RAKH PRADUSHAN

0 शमी इमाम

कोरबा। प्रदेश के जिन इलाकों में बिजली का उत्पादन करने वाले कारखाने संचालित हैं, वहां का वायु प्रदूषित होने के साथ ही जल श्रोत भी राख के चलते प्रदूषित हो रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण मंडल से जुड़े अमले का इस ओर अक्सर ध्यान नहीं होता, जिसकी वजह कारखाना संचालकों की मनमानियां बढ़ती जा रही हैं।

ऊपर जो तस्वीर आप देख रहे हैं वह कोरबा शहर का है, जहां हसदेव ताप विद्युत संयंत्र (HTPP) कोरबा पश्चिम के डंगनियाखार स्थित राखड़ बांध (ASH DYKE) से राख मिश्रित पानी अहिरन नदी में समा रहा है। आसपास के लोगों ने बताया कि राख युक्त पानी बहाने का काम काफी समय से लगातार जारी है। इससे अहिरन नदी ही नहीं, यहां की जीवनदायिनी हसदेव नदी का अस्तित्व भी खतरे में है, जिसमें अहिरन का पानी जाकर मिलता है।

शहर के चारों ओर संचालित हैं पावर प्लांट

ऊर्जा नगरी के नाम से मशहूर कोरबा शहर पर नजर डालें तो यहां से गुजरने वाले नदी नालों के किनारे CSEB, NTPC, BALCO सहित कुछ और निजी घरानों के पॉवर प्लांट और कोयला खदान भी संचालित हैं। नियम के मुताबिक प्लांटों का अपना राखड़ बांध (ASH DYKE) होना जरुरी है, साथ ही यहां से उपचारित (छाना हुआ) पानी ही जल श्रोतों में छोड़े जाने या फिर से पॉवर प्लांट में दोबारा इस्तेमाल करने का नियम है, मगर अधिकांश प्लांट पानी को छानने की औपचारिकता भर पूरी करते हैं, और उनके डाइक से इस तरह दूधिया राखयुक्त पानी नदी-नालों में छोड़ा जाता है।

बता दें कि यहां की डंगनियाखार बस्ती के पास अहिरन नदी के किनारे राखड़ बांध (ASH DYKE) निर्मित है। इसकी देखरेख के लिए बाकायदा कर्मचारी भी नियुक्त किए गए हैं, मगर अधिकारियों की अनदेखी की वजह से भारी मात्रा में राखड़ युक्त पानी अहिरन नदी में बहाया जा रहा है।

जल-जनित रोगों का होता है खतरा

राख मिश्रित पानी से नदी का स्वच्छ पानी दूषित हो रहा है। जिससे नदी किनारे बसे ग्रामवासियों व जानवर इसी राख युक्त पानी का पीने सहित दिनचर्या में उपयोग करने को विवश हैं। राखड़ युक्त पानी के उपयोग से आमजनों को जल-जनित बीमारियों का खतरा बना रहता है। लोगों को चर्मरोग हो रहा है और पेट संबंधी बीमारियां भी हो रही हैं। साथ ही पालतू मवेशी भी रोगी होने के साथ ही समय से पहले ही काल के गाल में समा रहे हैं।

पल्ला झाड़ लेते हैं अधिकारी

इस संबंध में जब ASH DYKE की देखरेख में लगे CSEB के JE राजिनेश ठाकुर से बात की गई तो उन्होंने साफ कह दिया कि पानी साफ करके ही नदी में छोड़ा जा रहा है। जब उनसे कहा गया कि पानी साफ नहीं है तब उन्होंने पल्ला झाड़ते हुए साफ कह दिया कि ये राखयुक्त पानी नही है, जबकि तस्वीरें साफ बता रही हैं, यहां सफेद रंग का राखयुक्त पानी, अहिरन नदी के स्वच्छ जल में मिलकर उसे दूषित कर रहा है।

इस संबंध में जब कोरबा जिले के पर्यावरण संरक्षण अधिकारी अधिकारी शैलेश पिस्दा से दूरभाष नंबर 09685095206 पर संपर्क करने का प्रयास किया गया तब घंटी बजने के बावजूद उनका फोन ही नहीं उठा।

कोयले से भी फ़ैल रहा है प्रदूषण

कोरबा जिले में अगर यहां के वायुमंडल पर नजर डालें तो पूरा इलाका धुंधला सा नजर आता है, यहां कोयले की खदानों से होने वाली ब्लास्टिंग और कोयले की ट्रांस्पोर्टिंग वाले इलाके भी बुरी तरह प्रदूषित हैं, वहीं जिन इलाकों में कोल वाशरी संचालित हैं, वहां भी कोयला युक्त पानी नदी में छोड़ा जा रहा है। यहां के पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी जिस अमले पर है, उसकी लापरवाही का ही नतीजा है कि यहां के नदी-नाले भी प्रदूषित नजर आते हैं।

कई जिले झेल रहे हैं प्रदूषण की मार

प्रदेश के जिन जिलों में कोयला खदान और पॉवर प्लांट संचालित हैं, वहां का कोरबा की तरह ही हाल है। रायगढ़, जांजगीर-चांपा सहित राजधानी रायपुर में भी प्रदूषण का स्तर इतना खतरनाक है कि ये शहर देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शुमार हैं। कॉर्पोरेट के बोझ तले दबे पर्यावरण संरक्षण मंडल से अब तो यह उम्मीद भी ख़त्म हो गई है कि वह शहरों में लगातार बढ़ते जा रहे प्रदूषण को रोकने के लिए कोई पहल करेगा।

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