0 नक्सलियों के डर से कई परिवार भागकर रह रहे हैं दूसरे स्थानों पर…

राजनांदगांव। प्रदेश में जहां एक ओर मुठभेड़ में नक्सली मारे जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर नक्सलियों से वार्ता के प्रयास भी चल रहे हैं, मगर उन परिवारों की ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है जिनके परिजन नक्सली हिंसा में मारे जा चुके हैं। ऐसे परिवारों के लिए पुनर्वास नीति बनाई गई थी, जिसके तहत कई जिलों में लाभ दिया जा रहा है, वहीं कुछ जिलों में अधिकारी इसमें रूचि नहीं दिखा रहे हैं और पीड़ितों को कोई योजना नहीं होने की जानकारी देकर उन्हें टाल रहे हैं।

छत्तीसगढ़ के बस्तर में शुरू हुई नक्सल हिंसा का फैलाव कई जिलों तक हो गया है। इनमें अविभाजित राजनांदगांव जिला, गरियाबंद सहित अन्य जिले भी शामिल हैं। नक्सली अक्सर ग्रामीणों को मुखबिरी के आरोप में मार डालते हैं। वहीँ कई ग्रामीण क्रॉस फायरिंग में भी मारे जा चुके हैं। नक्सल प्रभावित इलाकों में सैकड़ों हत्याएं हुई हैं। जिसे देखते हुए छत्तीसगढ़ शासन ने मृतकों के परिवारों के लिए पुनर्वास नीति बनाई। इसमें आश्रितों को मकानऔर परिवार के पात्र सदस्य को नौकरी का प्रावधान किया गया। सरकार की इस योजना का कई जिलों में लाभ भी दिया जा रहा है, मगर राजनांदगांव जैसे कुछ जिले ऐसे हैं, जहां पीड़ितों को पुनर्वास नीति का लाभ पूरा नहीं दिया जा रहा है। इसी मुद्दे पर यहां के पीड़ितों ने प्रेस वार्ता का आयोजन कर जिला प्रशासन को आड़े हाथ लिया है।

पुनर्वास नीति बनाये बरसों बीते, मगर…

आज राजनांदगांव में आयोजित पत्रकारवार्ता में नक्सल पीड़ित परिवार के लोगों ने बताया कि सन 2004 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा नक्सल हिंसा से पीड़ित परिवारों को पुनर्वास करने के लिए नक्सल पुनर्वास नीति बनाया गया, जिसमें समय-समय पर संशोधन किया गया है, पीड़ित परिवारों को 90 दिवस के भीतर पुनर्वास करने का समय-सीमा निर्धारित किया गया हैं, पुनर्वास करने के लिए जिला स्तरीय पुनर्वास समिति का गठन किया गया, जिसमें कलेक्टर को अध्यक्ष व पुलिस अधीक्षक को सचिव बनाया गया है। नक्सल पुनर्वास नीति के अंतर्गत जिला कलेक्टर द्वारा पीडि़त परिवारों को कलेक्टर दर पर नौकरी, मकान, आर्थिक सहयता राशि और छात्रावृति प्रदान किया जाना है, लेकिन अब तक इन्हें केवल आर्थिक सहायता और कलेक्टर दर पर नौकरी दी गई, मगर इन्हे अब तक कोई मकान नहीं दिया गया है।

दो दशक से कर रहे हैं संघर्ष

बता दें कि अधिकांश नक्सल पीड़ित परिवार अपने परिजनों के मारे जाने के बाद अपने गांव से भाग कर दूसरी जगह पर शरण लेकर रहे हैं। इनके लिए ही नक्सल पुनर्वास नीति अंतर्गत शहरी क्षेत्र में आवास के लिए नजूल जमीन पर मकान बनाकर देने का प्रावधान बनाया गया है। राजनांदगांव जिले के नक्सल पीड़ित परिवार मकान पाने के लिए 20 साल से जिला कलेक्टर कार्यालय से लेकर मुख्यमंत्री निवास तक पत्राचार व राजधानी में धरना प्रदर्शन तक कर चुके हैं मगर इन्हें आश्वासन के सिवा कुछ भी नहीं मिला है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बापू की 150वी जयंती पर इन पीड़ित परिवारों को मकान देने की घोषणा की थी।

गृहमंत्री ने की पहल मगर पीड़ितों को अपात्र बता रहा है प्रशासन

पूर्व CM की घोषणा के बाद जिला स्तरीय पुनर्वास समिति द्वारा नक्सल पुनर्वास योजनांतर्गत 900 वर्गफीट जमीन आवंटन करने का निर्णय लिया गया था, लेकिन 3 साल बीत गए, इन्हें जमीन आबंटन ही नहीं किया गया। राजनांदगांव के नक्सल पीड़ित परिवारों के लोग मार्च के महीने में गृह मंत्री विजय शर्मा से मिले और अपनी समस्या से अवगत कराया। गृहमंत्री ने इन्हें 15 दिनों के भीतर समस्या के निराकरण के लिए आश्वस्त करते हुए इनके आवेदन राजनांदगांव जिला प्रशासन को भिजवा दिए। मगर जिला प्रशासन ने अब उलटे इन्हें अपात्र बताते हुए जिला पुनर्वास समिति द्वारा इनके जमीन आवंटन के निर्णय को ही निरस्त कर दिया है।

दूसरे जिलों में पीड़ितों को दी गई आवास और नौकरी

पीड़तों की अगुवाई कर रहे धीरेन्द्र साहू ने बताया कि नक्सल पुनर्वास नीति छत्तीसगढ़ में लागू है। छत्तीसगढ़ के अन्य जिला कोंडागांव, नारायणपुर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, कांकेर के नक्सल पुनर्वास समिति द्वारा नक्सल पीड़ितों को आवास, नौकरी दी जा रही है, लेकिन राजनांदगाव जिला के पुनर्वास समिति द्वारा ऐसा कोई प्रावधान नहीं कर आवेदन निरस्त किया जा रहा है। ऐसे में पीड़ित परिवार सवाल उठा रहे हैं कि क्या कांकेर, कोंडागांव, बीजापुर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा में जिला पुनर्वास समिति गलत तरीके से लोगों को मकान दिया जा रहा है?

ऐसी भी चल रही है मनमानी

पीड़ितों ने बताया कि नक्सल पुनर्वास नीति अंतर्गत नक्सल पीड़ित परिवार के सदस्यों को नौकरी देने के प्रावधान के तहत कलेक्टर द्वारा 4 पीड़ितों को स्वास्थ्य विभाग मानपुर में कलेक्टर दर पर नौकरी देने का आदेश दिया गया, लेकिन संबंधित विभाग ने कलेक्टर के आदेश को अमान्य कर दिया है और बीते 3 सालों से साफ़-सफाई का काम करा कर उन्हें केवल 2 हजार रूपये हर महीने मानदेय दिया जा रहा है।

पीड़ितों ने यह भी बताया कि पुनर्वास नीति के अंतर्गत नक्सल पीड़ित परिवारों के दो बच्चों को राष्ट्रीय सांप्रदायिक सद्भाव प्रतिष्ठान, दिल्ली द्वारा पहली से 12 वीं कक्षा तक छात्रवृति देने का प्रावधान है, मगर नक्सल पुनर्वास नीति के समय सीमा के भीतर किसी भी पीड़ित परिवार के बच्चों को छात्रवृति नहीं दिया गया है, अब जिला कलेक्टर द्वारा संबंधित परिवारों को अधिक आय वर्ग का और अपात्र बताकर इनके आवेदनों को निरस्त किया जा रहा है।

छत्तीसगढ़ में वर्तमान में नक्सल का मुद्दा सबसे ज्वलंत है, सालों से नक्सल हिंसा से जूझ रहे परिवारों का दर्द प्रदेश मुख्यालय में बैठे जिम्मेदार अधिकारी कितना समझते हैं, यह इन परिवारों की हालत देखकर अच्छी तरह समझा जा सकता है। सच तो यह है कि इस तरह मारे गए लोगों के परिजनों को आनन-फानन में आर्थिक लाभ तो दे दिया जाता है, मगर बाद में जिला और प्रदेश मुख्यालयों में बैठे जिम्मेदार अधिकारी और नेता इन्हें यहां से वहां चक्कर कटवाते रहते हैं। सरकार चाहे किसी की भी हो, ऐसे प्रभावितों को सरकार के प्रावधानों के तहत लाभ तो दिया ही जाना चाहिए।