जयपुर। राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित श्री सांवलिया सेठ के भंडार दिन पर दिन रिकॉर्ड बनाते जा रहा है। 14 मार्च को राजभोग आरती के बाद खोले गए भंडार में रिकॉर्ड तोड़ चढ़ावा आया है। भंडार में निकले खजाने की दो चरणों की गिनती में ही रिकॉर्ड टूट गया। दो चरणों में कुल 12 करोड़ 52 लाख रुपये की गिनती की जा सकी है, जबकि मंदिर के दानपात्र में आई राशि के तीसरे चरण की गिनती होनी बाकीहै। तीसरे चरण की गिनती मंगलवार को की जाएगी।

पहले चरण में इतने करोड़…
इस बार श्री सांवलिया सेठ के भंडार को डेढ़ माह बाद 14 मार्च को खोला गया। पहले चरण में 7 करोड़ 55 लाख रुपए की राशि की गिनती हुई थी। वही दूसरे चरण की गिनती सोमवार को हुई जिसमें 4 करोड़ 97 लाख 20 हजार रुपए के नोटों की गिनती हुई। दो चरणों में अब तक कुल 12 करोड़ 52 लाख 20 हजार रुपए की गिनती पूरी हुई हैं। वहीं, मन्दिर के दानपात्र की बाकी रकम की गिनती तीसरे चरण में मंगलवार को होगी।
गिनती में लगे 150 से अधिक लोग
दानपात्र में आए चढ़ावे की गिनती सीसीटीवी कैमरे और मैन्युअल कैमरों की निगरानी में की जा रही है। जिसमें 150 से अधिक लोग लगे हुए हैं। वही मण्डफिया के पांच बैंकर्स के मैनेजर समेत उनके स्टाफ द्वारा नोटों की गिनती कर राशि बैंक में जमा की जा रही है। डेढ़ माह में खोले भंडार की राशि की गणना 5 से 6 चरणों में पूरी होगी।

सोना-चांदी के चढ़ावे की गिनती बाकी
भण्डार से निकली राशि के अलावा ऑनलाइन, मनीऑर्डर, भेंटकक्ष में प्राप्त सोना-चांदी और चढ़ावा राशि की गिनती होना बाकी हैं। मन्दिर के प्रशासनिक अधिकारी नन्द किशोर टेलर का कहना है कि श्री सांवलिया सेठ मन्दिर में रोजाना एक लाख श्रद्धालुओं दर्शन करने पहुंच रहे हैं।
इससे पहले गत दिसम्बर में भंडार से 35 करोड़ रुपए से अधिक की राशि चढ़ावे में प्राप्त हुई थी। जो अब तक का सर्वाधिक चढ़ावे का रिकॉर्ड हैं। वही ढ़ाई किलो सोना और सवा क्विंटल से अधिक चांदी समेत विदेशी मुद्राएं भी भंडार से प्राप्त हुई थी।
जानिए सांवरिया जी मंदिर के बारे में
सांवरिया जी मंदिर राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित है। यह श्री सांवलिया सेठ के नाम से भी जाना जाता है। किंवदंती यह है कि वर्ष 1840 में, भोलाराम गुर्जर नाम के एक ग्वाला ने बागुंड गांव के छापर में तीन दिव्य मूर्तियों को भूमिगत दफनाने का सपना देखा था; साइट को खोदने पर, भगवान कृष्ण की तीन सुंदर मूर्तियों की खोज की गई, जैसा कि सपने में दिखाया गया था। मूर्तियों में से एक को मंडफिया ले जाया गया, एक को भादसोड़ा और तीसरा बागुंड गाँव के छापर में, उसी स्थान पर जहां यह पाया गया था। तीनों स्थान मंदिर बन गए। ये तीनों मंदिर 5 किमी की दूरी के भीतर एक-दूसरे के करीब स्थित हैं।
यहां भगवान हैं बिजनेस पार्टनर
यह मंदिर देवस्थान विभाग राजस्थान सरकार के अन्तर्गत आता है। कालांतर में सांवलिया सेठ मंदिर की महिमा इतनी फैली कि उनके भक्त वेतन से लेकर व्यापार तक में उन्हें अपना हिस्सेदार बनाते हैं। मान्यता है कि जो भक्त खजाने में जितना देते हैं सांवलिया सेठ उससे कई गुना ज्यादा भक्तों को वापस लौटाते हैं। व्यापार जगत में उनकी ख्याति इतनी है कि लोग अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए उन्हें अपना बिजनेस पार्टनर बनाते हैं। व्यापारी भगवान को उनका हिस्सा वापस लौटाते हैं, और यही वजह है कि इस मंदिर में हर महीने करोड़ों रूपये का चढ़ावा आता है।