बिलासपुर। दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को नियमित करने का आदेश जारी होने के बावजूद इसका लाभ नहीं देने के मामले में केंद्रीय गुरु घासीदास विश्वविद्यालय के खिलाफ हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा है। शीर्ष न्यायालय ने हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप को अनावश्यक बताया है

ये है मामला…

गौरतलब है कि गुरु घासीदास विश्वविद्यालय सन् 2009 में केंद्रीय विश्वविद्यालय बना दिया गया था। इसके पूर्व यह राज्य सरकार के अधीन संचालित था। तब यहां कार्यरत दैनिक वेतनभोगियों को तत्कालीन कुलपति ने 22 अगस्त 2008 को नियमित कर दिया था। इस संबंध में विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद ने भी 22 जुलाई 2008 को प्रस्ताव पारित किया था। मगर केंद्रीय विश्वविद्यालय प्रबंधन ने उक्त आदेश का पालन नहीं किया और उन्हें दैनिक वेतनभोगी के रूप में मिलने वाला वेतन ही दिया जाता रहा।

नियमितीकरण का आदेश होने के बावजूद इसका लाभ कर्मचारियों को नहीं मिला। तब अनेक दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में बताया गया कि केंद्रीय विश्वविद्यालय के किसी भी कर्मचारी का दर्जा राष्ट्रपति की अनुमति के बिना नहीं बदला जा सकता। विश्वविद्यालय के इन दैनिक वेतन भोगियों को चूंकि नियमित किया जा चुका था, इसलिये उन्हें नियमित कर्मचारी को मिलने वाले लाभ देने के लिए केंद्रीय विश्वविद्यालय बाध्य है। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के आदेश को हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में चुनौती दी गई थी।

हाईकोर्ट ने राज्य शासन के नियमितीकरण के आदेश को विधिसम्मत बताते हुए कर्मचारियों के पक्ष में निर्णय दिया था। इसके विरुद्ध केंद्रीय विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की गई। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस प्रशांत मिश्रा की डिवीजन बेंच ने हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुए उसे बरकरार रखा है।