RTE SEATS KHALI

रायपुर। छत्तीसगढ़ में इस वर्ष भी निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम (RTE) अंतर्गत दो चरण की प्रक्रिया पूरी करने के बावजूद हजारों सीटें खाली रह गईं हैं। अब रिक्त सीटों पर तृतीय चरण की लॉटरी 31 अगस्त एवं 01 सितम्बर को निकाली जाएगी। लॉटरी से आबंटन के बाद स्कूलों में दाखिला की प्रक्रिया 02 सितम्बर से 05 सितम्बर तक होगी।

शिक्षा सत्र 2023-24 में प्रदेश के निजी विद्यालयों में RTE के तहत पिछली बार 83 हजार सीटें निर्धारित थीं, जिन्हें कम करते हुए इस बार 55 हजार कर दिया गया। इस सत्र में निजी विद्यालयों में प्रवेश की कार्यवाही पूर्ण हो चुकी है। इसके तहत क्रमशः दो चरणों में लॉटरी की प्रक्रिया पूरी की गई है। शिक्षा विभाग का दावा है कि दो चरणों के पूरा होने के बाद 44 हजार 598 सीटों पर बच्चों ने एडमिशन ले लिया है। और निजी विद्यालयोें में अब भी 10 हजार 598 सीटें रिक्त रह गई हैं। इनमें वे 5400 सीटें भी शामिल हैं जिनमें चयन होने के बावजूद बच्चों ने एडमिशन नहीं लिया। संभवतः ऐसे बच्चों ने विलंब के चलते स्कूलों में प्रवेश ले लिया होगा।

नहीं लिए जा रहे हैं नवीन आवेदन

शिक्षा विभाग द्वारा रिक्त सीटों को भरने के लिए नवीन आवेदन न लेते हुए शेष बचे आवेदनों पर तृतीय चरण की लॉटरी करने का निर्णय लिया गया है। रिक्त सीटों पर तृतीय चरण की लॉटरी 31 अगस्त एवं 01 सितम्बर को निकाली जाएगी। लॉटरी से आबंटन के बाद स्कूलों में दाखिला की प्रक्रिया 02 सितम्बर से 05 सितम्बर तक होगी।

कम करने के बावजूद क्यों खाली रह जाती हैं सीटें..?

छत्तीसगढ़ में शिक्षा विभाग द्वारा हर वर्ष RTE की सीटों को कम किया जा रहा है, बावजूद इसके निजी विद्यालयों की काफी सीटें हर वर्ष खाली रह जाती हैं। RTE को लेकर काम करने वाले छत्तीसगढ़ पैरेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष क्रिस्टोफर पाल सबसे पहले तो शिक्षा विभाग द्वारा दिए गए आंकड़े पर ही संदेह जताते हैं। उनका कहना है कि पिछले 10 वर्षों में छत्तीसगढ़ में किसी भी साल RTE के तहत 35 हजार से ज्यादा बच्चों की भर्ती नहीं हुई है। इस बार RTE की 44 हजार 598 सीटों के भर जाने का दावा अगर सही है तो यह अपने आप में एक ‘रिकॉर्ड है’। उनका आरोप है कि विभाग सही आंकड़े प्रस्तुत नहीं करता है।

RTE पोर्टल और भर्ती प्रक्रिया में हैं तमाम खामियां

RTE की भर्ती प्रक्रिया ऑनलाइन आवेदन के माध्यम से होती है। क्रिस्टोफर पाल बताते हैं कि शिक्षा विभाग के पोर्टल में ही कुछ त्रुटियां हैं। इसमें बच्चों के पालकों का पता भरने का कोई विकल्प नहीं है। वहीं पालक जिस वार्ड में रहता है, उसी वार्ड में संचालित निजी स्कूल में वह अपने बच्चो को RTE के तहत भर्ती के लिए आवेदन कर सकेगा। जबकि छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने सन 2016 के एक फैसले में कहा है कि अगर किसी दूसरे वार्ड के स्कूल में RTE की सीट खाली है तो वहां उसे भर्ती के लिए पात्र किया जाये। मगर यहां ऐसा नहीं किया जा रहा है।

हिंदी मीडियम के स्कूलों में नहीं है रूचि

आंकड़ों पर नजर डालें तो प्रदेश भर में लगभग 6500 निजी विद्यालय हैं। इनमे 8 से 9 सौ CBSE बोर्ड के पाठ्यक्रम के इंग्लिश माध्यम के स्कूल हैं। वहीं इतनी ही CG बोर्ड के पाठ्यक्रम संचालित करने वाले निजी विद्यालय हैं। इनमे बड़ी संख्या में हिंदी माध्यम के स्कूल हैं, मगर पालक अपने बच्चों को हिंदी माध्यम में पढ़ाना नहीं चाहते हैं। इस तरह यह माना जा सकता है कि हर वर्ष RTE की जितनी सीटें खाली रह जाती हैं, वे अधिकांश हिंदी माध्यम के स्कूलों की हैं।

उधर ग्रामीण इलाकों में स्थिति इसके उलट हैं। गांवों के अधिकांश पालक अपने बच्चों को हिंदी माध्यम में ही पढ़ाने में रूचि लेते हैं। इन सबसे अलग पिछले कुछ सालों से ग्रामीण और शहरी इलाकों में स्वामी आत्मानंद विद्यालय में अधिकांश बच्चे एडमिशन ले रहे हैं। यह भी RTE की सीटें खाली रहने की एक वजह है।

RTE की प्रक्रिया में विलंब है प्रमुख वजह…

छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा विभाग में बैठे उच्च अधिकारी यह बखूबी जानते हैं कि RTE की प्रक्रिया में विलंब के चलते अधिकांश पालक अपने बच्चों की भर्ती सीधे स्कूलों में करा लेते हैं, बावजूद इसके RTE की प्रक्रिया में हर वर्ष विलंब किया जा रहा है। वर्तमान में 2 महीने की पढ़ाई हो चुकी है और विभाग अब भी RTE के तीसरे चरण की प्रक्रिया में जूता हुआ है। देश में उत्तर प्रदेश जैसे कई अन्य राज्य हैं जहां RTE की प्रक्रिया मार्च महीने तक पूरी करा ली जाती है। छत्तीसगढ़ में चूंकि 16 जून से नए शिक्षा सत्र की शुरुआत होती है इसलिए यहां इसीके मुताबिक RTE की भर्ती प्रक्रिया की समय सीमा तय की जाती है। जबकि CBSE पाठ्यक्रम के स्कूलों में अप्रैल के महीने से पहले ही एडमिशन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है और अध्यापन कार्य भी प्रारम्भ कर दिया जाता है।

प्रदेश में शिक्षा के अधिकार कानून का लाभ जरूरतमंद बच्चों को मिले इसके लिए बेहतर होगा कि RTE की प्रक्रिया और पहले से शुरू की जाये अन्यथा पालक विलंब और अनिश्चितता के चलते दूसरे विद्यालयों में अपने बच्चो की भर्ती करा देते हैं। वहीं पालकों के निवास स्थान के इलाके में ही बच्चों की भर्ती की अनिवार्यता को भी ख़त्म किया जाना चाहिए। इसके अलावा RTE पोर्टल में सुधार और आवेदन के समय पालकों को होने वाली परेशानियों को भी दूर करना चाहिए। अन्यथा हर वर्ष RTE का लाभ लेने से हजारों बच्चे इसी तरह वंचित रह जायेंगे।