नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच सैन्य गतिरोध चौथे वर्ष में प्रवेश कर गया है, भारतीय सेना आपातकालीन स्थितियों से निपटने के साथ-साथ पारंपरिक अभियानों को अंजाम देने के लिए पूर्वी लद्दाख सेक्टर में लगातार नए हथियार और क्षमताएं जोड़ रही है। हाल ही में सेना ने भारत में निर्मित धनुष होवित्जर को शामिल किया है जिसे बोफोर्स हॉवित्जर के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के आधार पर विकसित किया गया है और इसे और अधिक उन्नत बनाया गया है।


पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आते हैं। इन्हीं नापाक हरकतों को नाकाम करने के लिए भारतीय सेना सीमा पर हमेशा सतर्क और मुस्तैद रहती है. यहां तक की इस मुस्तैदी को और मजबूत करने के लिए समय-समय पर अभ्यास भी करती है.।एक बार फिर भारतीय सेना ने दुनिया की सबसे ऊंची नदी घाटियों में से एक सिंधु नदी को पार करने और दुश्मन के ठिकानों पर हमले करने के लिए पूर्वी लद्दाख में अभ्यास किया।

यह अभ्यास बड़ी संख्या में टैंक और बख्तरबंद वाहन के साथ किया गया। सूत्रोंं से मिली जानकारी के अनुसार टी-90 और टी-72 टैंकों और बीएमपी पैदल सेना के लड़ाकू वाहनों सहित भारतीय सेना द्वारा शक्तिशाली टैंकों को सिंधु नदी को पार करने के लिए विशेष अभ्यास किया गया. बता दें कि सिंधु नदी पाकिस्तान में प्रवेश करने से पहले पूरे लद्दाख सेक्टर के माध्यम से चीनी सेना द्वारा नियंत्रित तिब्बती क्षेत्र से बहती है।


आकस्मिक परिस्थितियों की तैयारी के लिए अभ्यास
सेना के अधिकारियों ने कहा कि इस तरह के अभ्यास आकस्मिक परिस्थितियों की तैयारी के लिए किए जाते हैं।जहां उन्हें इस क्षेत्र में घाटियों के मार्गों का उपयोग करके भारतीय क्षेत्रों पर कब्जा करने की कोशिश करने पर विरोधियों के खिलाफ कार्रवाई करनी होती है. भारतीय सेना दुनिया की उन चुनिंदा सेनाओं में से एक है जो 16,000 फीट तक की ऊंचाई पर और बड़ी संख्या में टैंकों का संचालन करती है।


जब चीनी सेना ने अपने प्रशिक्षण अभ्यास सैनिकों को हटाकर पूर्वी लद्दाख सेक्टर में आक्रामकता दिखाना शुरू कर दिया, तो भारतीय सेना ने पूर्वी लद्दाख सेक्टर में बड़ी संख्या में टैंक और बख्तरबंद लड़ाकू वाहन ला। मालूम हो कि लद्दाख में बड़ी खुली घाटियां हैं जो टैंक युद्ध के लिए बहुत अनुकूल हैं। पहले, भारतीय सेना पाकिस्तान के मोर्चे पर पंजाब सेक्टर में बड़े पैमाने पर इस तरह के अभ्यास करती थी ।  क्योंकि ऐसा माना जाता था कि केवल मैदानी और रेगिस्तानी इलाकों में ही टैंक युद्ध होंगे, लेकिन बाद में यह सोच बदल गई। सेना ने क्षेत्र में बख्तरबंद ताकत को इस हद तक मजबूत कर दिया है कि वे प्रतिद्वंद्वी के किसी भी दुस्साहस से निपट सकते हैं।