नई दिल्ली : कृषि कानूनों के विरोध में राष्ट्रीय राजधानी के सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों को आज बड़ी सफलता मिली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम अपने उद्बोधन में तीनों विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी है। इन कानूनों को लाते हुए सरकार ने दावा किया था कि ये कानून कृषि क्षेत्र में व्यापक सुधार के लिए लाए गए हैं।

लेकिन कई किसान संगठनों का मानना था कि ये कानून गलत हैं। वे इन्हें काला कानून बताकर पिछले वर्ष भर से अधिक समय से आंदोलन कर रहे थे। जिसके बाद आज अंततः सरकार को किसानों के आगे झुकना पड़ा और स्वयं प्रधानमंत्री ने इन कानूनों को निरस्त करने का ऐलान किया। सरकार के इस ऐलान को किसान संगठनों अपनी जीत बता रहे हैं। लेकिन मोदी सरकार को बैकफुट पर धकेलने में किसान संगठनों के भी पसीने छूट गए। इसके लिए किसानों ने राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर डेरा डाला, फिर इस आंदोलन को सड़कों तक भी ले गए, नेताओं का घेराव किया, क्या कुछ नहीं किया लेकिन अंततः मिलने वाली जीत शानदार रही।

राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर डाला डेरा

कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग के साथ इन कानूनों के विरोध में 26 नवंबर 2020 को किसान संगठन सड़कों पर आए। किसान संगठनों ने काफी बड़ी संख्या में दिल्ली के सिंघु, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर कब्जा जमाया। किसानों ने घोषणा कर दी कि जब तक केंद्र सरकार कानून वापस नहीं ले लेती, वे वहीं पर डटे रहेंगे। आंदोलन के लिए वे राशन पानी भी अपने साथ लेकर आए। साथ ही उन्होंने चुनौतीपूर्ण अंदाज़ में कहा कि उनके पास सालों तक आंदोलन करने के लिए राशन पानी की व्यवस्था है।

सोशल मीडिया ने निभाई महत्वपूर्ण

राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं के घेराव से शुरू हुए इस किसान आंदोलन को गति देने और जन जन तक पहुँचाने में सोशल मीडिया की भूमिका अति महत्वपूर्ण रही। किसान संगठन के सभी नेता पूरे आंदोलन के जौरान ट्विटर, फेसबुक आदि सभी माध्यमों पर काफी सक्रिय रहे। विशेषकर किसान नेता राकेश टिकैत इस दौरान ट्विटर पर काफी सक्रिय रहे और उन्हें किसान आंदोलन से लोगों को जोड़ने में अपार सफलता मिल। इसके साथ ही विभिन्न किसान संगठनों के सोशल मीडिया पेजों से भी लोगों को आंदोलन से जोड़ने का काम किया गया, महापंचायतों का लाइव टेलीकास्ट भी किया गया।

जब आंदोलन पहुँच गया था खत्म होने की कगार पर

किसानों ने 2021 की 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के दिन ट्रैक्टर परेड निकाली। पर इस दौरान हिंसा हो गई, लाल किले पर भी बहुत उपद्रव हुआ। हिंसा के कारण देश के लोगों का भरोसा इस आंदोलन से उठने लगा तब लगा कि आंदोलन खत्म ही हो जाएगा। लेकिन 29 जनवरी को राकेश टिकैत ने अपनी बात देश के सामने रखी इस दौरान वो रो भी पड़े, और उनके आंसू रंग भी लाए और आंदोलन फिर से अपने पैरों पर खड़ा हुआ। टिकैत के आंसुओं ने न सिर्फ आंदोलन को ज़िंदा रखा, बल्कि इसके बाद टिकैत किसान आंदोलन के बड़े चेहरे के रूप में भी आगे आए।

BJP नेताओं की गांव में एंट्री बैन

किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा असर हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में दिखा। इनमें से दो राज्यों पंजाब और उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव अगले ही साल होने को हैं। इस कारण नेताओं का दौरा लगा हुआ था पर कई गांवों में भाजपा नेताओं की एंट्री ही बैन कर दी गई। पंजाब के मुक्तसर जिले में कृषि कानूनों के समर्थन में प्रेस कॉन्फ्रेंस करने पहुंचे भाजपा विधायक अरुण नारंग को तो दौड़ा-दौड़ा कर पीटा भी गया।

किया गया नेताओं का घेराव

आंदोलन के दौरान कई स्थानों पर किसानों ने नेताओं की घेराबंदी भी की। हरियाणा में सीएम मनोहर खट्टर और डिप्टी सीएम चौटाला के कार्यक्रमों में भी किसानों ने जमकर हंगामा हुआ। करनाल में तो सीएम के एक लाठीचार्ज भी करना पड़ा। हरियाणा के रोहतक के एक गांव में एक मंदिर में पूर्व मंत्री के साथ कई भाजपा नेताओं को किसानों ने बंधक बना लिया था। काफी मशक्कत के बाद पुलिस उन्हें छुड़वा पाई थी।

वोट से चोट करने की चेतावनी

राकेश टिकैत आंदोलन के दौरान चुनाव में वोट से चोट देने का ऐलान किया। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वे किसी पार्टी के साथ मंच पर नहीं जाएंगे। टिकैत बंगाल चुनाव के समय BJP के खिलाफ प्रचार करने बंगाल भी पहुंचे। टिकैत ने देश भर में अनेक स्थानों पर महापंचायत की। हरियाणा में एक विधानसभा सीट के उपचुनाव में BJP को हार का मुँह भी देखना पड़ा।

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