रायपुर। राज्य में Dial-112 के संचालन को लेकर चल रही कशमकश अभी तक थमी नहीं है। अब तक तीन कंपनियों ने इस प्रोजेक्ट का संचालन किया और आखिरकार जिकित्सा हेल्थ केयर को जिम्मा मिला। विवादों के चलते मामला विभाग से होते हुए गृहमंत्री विजय शर्मा तक पहुंचा और उन्होंने ने इसे रद्द कर दिया। अब इस बीच खबर है कि Dial-112 का संचालन CDAC कर सकती है। अस्पताल सूचना, औषधि प्रबंधन प्रणाली, टेलीमेडिसिन सॉल्यूशन, स्वास्थ्य सेवा मानक, निर्णय समर्थन प्रणाली, मोबाइल हेल्थकेयर सॉल्यूशन, ईएचआर/ईएमआर सिस्टम पर काम कर रही हैं। सूत्रों के अनुसार, सीडैक के पास भी Dial-112 के संचालन के लिए कोई बड़ा अनुभव नहीं है लेकिन उसे काम देने की तैयारी लगभग हो चुकी है।

क्या है पूरा मामला…?
दरअसल, Dial-112 के संचालन के लिए जारी टेंडर को गृहमंत्री ने रद्द कर दिया है। इतना ही नहीं, हाईकोर्ट में कैविएट भी दायर किया गया है कि अगर इस आदेश को कोई चुनौती दे तो शासन का पक्ष पहले सुना जाए। बता दें कि Dial-112 में देश की पांच कंपनियों ने भाग लिया था। कमेटी ने लंबी प्रक्रिया के बाद जिकित्जा हेल्थकेयर लिमिटेड (ZHL) का टेंडर के लिए फाइनल किया था और अंतिम मंजूरी के लिए शासन को भेजा था।
सरकारी उपक्रम टीसीआईएल को बाहर कर 138 करोड़ रुपए अधिक में जेएडएचएल को काम दिया जा रहा था। जबकि इस कंपनी पर राजस्थान सीबीआई केस दर्ज है, जिसकी जानकारी टेंडर में नहीं दी गई थी। साथ ही झारखंड में फर्जी सर्टिफिकेट लगाकर काम लेने के तथ्य भी सामने आए थे, जिस पर पुलिस विभाग ने एक जांच कमेटी बनाई। उसमें भी कंपनी को क्लीन चिट दे दी गई, लेकिन जब फाइल मंत्री विजय शर्मा के पास पहुंची तो उन्होंने सीधे टेंडर को कैंसिल करने के निर्देश दिए। बताया जा रहा है कि इस मामले में भाजपा संगठन और दिल्ली ने भी घोर आपत्ति उठाई थी। हालांकि, जेडएचएल कंपनी का टेंडर रद्द कर दिया गया है लेकिन एफआईआर दर्ज नहीं कराई गई। कंपनी के खिलाफ सीबीआई जांच चल रही है और फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर टेंडर लेने की बात भी सामने आ चुकी है लेकिन एफआईआर दर्ज नहीं की गई।
कंट्रोल रूम में एक हजार कर्मचारी देते है सेवा
Dial-112 प्रोजेक्ट में 1000 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं। कंट्रोल रूम में तीन शिफ्ट में 90 स्टाफ मौजूद रहते हैं। वे फोन उठाने से लेकर नगर में तैनात साथियों से कॉर्डिनेट करने की जिम्मेदारी निभा रही हैं। फिलहाल राज्य के 11 शहरों में लगभग ढाई सौ गाड़ियों के माध्यम से Dial-112 की सेवाएं पहुंचाई जा रही है। तीन शिफ्ट में एक हजार से ज्यादा की संख्या में ड्राइवर, तकनीकी स्टाफ और अन्य लोग काम करते हैं। वहीं, Dial-112 के संचालन में सरकार को हर साल 50 करोड़ रूपयों से ज्यादा का व्यय करती हैं, जिसमें कर्मचारियों का वेतन, गाड़ियों के डीजल, मेंटेनेंस और तकनीकी खर्च शामिल हैं।
फिलहाल टाटा के साथ मैनपावर देख रही एबीपी प्राइवेट लिमिटेड को फरवरी 2025 तक प्रोजेक्ट के संचालन की जिम्मेदारी दी गई है। अगर फिर तुरंत टेंडर नहीं होता तो एबीपी को एक्सटेंशन देना पड़ेगा, जबकि इस कंपनी के पास आईटी सपोर्ट का कोई अनुभव नहीं है।
टेंडर प्रक्रिया में देरी से 400 गाड़ियों पर जम रही धूल
Dial-112 का टेंडर फाइनल नहीं होने की वजह से 400 नई गाड़ियां धूल खा रही हैं। पिछली सरकार ने 16 माह पहले Dial-112 के संचालन का विस्तार करने करने के लिए 400 बोलेरो खरीदी थीं। 22 शहरों में इमरजेंसी सर्विस Dial-112 शुरू करने के लिए 40 करोड़ में खरीदी गई ये गाड़ियां 16 माह से अम्लेश्वर के तीसरी बटालियन के मैदान में खड़ी है और इनमें धूल की मोटी परत जम चुकी है। गाड़ियों के टायर खराब होने लगे हैं और बैटरी उतर गई है क्योंकि इन्हें 16 महीनों में एक भी बार नहीं चलाया गया है।