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बस्तर में लगातार फोर्स और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हो रहे हैं। फोर्स का दावा है कि नक्सल मुवमेंट कमजोर पड़ रहा है। वहीं, सामाजिक कार्यकर्ता और स्थानीय लोग यह दावा कर रहे हैं कि फोर्स नक्सलियों के नाम पर आदिवासियों को मार रहे हैं। बीजापुर के पिड़िया में हुई घटना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। उस कथित मुठभेड़ को बस्तर में नरसंहार करार दिया जा रहा है। इन्हीं दावों के बीच टीआरपी की ये खास रिपोर्ट...

टीआरपी डेस्क

छत्तीसगढ़ में फोर्स और नक्सलियों के बीच संघर्ष बढ़ गया है और जिस तरह ग्रामीण मुठभेड़ों को फर्जी होने का आरोप लगा रहे हैं, उससे सवाल उठना लाजमी है कि जंगलों में मुठभेड़ हो रहा है या नरसंहार। ताजा मामला बीजापुर जिले के पिड़िया का है, जहां पुलिस दर्जन भर माओवादियों को मार गिराए जाने की बात कह रही है, वहीं ग्रामीण इसे फर्जी मुठभेड़ बता रहे हैं। इस तथाकथित मुठभेड़ में कई ग्रामीण घायल भी हुए हैं जिनका इलाज बीजापुर में चल रहा है। बीजापुर SP जितेंद्र यादव ने मीडिया को बताया कि, 10 मई को सुकमा के पिड़िया में लगभग 12 घंटे तक मुठभेड़ चली। जिसमें 2 महिलाओं समेत कुल 12 नक्सली मारे गए। इनमें 8-8 लाख रुपए के 2 इनामी नक्सली थे। वहीं, सभी पर कुल 31 लाख रुपए का इनाम था। इस मुठभेड़ में तीन नक्सली घायल हुए हैं।

गुमराह करने पहन लिए सादे कपड़े

पुलिस का कहना है कि नक्सली जवानों को गुमराह करने के लिए सादे कपड़ों में गांव में घुस गए थे। मौके से हथियार समेत अन्य सामान बरामद किया गया है। क्रॉस फायरिंग में एक ग्रामीण को भी गोली लगी है। तीन घायल नक्सलियों और ग्रामीण को जिला मुख्यालय लाया गया है, जिनका इलाज चल रहा है।

नक्सलियों ने मुठभेड़ को बताया फर्जी

इस घटना के बाद माओवादियों के पश्चिम बस्तर डिवीज़न कमेटी ने प्रेसनोट जारी करते हुए मुठभेड़ को फर्जी बताया और कहा कि मारे गए लोगों में 10 निर्दोष ग्रामीण थे, वहीं बीमार होने के बाद गांव में रहकर इलाज करा रहे PLGA सदस्य पुनेम कल्लू और उइका बुद्धू को भी मार दिया गया, जबकि दोनों निहत्थे थे। नक्सलियों ने दावे के साथ कहा कि पिड़िया में हुआ मुठभेड़ फर्जी था और उसमें तेंदूपत्ता तोड़ने गए ग्रामीणों को मार डाला गया। मृतकों में नाबालिग भी थे।

मानवाधिकार कार्यकर्ता हुए सक्रिय

इस घटना के बाद मानवाधिकार से जुड़े कार्यकर्त्ता और मीडिया के साथी सक्रिय हो गए। पत्रकार विकास तिवारी ‘रानू’ और अन्य कई ने ग्राउंड जीरो तक पहुंचकर ग्रामीणों से बातचीत की। ग्रामीणों ने मुठभेड़ में मारे गए सारे लोगों को पिड़िया और इतावर का बताया और कहा कि ये सभी अन्य ग्रामीणों के साथ तेंदूपत्ता तोड़ने गए थे। इस दौरान फोर्स आ गई और सभी भागने लगे। तभी जवानों ने गोलियां चलाई और निर्दोष ग्रामीण मारे गए। आलम यह था कि 4 ग्रामीण पेड़ों पर चढ़कर छिपने की कोशिश कर रहे थे, उन्हें भी गोली मार दी गई। गोलीबारी तब रुकी जब ग्रामीणों ने एक समूह में एकत्र होकर अपने हाथ ऊपर किये, मगर तब तक कई लोग मारे जा चुके थे। सामाजिक कार्यकर्त्ता और वकील बेला भाटिया ने दोनों प्रभावित गांवों में रुककर ग्रामीणों से बातचीत के बाद एक समूह को लेकर पहले गंगालूर थाने गई, और उसके बाद बीजापुर SP से मिलीं। उन्होंने बीजापुर में प्रेसवार्ता का आयोजन कर मुठभेड़ को लेकर तमाम जानकारियां दी और इसे मुठभेड़ नहीं बल्कि ‘नरसंहार’ करार दिया।

नाबालिग और निर्दोष ग्रामीणों को मारने का आरोप

बेला भाटिया ने मीडिया को कथित मुठभेड़ में मारे गए एक-एक ग्रामीण के बारे में बताया कि कोई तेंदूपत्ता तोड़ने गया था, तो कोई लौटकर फड़मुंशी के पास जा रहा था। उन्होंने कहा कि इसी तरह की घटना सालों पहले सारकेगुड़ा और एडसमेटा में हुई थी। एडसमेटा की बरसी 17 मई को है। 2013 में हुई इस घटना में तो रात को गोलियां चली थीं, यहां तो दिन दहाड़े दोपहर के वक्त फायरिंग की गई, और जवानों के डर से भाग रहे ग्रामीणों पर गोलियां चलाई गईं। यह दिन में किया गया ‘नरसंहार’ है।

पोटा केबिन में पढ़ने वाला नाबालिग भी मारा गया

बेला भाटिया ने बताया कि इस घटना में मारा गया पिड़िया का रहने वाला 15 वर्षीय चैतु कुंजाम बासागुड़ा के पोटा केबिन में रहकर 6 वीं की पढ़ाई कर रहा था। इसी तरह 17 वर्ष की सुनीता कुंजाम पिता हिड़मा तेन्दु पत्ता तोड़ते वक्त पुलिस की गोलियों का शिकार हुई।

गोलियों से हुआ घायल, मगर अस्पताल नहीं जा सका..

ग्राम पिड़िया का 16 साल का मोटू अवलम भी भागदौड़ और गोलीबारी के बीच छिपने की कोशिश कर रहा था। इस दौरान उसके पैर में 3 गोलियां लगीं। बेला भाटिया ने बताया कि घायल होने के बावजूद यह किशोर इलाज के लिए अस्पताल नहीं जा रहा है, क्योंकि उसे डर है कि कहीं उसे भी नक्सली कहकर पकड़ न लिया जाये। जबकि गोली के घाव से उसे गैंगरीन होने का खतरा है। वहीं कुछ ग्रामीण घायल हैं जिनका इलाज बीजापुर अस्पताल में हो रहा है, मगर उनसे किसी को मिलने नहीं दिया जा रहा है। इससे कौन घायल हुआ है इसका भी पता नहीं चल पा रहा है।

मारे गए लोगों के बाद ‘लापता’ का नंबर

बेला भाटिया बताती हैं कि इस घटना के बाद जवान बड़ी संख्या में ग्रामीणों को अपने साथ ले गए। वहीं जो लोग मारे गए थे, उनके रिश्तेदारों से ही मृतकों के शव उठवाये गए, जबकि वे गम में डूबे हुए थे। जवान पिड़िया से 57 और इतावर से 19 लोगों को पकड़कर ले गए। इन्हें उनके परिजन खोजते रह गए और उन्हें यह पता चल ही नहीं रहा था कि वे मारे गए हैं अथवा पुलिस द्वारा पकड़कर ले जाये गए हैं। इनमें से कुछ को छोड़ दिया गया, वहीं बाद में बड़ी संख्या में लोगो की गिरफ्तारी भी दिखाई गई।

‘शिकायत की रिसीव नहीं दे सकते’

बीजापुर के ग्राम पिड़िया और इतावर के प्रभावित ग्रामीण बेला भाटिया के साथ गंगालूर थाने गए और टीआई को एक FIR लिखने के लिए शिकायत पत्र देते हुए रिसीव कॉपी मांगी, मगर घंटों बिठाने के बावजूद पावती देने में आनाकानी की गई और असमर्थता जता दी गई। बेला भाटिया ने बताया कि वे ग्रामीणों को लेकर बीजापुर SP जितेंद्र यादव से भी मिलीं और शिकायत पत्र देते हुए पावती मांगी, मगर SP ने साफ  इंकार कर दिया और कहा कि उन्होंने इस मामले में FIR दर्ज कर ली है और दूसरी कोई FIR दर्ज नहीं की जा सकती। पेशे से अधिवक्ता बेला भाटिया का कहना है कि एक मामले से संबंधित दूसरे लोगों से भी FIR के लिए शिकायत ली जा सकती है।  

जवानों को रास्ते में मिले और पकड़ लिया..!

पुलिस ने एक और प्रेस नोट जारी कर बताया कि पीड़िया के मुठभेड़ के बाद उन्हें रास्ते में नक्सलियों का एक समूह मिला जिन्हें पकड़कर थाने लाया गया। सभी 14 युवक-युवतियों की इनामी नक्सली के रूप में पहचान हुई। जो गंगालूर एरिया कमेटी के अधीन काम करते हैं। इनमें से अधिकांश एक-दो गांव के ही लोग हैं। आरोप लग रहे हैं कि जिन ग्रामीणों को गांवों से पकड़कर ले जाया गया था, उन्हें ही नक्सली बताकर गिरफ्तारी दर्शा दी गई है। इसके अलावा बड़ी संख्या में लोगों को नक्सली बताकर आत्मसमर्पण भी कराना भी बताया गया है।  

कांग्रेस के जांच दल को रोकने की हुई कोशिश

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज के निर्देश पर कांग्रेस के विधायकों और वरिष्ठ नेताओं का एक दल ग्राम पिड़िया पहुंचा। ग्रामीणों का पक्ष जानने के बाद संतराम नेताम ने मीडिया को बताया कि उन्हें घटनास्थल आते वक्त पुलिस दल ने मुतवेंडी गांव में रोका, मगर किसी तरह वे वहां से निकल कर गांव पहुंचे। उन्होंने बताया कि बीते 6 माह में बस्तर में मुठभेड़ की घटनाएं बढ़ी हैं और मुठभेड़ के नाम पर निर्दोष आदिवासियों को मारा जा रहा है। विधायकों ने भाजपा सरकार पर तमाम आरोप लगाए और कहा कि सरकार इस इलाके को खाली कराना चाहती है ताकि उसे ‘कॉर्पोरेट’ को सौंपा जा सके।

मृतक का नाम अलग, मरे कोई और

संतराम नेताम और विक्रम मांडवी ने यह भी कहा कि इस घटना में कुछ ऐसे नाम भी सामने आये हैं, जो ग्रामीणों द्वारा बताये गए नाम से मेल नहीं खाते। मतलब मरा कोई और है, पुलिस कुछ और नाम बता रही है। कांग्रेस इस घटना की न्यायिक जांच की मांग करेगी और न्याय नहीं मिला तो न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया जायेगा।

गूंगे को भी नक्सली बताकर मारा

कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने भी एक दल के साथ पिड़िया और इतावर गांव में दो दिन रूककर ग्रामीणों से मुठभेड़ के बारे में जानकारी ली। उन्होंने बताया कि ग्रामीणों को चारों ओर से घेर कर मारा गया है। इन्हीं में शामिल अवलम सन्नू जो गूंगा-बहरा है और एक पत्थर के ऊपर बैठा हुआ था। उसे भी गोली मार दी गई। पुलिस द्वारा जारी मारे गए नक्सलियों की सूची में भी सन्नू की तस्वीर है। मनीष कुंजाम ने बताया कि छै बच्चों का पिता सन्नू नक्सली कैसे हो सकता है, इस पर सवाल उठना लाजमी है, क्योंकि गूंगे-बहरे को नक्सली अपने साथ रखकर क्या करेंगे।

भरमार बंदूकों से मुठभेड़..?

कुंजाम ने मुठभेड़ की हकीकत पर सवाल उठाते हुए कहा कि पुलिस ने कई घंटों तक मुठभेड़ में गोलीबारी होना बताते हुए 10 भरमार बंदूकें जब्त किये जाने की जानकारी दी है। इन कथित बंदूकों से जवानों का मुकाबला कैसे किया जा सकता है यह भी सवालिया निशान है।

ग्रामीणों को मारने वाले आखिर कौन..?

पिड़िया में हुए मुठभेड़ की किसी रिटायर्ड जज से जांच कराने की मांग करते मनीष कुंजाम ने कहा कि जवानों की तरफ से गोली चलाने वाले आखिर कौन लोग हैं, यह भी जांच का विषय है। कुंजाम ने कहा कि DRG में भर्ती अधिकांश लोग वे हैं, जो पूर्व में नक्सली रह चुके हैं और जिन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि बस्तर की पुलिस पूरी तरह इन आत्मसमर्पित पूर्व नक्सलियों पर निर्भर हो चुकी है। मुठभेड़ में भी यही लोग मोर्चे पर आगे रहते हैं। कुंजाम ने आशंका जताई कि समर्पित नक्सली उन्हीं इलाकों में काम कर रहे है जहां वे पूर्व में नक्सली थे। संभव है कि वे पुरानी दुश्मनी के चलते भी ग्रामीणों को निशाना बना रहे हों। DRG में काम कर रहे पूर्व नक्सलियों की मंशा यह होती है कि वे ज्यादा से ज्यादा लोगों को मारें ताकि इस आधार पर उनकी पल;इस में भर्ती हो सके। सरकार ने पुलिस को फ्री हैंड कर दिया है, और इसके चलते निर्दोष लोग भी मारे जा रहे हैं।

रुकनी चाहिए बर्बादी : मनीष कुंजाम

बस्तर क्षेत्र में सक्रिय पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने कहा है कि बीते कई दशक से हम इस लड़ाई को देख रहे हैं। नरसंहार, आगजनी, हिंसा जारी है, यह बर्बादी रुकनी चाहिए। इस लड़ाई से बस्तर का कुछ विकास भी नहीं हुआ है। उन्होंने नक्सलियों का आह्वान करते हुए कहा कि इतिहास आपको इसका गुनहगार ठहराएगा। बस्तर के लिए प्रजातांत्रिक और जनवादी तरीके से भी लड़ाई लड़ी जा सकती है। इसकी जिम्मेदारी माओवादियों की है, उन्हें हिंसा छोड़कर बातचीत का रास्ता अपनाना चाहिए। अगर सरकार हिंसा को समाप्त करने के लिए पहल करती है तो हम भूमिका निभाने को तैयार हैं।

आदिवासी समाज भी आया आगे

सर्व आदिवासी समाज, बस्तर संभाग का 58 लोगों का एक दल 17 मई को ग्राम पिड़िया पहुंचा था। ग्रामीणों से मुलाकात के बाद इस संगठन के अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर ने जगदलपुर में प्रेस वार्ता का आयोजन कर पिड़िया मुठभेड़ पर सवाल उठाया। उन्होंने बताया कि इस घटना की जांच की मांग को लेकर मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा जायेगा और बस्तर बंद सहित धरना प्रदर्शन भी किया जायेगा।

अन्य मुठभेड़ों पर उठ रहे सवाल

बहरहाल पिड़िया की घटना के अलावा अन्य मुठभेड़ों की बात करें तो उन पर भी सवालिया निशान लग रहे है, कहीं नक्सलियों को पकड़े  जाने के बाद मार दिए जाने तो कहीं निर्दोष ग्रामीणों को मारे जाने के आरोप लग रहे हैं। बीते दिनों एक दुखद हादसा हुआ, जिसमें विस्फोटक को खिलौना समझ कर खेलते हुए दो बच्चे मारे गए। पुलिस इसे नक्सलियों द्वारा बिछाकर रखा गया IED बता रही है, वहीं नक्सली इसे पुलिस द्वारा छोड़ा गया UBGL बता रहे हैं। वजह चाहे जो भी नुकसान तो बस्तर के लोगों को हो रहा है। यह लड़ाई रुकनी चाहिए और इसके लिए शांति वार्ता का मार्ग अपनाना चाहिए।