इकलौती मादा वनभैसा “खुशी”की मौत, राजकीय पशु के संरक्षण-संवर्धन मुहिम को झटका

रायपुर/गरियाबंद। गरियाबंद के उदंति अभ्यारण्य में प्रदेश की इकलौती बची वनभैसा खुशी की मौत हो गई। तड़के करीब 4 बजे खुशी ने दमतोड़ दिया। इस घटना के बाद वन विभाग के टॉप अधिकारी उदंति अभ्यारण्य पहुंच रहे हैं।

आपको बता दें कि वनभैसा के संरक्षण और संवर्धन को लेकर वन विभाग द्वारा पिछले कई सालों से मादा वनभैसा को लेकर वैज्ञानिक पद्धति से भी मादा ब्रिडिंग की कोशिशें की जा रही थी, लेकिन अभी तक वन विभाग को कामयाबी नहीं मिली। इसी बीच मादा वनभैसा की मौत हो गई।

मादा वनभैस के मौत के खबर के बाद मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी राजेश पाण्डेय, उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व के उप निदेशक आयुष जैन तथा वन विभाग आला अफसर उदंती अभ्यरण्य पहुंच गये है डॉक्टरोें की टीम वनभैंसा की मौत की कारणों की पता लगा रही है।

राज्य में 35 वन भैंसे होने का अनुमान, पर गिनती सिर्फ 13 की

वन विभाग के अनुमान के मुताबिक, प्रदेश में वन भैंसों की संख्या 25 से 35 तक हो सकती है। हालांकि जिनकी गणना संभव हो पाई है, उनमें सिर्फ 13 की संख्या का ही पता चल सका है। इसमें 10 वन भैंसे सीतानदी उदंती टाइगर रिजर्व में थे, अब एक की मौत हो गई। जबकि असम से लाए गए दो वन भैंसों को बारनवापारा में रखा गया है और क्लोन वन भैंसे को जंगल सफारी में जगह दी गई है। हालांकि नर भैंसे को छोड़कर अब कोई भी मूल नस्ल की मादा नहीं बची है।

साल 2001 में घोषित किया गया था राजकीय पशु

प्रदेश में लगातार कम होती वन भैंसों की संख्या को देखते हुए साल 2001 में इसे राजकीय पशु घोषित किया गया। उस समय प्रदेश में वनभैंसों की संख्या करीब 80 थी, लेकिन घटत-घटते सिमटती चली गई। 20वीं सदी के शुरुआत में वन भैंसा की प्रजाति अमरकंटक से लेकर बस्‍तर तक में बहुत अधिक संख्‍या में पाई जाती थी। वर्तमान में वनभैंसा प्रमुखत: दंतेवाड़ा जिले के इंद्रावती राष्‍ट्रीय उद्यान और उदंती अभारण्‍य में ही रह गया है।

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