टीआरपी डेस्क। हाई कोर्ट ने एक मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि मातृत्व प्रकृति की ओर से महिला के लिए सबसे महान आशीर्वादों में से एक है। इस कारण उसे सार्वजनिक रोजगार से वंचित नहीं किया जा सकता।

न्यायालय ने नैनीताल के बीडी पांडे जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें गर्भवती महिला को ज्वाइनिंग देने से इनकार कर दिया गया था। कोर्ट ने महानिदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण को निर्देश दिया कि वह सुनिश्चित करें कि 13 सप्ताह की गर्भवती याचिकाकर्ता को नर्सिंग आफिसर पद पर तत्काल ज्वाइनिंग कराएं।

मिशा पहुंची हाईकोर्ट

याचिकाकर्ता मिशा उपाध्याय ने अदालत का दरवाजा खटखटाया कि बीडी पांडे अस्पताल प्रबंधन ने उसे नर्सिंग अधिकारी के रूप में ज्वाइनिंग कराने से इनकार कर दिया है क्योंकि वह 13 सप्ताह से गर्भवती हैं। बीते 23 जनवरी को डीजी हेल्थ की ओर से उन्हें नियुक्ति पत्र जारी किया गया था।

इस मामले में जब न्यायालय ने स्पष्टीकरण मांगा तो अस्पताल के अधिकारियों ने कहा कि 15 फरवरी को जारी किए गए फिटनेस प्रमाणपत्र में उसे अस्थायी रूप से शामिल होने के लिए अयोग्य घोषित किया गया था।

न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकलपीठ ने इस मामले में अपने आदेश में कहा है कि फिटनेस प्रमाणपत्र 13 सप्ताह और 2 दिन की गर्भावस्था को छोड़कर किसी भी बीमारी, संवैधानिक कमजोरियों या शारीरिक दुर्बलता का खुलासा नहीं करता है। चिकित्सा प्रमाणपत्र आगे बताता है कि यह किसी भी रोजगार के लिए अयोग्यता नहीं है।

न्यायालय ने आगे कहा कि एक ओर महिला मातृत्व अवकाश की हकदार है, जिसे अब शीर्ष अदालत ने बार-बार सामाजिक और मौलिक अधिकार माना है, गर्भावस्था के आधार पर उसे नौकरी की ज्वाइनिंग कराने से इन्कार करना, महिला के साथ अत्यधिक भेदभावपूर्ण होगा। यह निश्चित रूप से भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21 का उल्लंघन है।

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