गरियाबंद : 4 जुलाई से सावन के पावन महीने की शुरुआत हो चुकी है। और आज सावन का पहला सोमवार है। वैसे तो सावन में हर दिन शुभ मन जाता है लेकिन सोमवार का विशेष महत्व होता है। छत्तीसगढ़ की धरा पर भी काफी प्राचीन और प्रसिद्ध महादेव के मंदिर है। जिनमें से एक है गरियाबंद जिले के राजिम में स्थित कुलेश्वर महादेव मंदिर। जहां साल के 12 महीने भक्तों का ताता लगा रहता है। वहीं सावन में बड़ी संख्या में लोग दूर-दूर से कुलेश्वर महादेव के दर्शन के लिए आते है।

तीन नदियों के संगम के कारण राजिम (Rajim) को छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) का प्रयाग कहा जाता है। इस स्थान का संबंध रामायण काल से भी जोड़ा जाता है। भगवान राम वनवास के दौरान छत्तीसगढ़ के कई स्थानों पर रहे। शबरी के झूठे बेर यहीं खाए तो दंडकारण्य में कई राक्षसों का वध भी किया। इसी छत्तीसगढ़ में एक ऐसा स्थान भी है जहां माता सीता ने भगवान शंकर की आराधना की थी। इसके लिए उन्होंने नदी के बीचों-बीच एक रेत का शिवलिंग बनाया था। यह स्थान आज भी प्रसिद्ध मंदिर के रूप में मौजूद है।

ऐसा है कुलेश्वर महादेव मंदिर (Kuleshwar Mahadev Temple)
मान्यता है कि देवी सीता ने जिस रेत के शिवलिंग की पूजा की, वर्तमान में वही कुलेश्वर महादेव के नाम से पूजा जाता है। जो मंदिर वर्तमान में यहां दिखाई देता है वो आठवीं सदी में बनवाया गया था। कुलेश्वर महादेव मंदिर स्थापत्य का बेजोड़ नमूना होने के साथ-साथ प्राचीन भवन निर्माण तकनीक का जीवंत उदाहरण है। तीन नदियों के संगम पर स्थित होने के कारण यहां बारिश के दिनों में नदियां पूरी तरह आवेग में होती हैं। इसके बीच अपनी मजबूत नींव के साथ मंदिर सदियों से टिका हुआ है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से मात्र 45 किलोमीटर दूर स्थित राजिम में नदी पर बना पुल 40 साल भी नहीं टिक पाया, जबकि वहां आठवीं सदी का कुलेश्वर महादेव मंदिर आज भी खड़ा है।

तराशे गए पत्थरों से बना है विशाल मंदिर
मंदिर का आकार 37.75 गुना 37.30 मीटर है। इसकी ऊंचाई 4.8 मीटर है मंदिर का अधिष्ठान भाग तराशे हुए पत्थरों से बना है। रेत एवं चूने के गारे से चिनाई की गई है। इसके विशाल चबूतरे पर तीन तरफ से सीढ़ियां बनी हैं। इसी चबूतरे पर पीपल का एक विशाल पेड़ भी है। चबूतरा अष्टकोणीय होने के साथ ऊपर की ओर पतला होता गया है। मंदिर निर्माण के लिए लगभग 2 किलोमीटर चौड़ी नदी में उस समय निर्माताओं ने ठोस चट्टानों का भूतल ढूंढ निकाला था।