष में करना चाहती हैं। प्रदेश सरकार इस आरक्षण को 9 वी अनुसूची में लाना चाहती हैं पर ये बिना पार्लियामेंट के कैसे संभव है ये खुद में एक बड़ा सवाल है। प्रदेश सरकार ने विधानसभा में इसे जुड़े कोई दस्तावेज कोई अकड़े प्रस्तुत नहीं किये है न जनसंख्या आधार पर ना ही जाती के आधार पर और नहीं किसी तरह के आयोग के रिपोर्ट सदन में पेश किये गए है जो की खुद में एक बहुत बढ़ा प्रधना है। कानून में कुछ तकनीकी अड़चने हैं जो इसे लंबी कानूनी लड़ाई में फंसा सकती हैं। ऐसा हुआ तो आरक्षित वर्गों का नुकसान होगा। सबसे पहली बात यह कि अधिनियमों में सिर्फ जनसंख्या के आधार पर आरक्षण तय किया गया है।
OBC को 27% आरक्षण देने का फ़ैसला 42 साल पुरानी मंडल आयोग की केंद्र शासन अधीन सेवाओं पर दी गई सिफारिश पर आधारित है। यह भी 2021 में आए मराठा आरक्षण फैसले का उल्लंघन है। कुल आरक्षण का 50% की सीमा से बहुत अधिक होना भी एक बड़ी पेचीदगी है। अनुसूचित क्षेत्र को इस बार विशिष्ट परिस्थिति के तौर पर पेश किया गया लेकिन वर्ग एक और दो की नौकरियों में अनुसूचित क्षेत्रों की कोई अलग हिस्सेदारी ही नहीं है। यह 1992 के मंडल फैसले का उल्लंघन है। प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के आंकड़े विभाग – श्रेणीवार जमा किए गए हैं न कि कॉडरवार। यह भी मंडल फैसले और 2022 के जरनैल सिंह फैसले का उल्लंघन है।

हाई कोर्ट का यह था फैसला

हाई कोर्ट ने विषय पर 19 सितम्बर को गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी मामले में फैसला सुनाते ही प्रदेश में चल रहे 58% आरक्षण को असंवैधानिक बताकर खारिज कर दिया। जिसे प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट तक लेकर गयी पर वहा इसे प्रदेश का अंदरूनी मामला बताते हुए ख़ारिज कर दिया गया।

पहले ये था आरक्षण का पैमाना

छत्तीसगढ़ की सरकारी नौकरियों और शिक्षा में अभी 19 सितम्बर तक 58% आरक्षण था। इनमें से अनुसूचित जाति को 12%, अनुसूचित जनजाति को 32% और अन्य पिछड़ा वर्ग को 14% आरक्षण लागू था। कुछ हद तक सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए 10% आरक्षण की व्यवस्था थी। 19 सितम्बर को आए बिलासपुर उच्च न्यायालय के फैसले से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण खत्म हो गया। उसके बाद सरकार ने नया विधेयक लाकर आरक्षण बहाल करने का फैसला किया था। 24 नवम्बर को कैबिनेट ने नये विधेयक को मंजूरी दी। दो अक्टूबर को इसे विधानसभा से पारित करा लिया गया।

ऐसा होगा नया आरक्षण सिस्टम

संशोधन विधेयक-2022 और शैक्षणिक संस्थानों में (आरक्षण) संशोधन विधेयक-2022 में अनुसूचित जाति के लिए 13%, अनुसूचित जनजाति के लिए 32%, अन्य पिछड़ा वर्ग को 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए 4% आरक्षण की व्यवस्था की गई है। इसके अलावा जिला कैडर में तृतीय और चतुर्थ वर्ग की भर्तियों में संबंधित जिलों में अनुसूचित जाति और जनजाति की जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण तय होने की व्यवस्था बनी है। पिछड़ा वर्ग के लिए यह 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए 4% ही रहने वाली है।