श्याम वेताल
केंद्र सरकार के खिलाफ विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव का क्या हश्र होना है , यह सभी को मालूम था । ‘ सभी ‘ मे स्वयं विपक्ष भी शामिल है क्योंकि संख्याबल के आधार पर अविश्वास प्रस्ताव का गिरना तय था लेकिन पूरे देश को एक उम्मीद जरूर थी कि अविश्वास प्रस्ताव की बहस के दौरान राहुल गांधी समेत कई अन्य विपक्षी नेताओं के तर्कसंगत विचार सुनने को मिलेंगे और सत्ता दल के बड़े – बड़े नेता बगलें झांकने को मजबूर हो जाएंगे ।

मणिपुर हिंसा और वहां महिलाओं के खिलाफ हुई जघन्य ज्यादती की खबरों से पूरे देश में चिंता की लहर व्याप्त हो गई है और इसी विषय को लेकर जब विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव आया तो लोग उत्सुक थे कि विपक्ष के नेता अपनी तर्क पूर्ण बहस से सत्ता दल पर दबाव बनाएंगे । पूरा विपक्ष चाहता तो मणिपुर के मुख्यमंत्री के इस्तीफे पर अड़ सकता था लेकिन ऐसा हो न सका । विपक्ष की इस नाकामी के पीछे एक ही कारण समझ मे आता है और वह है कि विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव लाने के पहले कोई लक्ष्य निर्धारित नही किया और न उसके लिए आवश्यक तैयारी की । किसी भी लड़ाई के पहले दुश्मन की शक्ति और सामर्थ्य का अनुमान लगाना बहुत जरूरी होता है और तदनुसार अपनी रणनीति बनानी होती है । विपक्षी नेता इस अवसर का कोई लाभ नही उठा सके । कुल मिलाकर ऐसा लगा कि अविश्वास प्रस्ताव के लिए सभी विपक्षी नेता हाथ हिलाते हुए संसद भवन आये और हाथ हिलाते हुए चले गए । सत्ता पक्ष के लिए मैदान खाली कर दिया । यही रवैया रहा तो लोकसभा चुनाव में मोदी – शाह की जोड़ी फिर मैदान मार लेगी ।
मणिपुर हिंसा पर अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष की ओर से पहले राहुल गांधी को पेश करना था लेकिन अंतिम समय पर बदलाव हुआ और गौरव गोगोई ने पेश किया । पहली चूक यहीं पर हो गई । इससे ज्यादा कौन सा जरूरी काम आ गया कि राहुल व्यस्त हो गए ? कहीं यह बदलाव आत्म विश्वास की कमी के कारण तो नही हुआ ? इस संबंध में सत्ता दल की ओर से संसद में सबसे पहले बोलने वाले के गोड्डा के सांसद निशिकांत दुबे ने तंज भी कसा कि राहुल जी को सोकर उठने में देर हुई होगी , आंख लग गई होगी । यह बात समझ से परे है कि पहले से तय हो जाने के बाद अविश्वास प्रस्ताव पेश करने से कतराने की आत्मघाती घटना को क्यों होने दिया गया ? यह तो ‘ प्रथम ग्रासे मच्छिका पात ‘ जैसा है । राहुल गांधी ने अविश्वास प्रस्ताव पेश करने की जिम्मेदारी से किनारा क्यों किया ? यह सवाल न केवल उनके नंबर कम करता है बल्कि पूरे विपक्ष की आगामी रणनीति को भी बौना कर देता है ।
अब , जहां तक राहुल गांधी के भाषण का प्रश्न है , प्रथमदृष्टया यह प्रभावी नही कहा जा सकता है क्योंकि इसमें तथ्य नही थे । इसमें आवेश , अहंकार और कुंठा का समावेश था । मणिपुर हिंसा को लेकर ऐसे ठोस तथ्य नही थे जिससे सत्तापक्ष की पेशानी पर बल आये । इसके विपरीत उनके मुंह से निकलने वाले शब्द क्रोध के कारण लड़खड़ा रहे थे । ‘ मणिपुर में भारत माता की हत्या हुई है ‘ कहना नितांत अशोभनीय रहा । इस बेतुकी बात के अलावा फ्लाइंग किस कांड करके राहुल ने सदन की मर्यादा को भी भंग किया । राहुल भले विदेशी संस्कारों के बीच पले – बढ़े हों लेकिन भारतीय संस्कृति उन्हें ऐसा करने की इजाज़त नही देती है । चार बार के सांसद और भारत जोड़ो यात्रा कर चुके राहुल को भारतीय संस्कृति समझ नही है , कहना बेईमानी होगी ।
राहुल गांधी के अलावा लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी का आचरण आपत्तिजनक रहा जिस कारण उन्हें निलंबित भी किया गया ।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषण के दौरान राहुल गांधी द्वारा समूचे विपक्ष को लेकर सदन से उठकर चले जाना भी उचित नही रहा । लड़ाई में जीत – हार होती है लेकिन मैदान छोड़ देना हार से पहले हार मान लेने जैसा है । लोकसभा चुनाव में विपक्ष कैसे लड़ेगा , इसकी कल्पना की जा सकती है ।
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