राजनांदगांव। ग्रामीणों ने जिस दुकान का बहिष्कार किया, उस दुकान से राशन खरीदने पर एक परिवार का भी सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया। इससे त्रस्त परिवार ने खुद को अपने मकान में कैद कर लिया। इसी दौरान परिवार की गृहस्वामिनी की मौत हो गई, और इस मामले का खुलासा हुआ। इस घटना के बाद पुलिस और प्रशासन ने संज्ञान लेते हुए परिवार की पूछ-परख शुरू की है।

यह मामला राजनांदगांव जिले के छुरिया ब्लॉक के गैंदाटोला क्षेत्र के टिपानगढ़ का है, जहां के एक परिवार ने कथित सामाजिक बहिष्कार और राशन की तंगी से खुद को मकान में ही बंद कर लिया। बाद में खुलासा होने पर पुलिस की मदद से मकान में खुद को नजर बंद करने वाले सदस्यों को अस्पताल पहुंचाया गया, जहां 50 साल की महिला को मृत घोषित कर दिया गया। वहीं परिवार के 3 अन्य सदस्यों की हालत खतरे से बाहर बताई जा रही है।
देर से मिली घटना की जानकारी
यह घटना ग्राम टिपानगढ़ के साहू परिवार की है और 19 मई को हुई 50 साल की सुखवती बाई साहू की मौत और परिवार के बाकी सदस्यों को छुरिया के सरकारी अस्पताल में भर्ती किए जाने का खुलासा कल याने मंगलवार की शाम को हुआ। महिला के पति और दोनों बच्चों की हालत अब बेहतर बताई जा रही है। महिला का तीन दिन पहले छुरिया की जगह राजनांदगांव में पोस्टमार्टम किया गया, जिसकी रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है।
ग्रामीणों की जिद के चलते घटित हुई घटना..?
इस पूरे घटनाक्रम के पीछे की वजह सामाजिक बहिष्कार बताया जा रहा है। मिल रही जानकारी के मुताबिक ग्रामीण अपने गांव टिपानगढ़ में सरकारी राशन दुकान की मांग को लेकर अड़े हुए थे। ग्राम टिपानगढ़ के ग्रामीण गांव में खाद्य गोदाम की मांग लंबे समय से कर रहे हैं लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। राशन लेने के लिए गांव के लोगों को लगभग 20 किमी की दूरी तय कर छुरिया डोंगरी जाना पड़ता है। इसे लेकर गांव में नाराजगी थी और एक बैठक में तय हुआ था कि गांव का कोई भी व्यक्ति राशन देने छुरिया डोंगरी नहीं जाएगा।
राशन खरीदा तो किया बहिष्कार
इस बीच टिपानगढ का रहने वाला भागीरथी साहू हाल में राशन लेने छुरिया डोंगरी के संबंधित दुकान में चला गया। इसकी खबर गांव के लोगों को मिली, तो उन्होंने बैठक करके मृतका के परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर दिया।
भूख-प्यास से बेहाल हुआ परिवार
बताया जा रहा है कि सामाजिक बहिष्कार के कारण साहू परिवार की प्रतिष्ठा आहत हुई और इस परिवार ने खुद को मकान में बंद कर लिया था। हालांकि यह भी चर्चा है कि पिछले दिनों मृतिका सुखबती साहू के एक पुत्र का आकस्मिक निधन हो गया। जिसके कारण परिवार ने सभी से संपर्क खत्म कर खुद को मकान में ही बंद कर लिया था। परिवार में मुखिया भागीरथी साहू के अलावा उनकी पत्नी सुखवती बाई, 18 साल के बेटे चेतन, 7 साल की बेटी खुशबू शामिल हैं।
इस बीच सामाजिक बहिष्कार के चलते राशन दुकान से गांव में साहू परिवार को अनाज देना बंद कर दिया गया था। इस वजह से परिवार के सामने भूखों मरने की नौबत आ गई। गांव की राशन दुकान से सामान नहीं देने के लिए गांव के कुछ लोगों ने दबाव बना रखा था। किसी का सहयोग नहीं मिलने के कारण परिवार ने मकान में खुद को बंद कर लिया। नतीजा यह हुआ कि भूख-प्यास से परिवार की हालत खराब हो गई। इस दौरान परिवार की एक महिला की मौत हो गई।
बेसुध पड़े थे परिवार के सदस्य
इस मामले में यह जानकारी सामने आ रही है कि साहू परिवार की एक महिला घर पर किसी अनिष्ट की सूचना पर यहां पहुंची और मकान को अंदर से बंद देखा। घर में कोई हलचल नहीं होने और दरवाजा बंद होने पर उसने मदद की गुहार लगाई तब पुलिस को सूचना दी गई और किसी तरह मकान को खुलवाया गया। अंदर पूरा परिवार बेसुध पड़ा था। पुलिस ने परिवार के सभी सदस्यों पति, पत्नी और दो बच्चों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र छुरिया पहुंचाया। जहां चिकित्सकों ने परिवार की महिला मुखिया को मृत घोषित कर दिया।
अस्पताल में इलाज के दौरान महिला के पति भागीरथी साहू और 18 साल के बेटे चेतन, 7 साल की बेटी खुशबू तबियत संभलने के बाद इन सभी को डिस्चार्ज कर दिया गया है।
मामले की जांच में जुटा प्रशासन
महिला की मौत के मामले में सामाजिक बहिष्कार की बात सामने आने के बाद प्रशासन हरकत में आया है। जानकारी आ रही है कि आज प्रशासन की एक टीम और पुलिस बल गांव पहुंचा और मामले की छानबीन शुरू की। यहां इस बात का पता लगाया जा रहा है कि क्या साहू परिवार सामाजिक बहिष्कार से पीड़ित था और मौत की असली वजह क्या है। मामले में दोषियों पर कार्रवाई करने के लिए पुलिस साक्ष्य की तलाश कर रही है।
दशकों से कानून बनाने का हो रहा है प्रयास
छत्तीसगढ़ में अंधविश्वास और सामाजिक बहिष्कार जैसी कुरीतियों के खिलाफ सर्वाधिक मुहिम अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति ने चलाई है। पूर्व में भाजपा के शासनकाल में टोनही प्रताड़ना के खिलाफ कानून अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र के प्रयासों से बना, मगर सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ अब तक कोई भी कानून नहीं पारित हो सका है। यह हाल केवल छत्तीसगढ़ का नहीं बल्कि देश के अधिकांश राज्यों का है। इस कानून के नहीं होने से छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में लगभग हर रोज सामाजिक बहिष्कार और प्रताड़ना के मामले सामने आते हैं।
30 हजार से भी अधिक लोग प्रताड़ित
अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र बताते हैं कि हमारे यहाँ सामाजिक और जातिगत स्तर पर सक्रिय पंचायतों द्वारा सामाजिक बहिष्कार के मामले लगातार सामने आते रहते हैं। ग्रामीण अंचल में ऐसी घटनाएं बहुतायत से होती है, जिसमें जाति व समाज से बाहर विवाह करने, समाज के मुखिया का कहना न मानने, पंचायतों के मनमाने फरमान व फैसलों को सिर झुकाकर न पालन करने पर किसी व्यक्ति या उसके पूरे परिवार को समाज व जाति से बहिष्कार कर दिया जाता है, और उसका समाज में हुक्का पानी बंद कर दिया जाता है। कुछ मामलों में तो स्वच्छता मित्र बनने पर, तो कहीं आर.टी.आई. लगाने पर भी समाज से बहिष्कृत कर दिया गया है। पूरे प्रदेश में 30 हजार से अधिक व्यक्ति सामाजिक बहिष्कार जैसी कुरीति के शिकार हैं।

सक्षम कानून बनाने की है जरुरत
छत्तीसगढ़ में टोनही प्रताड़ना अधिनियम की तरह ही सामाजिक बहिष्कार और अन्धविश्वास के खिलाफ कानून बने इसके लिए बरसों से प्रयास हो रहा है। देश के सभी राज्यों में इसके लिए कानून बनाने की मुहिम अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति चला रही है और राज्य में इसके अध्यक्ष डॉ दिनेश मिश्र देश भर के सांसदों और विधायकों को अब तक हजारों पत्र लिख चुके हैं। उनका मानना है कि सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ सक्षम कानून बनना चाहिए।
डॉ मिश्र ने बताया कि पिछली बार भाजपा के शासनकाल में सामाजिक बहिष्कार कानून के लिए जो ड्राफ्ट तैयार किया गया था, उसे पारित करने से पहले ही सार्वजनिक कर दिया गया। जिसके बाद समाज के तथाकथित ठेकेदारों ने इसका विरोध शुरू कर दिया। लोगों का तर्क था कि समाज के अपने नियम कायदे होते हैं अगर इसमें छूट दी जाएगी तो लोग स्वच्छंद हो जायेंगे। इस तरह व्यापक विरोध को देखते हुए डॉ रमन की सरकार ने इस कानून को विधानसभा में पेश ही नहीं किया।

निजी विधेयक पेश हुआ तो सरकार ने ये कहा…
डॉ दिनेश मिश्र के प्रयासों से ही छग विधानसभा के आखिरी सत्र में वरिष्ठ कांग्रेस विधायक सत्यनारायण शर्मा ने सामाजिक बहिष्कार के विरुद्ध निजी विधेयक प्रस्तुत किया, मगर इस पर चर्चा होती, इससे पहले ही सत्ता पक्ष की ओर से जवाब आया कि सरकार खुद ही इसके लिए पहल करेगी और सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ कानून लाएगी। सरकार ने यह कह तो दिया है, मगर इस सरकार के कार्यकाल में यह कानून लाये जाने की सम्भावना फ़िलहाल नहीं है। अगली सरकार में इसके लिए फिर से नए सिरे से प्रयास करने की जरुरत पड़ेगी। डॉ मिश्र का कहना है कि सरकार को दृढ़ इच्छा शक्ति और कठोरता से इस कानून को लाना होगा अन्यथा पहले की तरह अगर समाज के तथाकथित ठकेदारों की नाराजगी को ध्यान में रखते हुए तुष्टिकरण की नीति अपनायी गई तो फिर इस कानून को पारित करने में बरसों लग जायेंगे।
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