रायपुर। CG Loksabha Election: लोकसभा चुनावों की घोषणा हो गई है। छत्तीसगढ़ में 3 चरणों में वोटिंग होगी। पहले चरण का मतदान एकमात्र सीट बस्तर के लिए 19 अप्रैल को होगा। इसके लिए अधिसूचना 20 मार्च को जारी की जाएगी। यह प्रदेश की आदिवासी बाहुल्य सीट है। आजादी के बाद से हर लोकसभा चुनावों में यहां निर्दलीय परचम लहराते रहे। उनके वर्चस्व को 1980 में कांग्रेस ने तोड़ा। हालांकि यह 2 चुनावों तक ही सीमित रहा। इसके बाद 20 सालों तक कमल खिला, लेकिन 2019 के चुनाव में दीपक बैज ने भाजपा के बैदूराम कश्यप को शिकस्त दी और सीट फिर कांग्रेस के पाले में आ गई।
बस्तर लोकसभा सीट के लिए मतदान में करीब एक माह का समय रह गया है। भाजपा ने यहां से महेश कश्यप को उम्मीदवार बनाया है। महेश लंबे समय तक संघ में सक्रिय रहे और विश्व हिंदू परिषद के जिला संगठन मंत्री बने। फिलहाल बस्तर सांस्कृतिक सुरक्षा मंच के संभागीय संयोजक हैं। दूसरी ओर कांग्रेस ने अभी तक अपना प्रत्याशी नहीं तय किया है। हालांकि कांग्रेस से दीपक बैज और कवासी लखमा के नाम की चर्चा है।
पढ़िए आजादी के बाद से अब तक बस्तर सीट का हाल, जहां महेंद्र कर्मा जीते, और कांग्रेस हारी…
आजादी के बाद देश में कांग्रेस की सरकार बनी, पर बस्तर हार गए
1947 में देश आजाद हुआ और पहली बार 1952 में लोकसभा चुनाव हुए। उस समय देश में लोकसभा की 489 सीटें थीं। इनमें कांग्रेस ने 364 सीटों पर जीत दर्ज की और सरकार बनाई, लेकिन बस्तर में हार गए। इस सीट से निर्दलीय उम्मीदवार मुचाकी कोसा ने कांग्रेस प्रत्याशी सुरती किसतिया को 141331 वोटों से हराया। कोसा ने 177588 वोट हासिल किए, वहीं सुरती को महज 36257 वोट ही मिल पाए। हालांकि 1957 में हुए अगले चुनाव में काग्रेस ने जीत दर्ज की। पार्टी ने सुरती पर भरोसा जताया और उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार बोदा दारा को 99277 वोटो से शिकस्त दी। 1952 से लेकर 1999 तक यह सीट मध्य प्रदेश में आती थी। 2000 में मध्य प्रदेश के विभाजन के बाद यह छत्तीसगढ़ में आ गई।
और फिर कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया
1957 में बड़ी जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस का आगे के लोकसभा चुनावों में सूपड़ा साफ हो गया। 1962, 1967, 1971 और 1977 में लगातार कांग्रेस की हार हुई। 1962 में यह स्थिति हो गई कि कांग्रेस निर्दलीयों के मुकाबले तीसरे नंबर पर सिमट गई। 1967 में निर्दलीय उम्मीदवार जे सुंदरलाला ने जनसंघ प्रत्याशी आर झादो को बुरी तरह हराया। वहीं कांग्रेस की लोकप्रियता इतनी गिरी की वो लुढ़ककर पांचवें स्थान पर पहुंच गई। 1971 में निर्दलीय लम्बोदर बलियार जीते और अगला चुनाव कांग्रेस से लड़े, लेकिन भारतीय लोक दल प्रत्याशी दृगपाल शाह केसरी से हार गए।
फिर कांग्रेस उम्मीदवार से हार गए महेंद्र कर्मा
लगातार 4 लोकसभा चुनावों में मिली हार कांग्रेस के लिए बड़ा झटका था। इससे उबरने के लिए 1980 में कांग्रेस ने नए उम्मीदवार लक्ष्मण कर्मा को मैदान में उतारा। कांग्रेस का यह फैसला सही निकला और कर्मा ने जनता पार्टी के उम्मीदवार समारू राम प्रगानिया को हराया। इस जीत के बाद कांग्रेस ने 1991 तक लगातार तीन चुनावों में जीत हासिल की। 1984 से 1991 तक कांग्रेस ने मंकूराम सोड़ी को टिकट दिया। सोदी मजबूत नेता साबित हुए। उन्होंने 1984 में उन्होंने सीपीआई के महेंद्र कर्मा, 1989 में भाजपा के संपत सिंह भंडारी और 1991 में फिर भाजपा प्रत्याशी राजाराम तोडेम पर जीत दर्ज की। हालांकि 1996 में कांग्रेस उम्मीदवार मंकूराम को निर्दलीय महेंद्र कर्मा ने 14 हजार वोटों से हरा दिया।
1998 में खिला कमल, 20 साल नहीं मुर्झाया
1998 में भाजपा ने यहां से जीत का खाता खोला और 2014 तक इस सीट पर किसी और को राज करने नहीं दिया। 1998 से लेकर 2011 तक बीजेपी के टिकट पर बलिराम कश्यप ने लगातार चार बार जीत हासिल की। 2011 में उनके निधन के बाद यहां उपचुनाव करवाए गए, जिसमें उनके बेटे दिनेश कश्यप ने जीते और कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा। 2014 के चुनाव में भी दिनेश कश्यप ने अपनी जीत को बरकरार रखा। फिर 2019 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी बैदूराम कश्यप पर चित्रकोट विधायक रहे दीपक बैज 38982 वोटों से जीत दर्ज की और सांसद चुने गए।
आज तक नहीं टूटा निर्दलीय मुचाकी कोसा का रिकॉर्ड
बस्तर लोकसभा सीट पर अब तक की सबसे बड़ी जीत पहले चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार मुचाकी कोसा को मिली थी। 1952 के चुनाव में उन्हें 83.05 फीसदी वोट मिले, जबकि उनके प्रतिद्वंदी कांग्रेस के सुरती किसतिया को मात्र 16.95 प्रतिशत वोटों से संतोष करना पड़ा था। मुचाकी कोसा को 1,77,588 और सुरती को 36,257 वोट मिले थे। दोनों के बीच जीत-हार का अंतर 66.09 फीसदी वोटों का था। इस रिकॉर्ड को आज तक कोई उम्मीदवार तोड़ नहीं पाया है। इसके बाद अधिकतम वोट कांग्रेस के मनकूराम सोढ़ी के नाम पर है। 1984 के चुनाव में उन्हें 54.66 प्रतिशत वोट मिले थे।
बस्तर लोकसभा सीट से अब तक चुने गए सांसद
लोकसभा चुनाव | जीते प्रत्याशी | हारे प्रत्याशी |
1952 | मुचाकी कोसा (निर्दलीय) | सुरती किसतिया (कांग्रेस) |
1957 | सुरती किसतिया (कांग्रेस) | बोदा दारा (निर्दलीय) |
1962 | लखमू भवानी (निर्दलीय) | बोदा दादा (निर्दलीय) |
1967 | जे सुंदरलाल (निर्दलीय) | आर झादो (जनसंघ) |
1971 | लम्बोदर बलियार (निर्दलीय) | जे सुंदरलाल (निर्दलीय) |
1977 | दृगपाल शाह केसरी (भारतीय लोक दल) | लम्बोदर बलियार (कांग्रेस) |
1980 | लक्ष्मण कर्मा (कांग्रेस) | समारू राम प्रगानिया (जनता पार्टी) |
1984 | मंकूराम सोदी (कांग्रेस) | महेंद्र कर्मा (सीपीआई) |
1989 | मंकूराम सोदी (कांग्रेस) | संपत सिंह भंडारी (भाजपा) |
1991 | मंकूराम सोदी (कांग्रेस) | राजाराम तोडेम (भाजपा) |
1996 | महेंद्र कर्मा (निर्दलीय) | मंकूराम सोड़ी (कांग्रेस) |
1998 | बलिराम कश्यप (भाजपा) | मंकूराम सोड़ी (कांग्रेस) |
1999 | बलिराम कश्यप (भाजपा) | महेंद्र कर्मा (कांग्रेस) |
2004 | बलिराम कश्यप (भाजपा) | महेंद्र कर्मा (कांग्रेस) |
2009 | बलिराम कश्यप (भाजपा) | शंकर सोडी (कांग्रेस) |
2011 | दिनेश कश्यप (भाजपा) | कवासी लखमा (कांग्रेस) |
2014 | दिनेश कश्यप (भाजपा) | दीपक कर्मा (कांग्रेस) |
2019 | दीपक बैज (कांग्रेस) | बैदूराम कश्यप (भाजपा) |
बस्तर लोकसभा सीट की राजनीतिक स्थिति
लोकसभा सीट आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित है। इसमें 8 विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें जगदलपुर, कोंडागांव, नारायणपुर, बस्तर, चित्रकोट, दंतेवाड़ा, बीजापुर और कोंटा।
लोकसभा सीट पर कुल मतदाता: 14,66,337
महिला मतदाता : 768088
पुरुष मतदाता : 698197
थर्ड जेंडर मतदाता : 52
पोलिंग बूथ : 1957
संगवारी मतदान केंद्र : 97
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