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मछली पालन के नाम पर नक्सल प्रभावित क्षेत्र के लिए आए फंड का इस्तेमाल लेकिन विभाग रकम खा गया है। सहायक संचालक और कर्मचारियों ने मिलकर फर्जी हितग्राही के नाम से रकम निकालकर खुद इस्तेमाल किया। पीड़ित कथित हितग्राही को किराए का नोटिस मिलने के बाद मामला सामने आया, जिसके बाद जांच शुरू हुई।

उचित शर्मा। रायपुर

‘मछली जल की रानी है, जीवन उसका पानी है। हाथ लगाओ, डर जाएगी। बाहर निकालो मर जाएगी।’ लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार की एक योजना जिस ‘मछली’ की हम बात कर रहे हैं, वो न तो जल में गई और न बाहर निकाली गई, बल्कि सीधे निगल ली गई है। जी हां, भ्रष्टाचारियों ने ये कारनामा उस फंड में कर दिया है, जिसे नक्सल प्रभावित क्षेत्र के लिए भेजा गया था। किसानों के उत्थान के नाम से आई रकम से अफसर और कर्मचारियों ने अपना उत्थान कर लिया। सनसनीखेज खुलासे से अब हड़कंप मच गया है।

नक्सली मोर्चे पर लड़ाई के लिए मिलने वाले फंड के घोटाले की खबर तो आती रहती है। लेकिन अब नक्सल प्रभावित क्षेत्र में किसानों के उत्थान के लिए मिलने वाले फंड में भी घोटाला किया जा रहा है। राजनांदगांव में पिंजड़े में मछली पालन (केज कल्चर) के नाम पर करीब 5 करोड़ का घोटाला सामने आया है। इस घोटाले को पुराने राजनांदगांव जिले में अंजाम दिया गया है। सरकार के रिकॉर्ड में दर्ज हितग्राहियों को पता ही नहीं है कि उनके नाम से मछली पालन किया जा रहा है। मछली पालन भी ऐसा कि न तो मछली का पता और न ही तालाब में लगे केज का। केज कल्चर के नाम से अनुदान की रकम में जमकर भ्रष्टाचार किया गया है। सबसे बड़ी बात यह रही कि नक्सल क्षेत्र में उत्थान के लिए लगाए जाने वाले मद से मत्स्य पालन के नाम पर फंड इशु कराया गया। फंड से मत्स्य पालन न कर रकम का इस्तेमाल विभाग के अफसरों ने खुद कर लिया। इस कारनामे को अंजाम तात्कालीन सहायक संचालक और उनके स्टाफ ने दिया है। कारनामा भी बड़ी खामोशी से अंजाम दिया जा रहा था। लेकिन, सरकार की तरफ से संपत्ति के किराए के लिए कथित हितग्राही को नोटिस दिए जाने पर इस कारनामे का खुलासा हुआ। इस नोटिस के मिलने के बाद जब एक किसान ने इस बारे में जानकारी जुटाई तो हैरान करने वाले तथ्य सामने आए। किसान को बिना बताए उसके नाम से 54 लाख रुपए का भुगतान सप्लायर को कर दिया गया। इस बारे में जब किसान ने अपने कुछ परिचितों को बताया तो विभाग में सूचना का अधिकार नियम के तहत जानकारी मांगी गई। विभाग से जो जानकारी मिली वो हैरान करने वाली थी। इस तरह से कथित रूप से करीब 8 हितग्राही विभाग के स्थानीय अफसरों ने चुने और उनके नाम से करीब 5 करोड़ रुपए का भुगतान कर दिया गया। इस बारे में जब द रूरल पोस्ट ने पड़ताल शुरू की तो और भी हैरान करने वाले तथ्य सामने आए। इस कारनामें की जब अलग-अलग जगहों पर शिकायत की गई तो कोई सुनवाई नहीं हुई। विधानसभा में भी प्रश्न लगाया गया, लेकिन उसे प्रश्नकाल की जगह शुन्य काल में लाया गया, जिससे इस मामले में बहस ही नहीं हो सकी। इतना ही नहीं जब इसकी पुलिस से शिकायत की गई तो पुलिस में भी पीड़ितों को कोई मदद नहीं मिली। पुलिस मदद नहीं मिलने की जब पतासाजी की गई तो मालूम चला कि जिस अफसर गीतांजलि गजभिए ने इस कारनामें को अंजाम दिया है, उनके पति नरेंद्र गजभिए सब इंस्पेक्टर हैं। वे एसपी दफ्तर में पदस्थ हैं और पीड़ितों पर ही दबाव बनवाते हैं कि शांत नहीं हुए तो उनके खिलाफ फर्जी कार्रवाई करा दी जाएगी।

टीआरपी की पड़ताल में पता चला कि राजनांदगांव जिले में 2021 में इस कारनामे को मछली पालन विभाग की राजनांदगांव जिले की तात्कालीन सहायक संचालक गीतांजलि गजभिए ने अंजाम दिया है। उस समय जिले के अंतर्गत आने वाले छुईखदान के नवागांव बांध और अंबागढ़ चौकी के मोंगरा जलाशय में केज कल्चर के नाम से इस भ्रष्टाचार की साजिश रची गई। 8 हितग्राहियों के नाम से करीब 5 करोड़ रुपए का सरकारी भुगतान करा लिया गया। भुगतान भी कृषक के बैंक खाते  में न कर मछली पालन की सामग्री सप्लाई करने वाले कारोबारी के खाते में किया गया। एक कथित हितग्राही भुवनलाल की कोशिशों की वजह से इस पूरे मामले का खुलासा हुआ है। भुवनलाल को ही 3.72 लाख रुपए के किराए का नोटिस मिला था। इसके बाद ही इस कारनामे को उजागर करने की कोशिश शुरू की गई। भुवनलाल के अलावा जब 7 हितग्राहियों के बारे में जानकारी जुटाई गई। भुवन लाल ने बताया कि नवागांव जलाशय के तीन अन्य हितग्राहियों में एक विभागीय ड्राइवर की मां सरोज मोटघरे, एक अफसर की रिश्तेदार हेमलता रामटेके, विभाग की महिला चपरासी की रिश्तेदार दुर्गेश नंदनी हैं। इन तीनों के नाम से भी नवागांव सिंचाई जलाशय में केज कल्चर के नाम से रकम सरकारी खाते से निकाली गई। इसके अलावा मोंगरा जलाशय में एक रिटायर्ड ड्राइवर के बेटे राहुल ओझवा, मुस्तफा दाउदी, पाकिजा बेगम और अनिल कुमार अनिला के नाम से 72-72 लाख रुपए निकाले गए। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि मुस्तफा दाउदी और पाकिजा बेगम धमतरी के रहने वाले हैं और नक्सल क्षेत्र के मद से दूसरे जिले के लोगों के नाम से रकम निकाली गई।

सभी के साथ अनुबंध, लेकिन कोई भी अनुबंध नोटराइज नहीं

आरटीआई से निकाले गए दस्तावेजों का जब अध्ययन किया गया तो पता चला कि सभी 8 कथित हितग्राहियों के साथ विभाग का अनुबंध हुआ है। सभी के साथ अनुबंध में नियम कायदे की लंबी फेहरिस्त है, लेकिन विभाग ने नियमों का पालन नहीं किया। विभाग के साथ अनुबंध में एक भी अनुबंध नोटराइज नहीं है। अफसरों ने दस्तावेजों का बिना परीक्षण किए ही मनमाने ढंग से काम दे दिया, क्योंकि हितग्राही खुद विभाग ने ही खड़े किए थे। किसी भी हितग्राही का असली हस्ताक्षर नहीं किया गया है। अप्रैल 2021 में केज कल्चर के आवेदन की विज्ञप्ति जारी कराकर दो अखबारों हरिभूमि और नई दुनिया में खबर प्रकाशित करा दी गई, जो कि विभाग के निर्देशों पर था। इसके बाद विभाग के जिले के अफसरों और कर्मचारियों ने मिलकर करीब 5 करोड़ रुपए के भ्रष्टाचार को अंजाम दे दिया। ये 5 करोड़ सिर्फ दो जलाशयों के थे। बाकी के अन्य जलाशयों में भी इसी तरह का भ्रष्टाचार किया गया है।

रकम कृषकों के खाते में जमा करने का निर्देश, लेकिन अफसरों ने सप्लायर के खाते में जमा कर दिया

विभाग की संचालित योजनाओं के अंतर्गत हितग्राहियों को अनुदान भुगतान के बारे में निर्देशों को भी दरकिनार कर दिया गया। मछली पालन संचालनालय ने सभी जिलों के उप संचालकों को 29 जनवरी 2021 को यह आदेश दिया था कि सभी हितग्राहियों को अनुदान/सहायता भुगतान आरटीजीएस और डीबीटी के माध्यम से किया जाएगा। साथ ही अलग-अलग योजनाओं के तहत मत्स्य कृषकों को दी जाने वाली अनुदान/सहायता, संबंधित कृषकों के बैंक खाते में डीबीटी के तहत आरटीजीएस के माध्यम से जाम किया जाएगा। इसके अलावा एक ही हितग्राही को केवल एक ही योजना से अनुदान दिया जाएगा। इसके बाद भी अफसरों ने करीब 5 करोड़ रुपए कृषकों के खाते में जमा न कर सप्लायर के खाते में जमा कर दिया। जबकि विभाग की तरफ से सप्लायरों के लिए किसी तरह की आरसी जारी नहीं की गई थी। आदेश में यह भी साफ लिखा गया था कि इन निर्देशों की अवहेलना करने पर अफसरों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए विभागीय जांच की प्रक्रिया प्रारंभ की जाएगी। इसके लिए अफसर खुद ही जिम्मेदार होंगे।

सप्लायर को भुगतान करने की हितग्राहियों को फर्जी एनओसी

इस कारनामें को अंजाम देने के लिए विभागीय अफसरों ने कथित हितग्राहियों की फर्जी एनओसी लगाई थी, जिसमें यह बताया गया था कि केज कार्य करने की सामग्री एक एजेंसी से खरीदी गई। इसकी पड़ताल में पता चला कि नवागांव जलाशय में केज कार्य के लिए हितग्राहियों की तरफ से एक एनओसी लगाई गई। इस एनओसी में सहायक संचालक मछली पालन जिला राजनांदगांव को एक पत्र लिखा गया। इस पत्र में यह लिखा गया कि ‘आपकी अनुमति से नवागांव जलाशय में 18 नगर केज लगाने का कार्य पूरा कर लिया गया है। इसके लिए मेरे द्वारा केज में लगाने वाले सामान फर्म स्टार सप्लायर्स बिलासपुर से खरीदा गया है। अत: महोदया जी आपसे निवेदन है कि मुझे प्रदाय की जाने वाली अनुदान राशि सीधे फर्म स्टार सप्लायर्स को भुगतान करने की कृपा करें।‘ सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि चारों हितग्राहियों का पत्र एक ही तरह का लिखा गया है। सभी ने केज लगाने की रकम का भुगतान फर्म को करने को कहा है। किसी ने अपने खाते में रकम नहीं मंगाई। चारों ने एक ही फर्म से सामग्री खरीदी। इस एनओसी को चार हितग्राहियों दुर्गेश नंदनी, हेमलता रामटेके, सरोज मोटघरे और भुवनलाल की तरफ से दिया गया। इस संबंध में जब टीआरपी ने भुवनलाल से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि मैंने विभाग से किसी भी तरह का अनुबंध नहीं किया था। इसके अलावा न ही मैंने किसी भी तरह की एनओसी विभाग को दी है।

तीन फर्म को किया गया भुगतान

विभाग के इस कारनामें के आरटीआई से मिले दस्तावेजों के आधार पर यह बात सामने आई है कि विभाग की तरफ से तीन फर्म को भुगतान किया गया है। नवागांव जलाशय के लिए बिलासपुर की स्टार सप्लायर्स फर्म को एक करोड़ 8 लाख का, एसएस एक्वाफीड्स फर्म झांकी रायपुर को एक करोड़ 2 लाख रुपए और एसएस एक्वाकल्चर पथारी फिंगेश्वर को 6 लाख का भुगतान किया गया। कृषकों को दी जाने वाली राशि उन्हें नहीं दी गई।

जिस अफसर का कारनामा, उसका राजनांदगांव में पूर्व सीएम के बंगले के पास में गला

टीआरपी की पड़ताल में पता चला कि जिस अफसर ने इस कारनामें को अंजाम दिया, वे फिलहाल धमतरी में पदस्थ हैं। उनका राजनांदगांव में एक बंगला है, जो पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के बंगले के पास है। यही वजह है कि ये अफसर दंपत्ति अपनी ऊंची पहुंच की धौंस दिखाते हैं। इसके अलावा हाल ही में अफसर और उनके पति ने राजनांदगांव से 15 किमी दूर पदमतरा में करीब 7 एकड़ जमीन खरीदी है, जिसकी कीमत करीब एक करोड़ रुपए है।