0 पांच लाख पौधे सूखे, अधिकारियों की तिजोरी में छाई हरियाली
जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर में कॉफी उत्पादन करके यहां के किसानों को संपन्न बनाने का जो सपना दिखाया गया था, वह पूरी तरह धराशायी हो गया है। पूर्ववर्ती सरकार में बस्तर में कॉफी उत्पादन की बड़ी योजना तैयार की गई थी। DMF और मनरेगा के साथ नीति आयोग का लगभग 20 करोड़ रुपया लगा दिया गया। मगर आलम यह है कि किसानों की जमीनों पर तैयार की गई नर्सरी के 5 लाख पौधे सूख गए हैं और योजना पूरी तरह फेल हो गई। खास बात यह है कि करोड़ों की यह योजना वैज्ञानिकों की सलाह को दरकिनार करते हुए तैयार की गई और इसका दुष्परिणाम सामने है।


सरकार को दिखाया गया सब्जबाग
छत्तीसगढ़ राज्य के उदय होने के साथ ही यहां के ब्यूरोक्रेट्स द्वारा अलग-अलग योजनाएं तैयार की गई और सरकारों तथा आम अवाम को सब्जबाग दिखाते हुए ऐसी योजनाओं में करोड़ों रूपये लगा दिए गए। बायो डीजल का उदहारण सबसे सटीक है, जिसमें गांव-गांव में जेट्रोफा के पौधे लगा दिए गए। इस योजना का परिणाम सबको पता है। ऐसी ही एक योजना प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर बस्तर में तैयार की गई। बस्तर के दरभा इलाके में कॉफी की नर्सरी तैयार करके इसके उत्पादन करने की योजना तैयार की गई। जिला प्रशासन द्वारा इसकी वृहत कार्ययोजना बनाई गई। बताया गया कि इस इलाके में कॉफी की काफी पैदावार होगी और इससे इलाके के किसानों को जोड़कर कॉफी का उत्पादन किया जा सकता है।

किसानों की जमीन पर लगाई गई नर्सरी
बस्तर के दरभा इलाके में उद्यानिकी महाविद्यालय के एक छोटे से भूभाग में इसकी नर्सरी तैयार करके यह बताया गया कि यहां कॉफी की अच्छी पैदावार हो सकती है। इसके बाद DMF, मनरेगा और नीति आयोग से लगभग 20 करोड़ रूपये जोड़कर खर्च करने का ताना-बाना तैयार किया गया। सरकार के समक्ष इसकी जो योजना तैयार की गई उसमें बताया गया कि ग्रामीणों को वन अधिकार के तहत जिन जमीनों का पट्टा दिया गया है, उसी जमीन पर नर्सरी तैयार की जाएगी। इसके बाद दरभा इलाके के 80 किसानों की 120 एकड़ जमीन पर कॉफी के पौधों की नर्सरी लगाई गई। किसानों को भी सब्जबाग दिखाया गया कि कॉफी का उत्पादन होगा तो वे भी लखपति बनेंगे।

वैज्ञानिकों की सलाह दरकिनार
दरअसल बस्तर में कॉफी उगाने की योजना जब शुरुआती दौर में थी तब केंद्रीय कॉफी बोर्ड बंगलुरु के वैज्ञानिकों ने स्पष्ट तौर सलाह दी थी कि बस्तर की जमीन और जलवायु कॉफी के बड़े पैमाने पर खेती के लिए उपयुक्त नहीं है। तब के अधिकारियों ने इस सलाह को दरकिनार कर बस्तर कॉफी की योजना तैयार कर ली और इतना तक कह दिया कि अब यहां उत्पादित होने वाली कॉफी को विदेशों तक भेजा जाएगा।

सूखती चली गई नर्सरी
दरभा के जिस इलाके में नर्सरी लगाईं गई वहां जमीन काफी पथरीली है, इस वजह से यहां खोदे गए बोर फेल हो गए। इसका नतीजा यह निकला कि सैकड़ों एकड़ वाले इस भूभाग में लगाई गई नर्सरी में बाल्टी में पानी भर-भर कर पौधों को सींचा गया। अच्छी तरह सिंचाई नहीं होने और मौसम अनुकूल नहीं होने के चलते कॉफी के पौधे सूखते चले गए और आज की स्थिति में यहां लगाए गए साढ़े 5 लाख पौधे पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं।
किसानों को हुआ नुकसान
कॉफी नर्सरी के लिए यहां जिन किसानों की जमीन ली गई वे अब पछता रहे हैं। उनका कहना है कि अगर वे अपनी जमीन पर दूसरी खेती करते तो उन्हें फायदा होता, मगर उन्हें सब्जबाग दिखाकर अफसरों ने केवल नुकसान पहुंचाने का काम किया है। केंद्र और राज्य सरकारों के फण्ड के दुरूपयोग का इससे बड़ा उदहारण और क्या हो सकता है।
खनन प्रभावितों के लिए मिलने वाले इस फंड का बस्तर में अफसरों द्वारा कॉफी के नाम पर दुरुपयोग किया गया, और इसके परिणाम आज सबके सामने हैं। हालांकि, छत्तीसगढ़ में DMF (जिला खनिज न्यास) के दुरुपयोग का यह मामला नया नहीं है। प्रदेश के कई जिलों में इस फंड की आड़ में भ्रष्टाचार के मामले लगातार सामने आते रहे हैं। अंततः सवाल यह उठता है कि नित नई योजनाओं के नाम पर इस फंड का दोहन आखिर कब तक जारी रहेगा?