टीआरपी डेस्क। राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए मामले की शीघ्र सुनवाई की मांग की। सोमवार को उन्होंने इस संबंध में मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के समक्ष उल्लेख किया, जिस पर CJI ने आश्वासन दिया कि याचिकाओं को शीघ्र सूचीबद्ध करने पर विचार किया जाएगा।

सीजेआई का बयान
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, मैं दोपहर में उल्लेख पत्र देखूंगा और निर्णय लूंगा। हम इसे सूचीबद्ध करेंगे। ज्ञात हो कि इस कानून के खिलाफ जमीयत उलेमा-ए-हिंद समेत कई संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की हैं, जिनमें इसे संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 25 का उल्लंघन बताया गया है।
क्या है याचिकाकर्ताओं का तर्क?
याचिकाओं में कहा गया है कि वक्फ संशोधन अधिनियम:
- धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है
- संविधान प्रदत्त समानता के अधिकार को चुनौती देता है
- वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति मुस्लिम धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप है
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अपनी याचिका में इसे देश के संविधान पर सीधा हमला बताया है। उनका कहना है कि यह अधिनियम मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता छीनने की कोशिश है।
सरकार की दलील: पारदर्शिता और जवाबदेही का प्रयास
सरकार ने इस कानून को धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ नहीं, बल्कि वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन से जुड़ा बताया है। सरकार के मुताबिक:
- संशोधन से महिला अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी
- प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी
- यह बदलाव वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने में सहायक होगा
सरकार का यह भी तर्क है कि संविधान का अनुच्छेद 15(3) महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान की अनुमति देता है, और इसी आधार पर मुस्लिम महिलाओं के हितों की रक्षा की गई है।
विवाद का मुख्य मुद्दा: धार्मिक स्वतंत्रता बनाम प्रशासनिक सुधार
मामले की अगली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट इस सवाल पर विचार करेगा कि क्या वक्फ संशोधन कानून धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का हनन करता है या केवल संपत्ति प्रबंधन सुधारों से जुड़ा है।