asam bhaisa

रायपुर। असम के मानस टाइगर रिजर्व से छत्तीसगढ़ के बारनवापारा अभ्यारण लाए जाने वाले वन भैसों के संबंध में वन्य जीव प्रेमी नितिन सिंघवी द्वारा लगाई गई जनहित याचिका का निराकरण छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने 10 अप्रैल 2023 को किया। सुनवाई में छत्तीसगढ़ वन विभाग ने बताया था कि असम वन विभाग ने वन भैसों को ले जाने की अनुमति कुछ अनिवार्य शर्तों के साथ दी है। कोर्ट के आदेश अनुसार असम सरकार द्वारा लगाई गई शर्तों का पालन करना अनिवार्य है।

यह थी अनिवार्य शर्त

दरअसल 2019 में मानस टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण से 5 वन भैंसा छत्तीसगढ़ भेजने की अनुमति मांगी थी। एनटीसीए की सर्वोच्च तकनीकी समिति ने नवम्बर 2019 में सैद्धांतिक अनुमति देते हुए यह जस्टिफिकेशन माँगा कि नई जगह (छत्तीसगढ़) में वन भैंसा पारिस्थितिकी रूप से कैसा रहेगा? एनटीसीए ने असम के मुख्य वनजीव संरक्षक को वन भैंसों को छत्तीसगढ़ भेजे जाने के संबंध में इकोलॉजिकल सूटेबिलिटी रिपोर्ट भेजने के लिए आदेशित किया।

गौरतलब है कि एनटीसीए की तकनीकी समिति की बैठक के एक माह पूर्व, अक्टूबर 2019 में सिंघवी ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के मंत्री, सचिव और अन्य अधिकारियों को दोनों प्रदेशों की जलवायु व वनस्पति में अंतर को देखते हुए यह अध्ययन कराने की मांग की थी।

बिना इको स्टडी के पकड़े वन भैंसे

इकोलॉजिकल सूटेबिलिटी स्टडी ना होने के बावजूद छत्तीसगढ़ वन विभाग ने अप्रैल 2020 में मानस से दो वन भैसों को पकड़ कर बारनवापारा के बाड़े में रखा हुआ है। परंतु इस बार असम के मुख्य वन्यजीव संरक्षक ने 14 अप्रैल 2023 को जारी अनुमति में एनटीसीए की शर्तों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करने का आदेश दे दिया। इसके बाद 8 दिनों में ही छत्तीसगढ़ वन विभाग ने असम में 4 मादा वन भैंसा पकड़ ली। परंतु इसी बीच जनहित याचिका की सुनवाई में याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि जो इकोलॉजिकल सूटेबिलिटी स्टडी असम को करवानी थी वो अभी तक नहीं कराई गई है और दोनों प्रदेशों के वन भैसों में वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया के अनुसार जेनेटिक फर्क है। 22 मार्च को कोर्ट ने वन भैसों को लाने पर रोक लगा दी।

2 दिनों में कैसे हो गई स्टडी? वन विभाग खुलासा करे

10 मार्च को कोर्ट में अंतिम सुनवाई तक छत्तीसगढ़ वन विभाग यह नहीं बता सका था कि चाही गई स्टडी करा ली गई है कि नहीं। 10 तारीख के कोर्ट के आदेश के 2 दिनों पश्चात 13 अप्रैल को छत्तीसगढ़ वन विभाग वन भैसों को असम से लेकर निकल गया। सिंघवी ने छत्तीसगढ़ वन विभाग से खुलासा करने को कहा कि:-

  1. असम के वन भैंसों के लिए पारिस्थितिकी रूप से छत्तीसगढ़ कैसा रहेगा? यह इकोलॉजिकल सूटेबिलिटी अध्ययन जीव-वैज्ञानिकों और विशेषज्ञ द्वारा कराया जाना होता है। वन विभाग खुलासा करे कि असम से अध्ययन करने के लिए असम की टीम 10 अप्रैल के निर्णय के बाद छत्तीसगढ़ कब आई?
  2. एनटीसीए को अध्ययन रिपोर्ट असम को भेजनी थी। वन विभाग बताये कि असम ने एनटीसीए को रिपोर्ट कब भेजी?
  3. वन विभाग बताये कि रिपोर्ट के आधार पर एनटीसीए की तकनिकी समिति ने वन भैंसों को छत्तीसगढ़ लाने के लिए अंतिम स्वीकृति कब जारी की और तकनिकी समिति की यह बैठक कब हुई?
  4. अगर इको स्टडी करा ली गई है, तो स्टडी वन विभाग को सार्वजनिक कर वेब साईट अपलोड करनी चाहिए।

क्या यह है रिपोर्ट?

उत्साहित कुछ अधिकारी जोर शोर से यह दावा कर रहे है कि असम से 2020 में लाये गए वन भैसों का स्वास्थ्य बहुत अच्छा है। जब इन्हें लाया गया था तब वजन 2 से 2.5 क्विंटल था अब 10 क्विंटल हो गया है। इसलिए छत्तीसगढ़ इनके लिए इकोलॉजिकलली सूटेबल है। जबकि इन वन भैंसों को 3 साल से 25 एकड़ के बाड़े में बंद करके रखा हुआ है और प्रतिदिन मल्टी विटामिन, कैल्शियम, मिनरल के साथ अंकुरित चना, चना चूनी, चना छिलका, दलिया, कोहड़ा, 22 किलो दूध मक्खन ब्रांड का अनाज खिला रहे हैं, नेपियर घास दी जा रही है। सिंघवी ने पूछा कि ये कैसा वन जीव संरक्षण है कि वन भैसों को आजीवन कैद कर मानव निर्मित अनाज, दवाइयां, डिवर्मिंग करके हृष्ट पुष्ट बनाया जा रहा है? किस प्रोटोकॉल के तहत यह किया जा रहा है?

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