टीआरपी न्यूज। जातिगत गणना मामले में हस्तक्षेप करने से सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह मामला सरकार के दायरे में आता है और नीतिगत मामला है।
पी. प्रसाद नायडू ने वरिष्ठ अधिवक्ता रविशंकर जंडियाला और अधिवक्ता श्रवण कुमार करनम के माध्यम से उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल कर जाति जनगणना कराने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग की थी। सोमवार को न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने सुनवाई की।
अदालत ने “इस बारे में क्या किया जा सकता है? यह मुद्दा शासन के दायरे में आता है। यह नीतिगत मामला है।” अधिवक्ता रविशंकर जंडियाला ने तर्क दिया कि कई देशों ने ऐसा किया है, लेकिन भारत ने अभी तक ऐसा नहीं किया है। उन्होंने कहा, “1992 के इंद्रा साहनी फैसले में कहा गया है कि यह जनगणना समय-समय पर की जानी चाहिए।”
याचिका में कहा गाय था कि कि सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना वंचित समूहों की पहचान करने, समान संसाधन वितरण सुनिश्चित करने और लक्षित नीतियों के कार्यान्वयन की निगरानी करने के लिए जरूरी है। 1931 का अंतिम जाति-वार डेटा अब पुराना हो चुका है।