नई दिल्ली। निचली अदालत, दिल्ली हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी निर्भया के दुष्कर्मी पवन की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने वारदात के वक्त खुद के नाबालिग होने का दावा किया था।

सुप्रीम कोर्ट की विशेष बेंच ने सोमवार को याचिका पर सुनवाई की। तीन सदस्यीय बेंच ने पवन के वकील एपी सिंह से सवाल किया कि पुनर्विचार याचिका में भी आपने यही मामला उठाया था, अब इसमें नई जानकारी क्या है और क्या यह विचार करने योग्य है?

एपी सिंह ने दलील दी कि पवन की उम्र संबंधी दस्तावेजों की जानकारी दिल्ली पुलिस ने जानबूझकर छिपाई।  हाईकोर्ट ने भी गलत ढंग से पवन की याचिका खारिज की और तथ्यों को नजरंदाज किया।

कोर्ट का सवाल, दोषी के वकील का जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने एपी सिंह से सवाल किया कि पुनर्विचार याचिका में भी दोषी ने यही बात उठाई थी। अब आपके पास इसमें क्या नई जानकारी है। क्या यह अब विचार करने योग्य है?

एपी सिंह ने कहा कि इस मामले में बहुत बड़ी साजिश है। दिल्ली पुलिस ने जानबूझकर पवन की उम्र संबंधी दस्तावेजों की जानकारी छिपाई है। वारदात के वक्त पवन की उम्र 17 साल, 1 महीने और 20 दिन थी।

ऐसे में वारदात में उसकी भूमिका नाबालिग के तौर पर देखी जाए। दोषी पवन ने दिल्ली हाईकोर्ट में भी वारदात के वक्त खुद के नाबालिग होने का दावा किया था। लेकिन, हाईकोर्ट ने तथ्यों को नजरंदाज कर दिया। पवन ने याचिका में कहा है कि 16 दिसंबर 2012 को निर्भया के साथ हुई हैवानियत के वक्त वह नाबालिग था।

हाईकोर्ट ने दलीलों और सबूत को अनदेखा कर फैसला दिया, लिहाजा इंसाफ किया जाए, क्योंकि न्याय प्रक्रिया में थोड़ी सी भी चूक उसे फांसी के फंदे तक पहुंचा देगी।

पवन ने निचली अदालत में भी यही बात कही थी। यहां भी उसकी याचिका खारिज कर दी थी। उसके बाद वह हाईकोर्ट पहुंच गया था। यहां निराशा हाथ लगी तो अब सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।

पवन ने याचिका में कहा गया है कि जांच अधिकारियों ने उम्र का निर्धारण करने के लिए उसकी हड्डियों की जांच नहीं की थी। उसने अपने मामले को जुवेनाइल एक्ट की धारा 7 (1) के तहत चलाए जाने की अपील की है।

3 दोषियों के पास अब 5 विकल्प

1) पवन, मुकेश, अक्षय और विनय शर्मा की फांसी के लिए दूसरी बार डेथ वॉरंट जारी हो चुका है। इसमें फांसी की तारीख 1 फरवरी मुकर्रर की गई है। पहले वॉरंट में यह तारीख 22 जनवरी थी। दोषी पवन के पास अभी क्यूरेटिव पिटीशन और दया याचिका का विकल्प है। यही विकल्प अक्षय सिंह के पास हैं। विनय शर्मा के पास भी दया याचिका का विकल्प है। दोषी मुकेश के पास अब कोई कानूनी विकल्प नहीं है। यानी तीन दोषी अभी 5 कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल कर सकते हैं।

2) फांसी में एक और केस अड़चन डाल रहा है। वह है सभी दोषियों के खिलाफ लूट और अपहरण का केस। दोषियों के वकील एपी सिंह का कहना है कि पवन, मुकेश, अक्षय और विनय को लूट के एक मामले में निचली अदालत ने 10 साल की सजा सुनाई थी। इस फैसले के खिलाफ अपील हाईकोर्ट में लंबित है। जब तक इस पर फैसला नहीं होता जाता, दोषियों को फांसी नहीं दी जा सकती।

3) जिन दोषियों के पास कानूनी विकल्प हैं, वे तिहाड़ जेल द्वारा दिए गए नोटिस पीरियड के दौरान इनका इस्तेमाल कर सकते हैं। दिल्ली प्रीजन मैनुअल के मुताबिक, अगर किसी मामले में एक से ज्यादा दोषियों को फांसी दी जानी है तो किसी एक की याचिका लंबित रहने तक सभी की फांसी पर कानूनन रोक लगी रहेगी। निर्भया केस भी ऐसा ही है, चार दोषियों को फांसी दी जानी है। अभी कानूनी विकल्प भी बाकी हैं और एक केस में याचिका भी लंबित है। ऐसे में फांसी फिर टल सकती है।

यह सिर्फ फांसी टालने का हथकंडा : निर्भया की मां

दोषी की याचिका पर निर्भया की मां आशा देवी ने कहा कि यह सिर्फ फांसी को टालने का हथकंडा है। उसकी याचिका 2013 में ही सुप्रीम कोर्ट से खारिज हो गई थी। कोर्ट रिव्यू पिटीशन भी ठुकरा चुका है। दोषी सिर्फ वक्त बर्बाद कर रहे हैं। उन्हें 1 फरवरी को फांसी पर लटकाया जाना चाहिए।

 

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