• 20 राइस मिल अब भी हैं सील, मालिकों को हो रहा है नुकसान
  • राइस मिल मालिकों की उम्मीद अब भी सरकार पर टिकी

रायपुर। लगभग डेढ़ माह पूर्व जब प्रदेश भर के राइस मिलर्स ने बकाया भुगतान की मांग को लेकर धान के उठाव का कार्य बंद कर दिया था, तब खाद्य विभाग ने लगभग 40 राइस मिलों को सील करते हुए स्टॉक को भी जप्त कर लिया था। बाद में जब उठाव का कार्य शुरू कर दिया गया तब भी लगभग 20 मिलों के सील नहीं खोले गए। इन्ही में से एक मिल के मालिक ने हाईकोर्ट की शरण ली। यहां पहली ही सुनवाई में कोर्ट ने खाद्य विभाग को फटकार लगाई और तत्काल मिल को खोलने का आदेश दिया। कोर्ट के इस फैसले से दूसरे राइस मिलों को राहत तो मिली है मगर वे भी कोर्ट जाने की बजाय सरकार की ओर से ही पहल किये जाने की उम्मीद लगाए बैठे हैं।

प्रोत्साहन राशि पर टिका है मिल का व्यवसाय

दरअसल छत्तीसगढ़ शासन द्वारा किसानों से खरीदे गए धान की कस्टम मिलिंग (कुटाई) प्रदेश के राइस मिलरों से करवाई जाती है जिसके प्रतिफल के रूप में शासन द्वारा राइस मिलरों को प्रोत्साहन राशि दी जाती है ।

समस्या यह रही कि वर्ष 2022-23 की कस्टम मिलिंग की प्रोत्साहन राशि का भुगतान शासन द्वारा राइस मिलरों को माह नवम्बर 2024 तक नहीं किया गया था। साथ ही नयी कस्टम मिलिंग पॉलिसी बनाकर प्रोत्साहन राशि को 120 रु प्रति क्विंटल से घटाकर 60 रु प्रति क्विंटल कर दिया गया एवं SLC के दर पर भाड़ा नहीं दिया जाना भी तय किया गया। नयी पालिसी में कस्टम मिलिंग के नियम कड़े कर राइस मिलरों पर कई प्रकार की पेनाल्टी लगाने का प्रावधान भी कर दिया गया।

विरोध में मिलर्स ने किया आंदोलन

प्रोत्साहन राशि के भुगतान में विलंब एवं नयी कस्टम मिलिंग पालिसी को लेकर राइस मिलरों द्वारा कार्य बंद करने का आन्दोलन कर शासन से बातचीत करने की कोशिश की गई। इस प्रकरण को लेकर शासन द्वारा कई कैबिनेट मीटिंग्स के बाद भी कोई निर्णय नहीं लिया गया, जिससे धान खरीदी भी प्रभावित हो रही थी ।

दबाव बनाने सील किये गए कई राइस मिल

इसी दौरान राइस मिलरों पर दबाव बनाने की नियत से खाद्य विभाग के जरिये 16 दिसंबर 2024 को बिना किसी नोटिस एवं बिना किसी ठोस कारण के प्रदेश के लगभग 40 राइस मिलों में छापा मार कर राइस मिल को सील कर दिया गया एवं स्टॉक को जप्त कर लिया गया। इसके अलावा विभाग द्वारा राइस मिलरों के MA number को भी block कर दिया गया, जिससे राइस मिलर्स धान का उठाव नहीं कर पा रहे हैं एवं पुनः धान उठाव (DO) के लिए आवेदन भी नहीं कर पा रहे हैं।

इस बीच सरकार से वार्ता के बाद राइस मिलर्स धान का उठाव करने को तैयार हुए और आर्थिक संकट के बाद भी राइस मिलरों ने वर्ष 2024-25 के कस्टम मिलिंग के कार्य के लिए आवेदन कर करोड़ों रुपये की बैंक गारंटी मार्कफेड में जमा कराई। इसके बाद ही प्रदेश भर में धान के उठाव का कार्य शुरू किया गया।

Deputy Chief Minister Arun Saw

आंदोलन थमने के बाद भी नहीं खोला राइस मिल

धान का उठाव प्रारंभ करने के पहले खाद्य विभाग ने 40 राइस मिलों को सील किया था। हालांकि इस दौरान 20 राइस मिल मालिकों ने ऐन केन प्रकारेण दबाव बनाकर अपने राइस मिलों को खुलवा लिया मगर सरकार से बातचीत और समझौते के बाद भी प्रदेश भर के 20 राइस मिलों के सील नहीं खोले गए, जिससे इनके मालिक नए साल में अपना व्यवसाय शुरू नहीं कर सके।

राइस मिलर ने ली हाईकोर्ट की शरण

शासन के द्वारा राइस मिल को सील करने के विरुद्ध गरियाबंद में संचालित दातार राइस मिल के मालिक ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। इस मामले में हाईकोर्ट ने 30 जनवरी को पहली ही सुनवाई में खाद्य विभाग को फटकार लगते हुए कहा कि सन 2016 के कस्टम मिलिंग आदेश के तहत किसी भी राइस मिल को इस तरह बिना नोटिस के और राइस मिलर का पक्ष जाने बिना सील किया नहीं जा सकता। कोर्ट ने राइस मिलर्स के पक्ष में फैसला लेते हुए सुनवाई के दिन ही राइस मिल को सील मुक्त करने का आदेश दिया। इसके बाद जिला प्रशासन ने भी तत्परता दिखाते हुए उसी दिन दातार राइस मिल के सील खोल दिए।

हाईकोर्ट के फैसले से नहीं लिया सबक

बता दें कि हाईकोर्ट द्वारा राइस मिल को बंद करने के तरीके पर सवाल उठाते हुए एक राइस मिल को खोलने का आदेश दिया गया, मगर इससे सबक लेते हुए सील किये गए बाकी मिलों को खाद्य विभाग द्वारा अब तक नहीं खोला गया है। इस सन्दर्भ में राइस मिलर्स का कहना है कि अगर वे भी दातार राइस मिल के पक्ष में हुए फैसले के सन्दर्भ में याचिका दायर करते हैं तो कोर्ट से उनके पक्ष में भी फैसला आने की उम्मीद है, मगर वे सरकार के खिलाफ नहीं जाना चाहते और उन्हें उम्मीद है कि प्रदेश के मुखिया द्वारा विशेष पहल करते हुए उनके उनके राइस मिलों को भी खुलवाने का आदेश दिया जायेगा।

आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं मिलर्स

इस मामले में संबंधित राइस मिलर्स का कहना है कि शासन द्वारा यदि उनके मिलों को सील मुक्त नहीं किया जाता है तो राइस मिलर्स बैंक का कर्ज एवं ब्याज का भुगतान कैसे कर पाएंगे। शासन के इस कृत्य के कारण राइस मिलर्स तथा उनके कर्मचारियों के सड़क पर आने की स्थति निर्मित हो जाएगी ।

कस्टम मिलिंग के नियम के तहत राइस मिलर्स को कम से कम दो महीने कस्टम मिलिंग का कार्य करना आवश्यक है। इस कार्य के लिए राइस मिलर्स द्वारा बैंक से करोड़ों रुपये का कर्ज लिया जाता है जिसके चलते मिलर्स पर ब्याज के भुगतान का भार होता है। शासन द्वारा मिलों को सील करने के कारण मिलर्स दो महीने के नियम को कैसे पूर्ण कर पाएंगे इसका जवाब शासन के पास भी नहीं है।

बहरहाल प्रदेश के बंद पड़े इन राइस मिलों के मालिक सरकार के पहल का इंतजार कर रहे हैं, मगर वर्तमान में प्रदेश भर में अचार संहिता लागू है, ऐसे में सरकार इन राइस मिलर्स के पक्ष में कोई फैसला कर पायेगी, इस पर संदेह है।