भदोही और मिर्जापुर के कालीन को टक्कर दे रहे छत्तीसगढ़ के कालीन... आईएएस एकेडमी मसूरी की भी बने शान

सरगुजा। कार्पेट निर्माण के क्षेत्र में अब छत्तीसगढ़ की अपनी अलग पहचान है। यहां तैयार किए गए कालीन उत्तर प्रदेश के भदोही और मिर्जापुर के कालीन उद्योग को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। इतना ही नहीं छत्तीसगढ़ के बने आकर्षक कालीन बड़े-बड़े कॉर्पोरेट घराने की शान बढ़ा रहे हैं।

विलुप्त हो चुके शिल्प को मिली नई जान

छत्तीसगढ़ में कालीन निर्माण की कहानी तिब्बती शरणार्थियों से जुड़ी हुई है। अविभाजित मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में 1960-65 के दौर में तिब्बती नागरीक छत्तीसगढ़ में शरण लेने पहुंचे तब वह अपनी विरासत भी सहेज कर लाए थे। उस दौरान उनके पास रोजगार का कोई अन्य जरिया नहीं था तब उन्होंने कार्पेट बुनने का काम शुरू किया। इस काम में आस-पास रहने वाले लोगों की भी मदद ली। 20 सालों तक उनका व्यावसाय अच्छा रहा। नई पीढ़ी के साथ कालीन निर्माण का रूझान कम होता गया। 1995 के आते तक छत्तीसगढ़ का कालीन उद्योग लगभग बंद हो गया। उस दौरान मध्यप्रदेश राज्य हस्तशिल्प विकास निगम ने इस व्यवसाय को पुनः पटरी पर लाने का प्रयास किया।

छत्तीसगढ़ के कालीन को इस तरह मिली पहचान

छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद से 2019 तक छत्तीसगढ़ में कालीन का निर्माण पूरी तरह से बंद था। 2019 नवंबर से छत्तीसगढ़ के कालीन उद्योग को बढ़ावा देने छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विभाग ने नए सिरे से प्रयास किया। आज छत्तीसगढ़ में 80 से अधिक बुनकर हैं जो प्रदेश में आकर्षक कालीन बुन रहे हैं। इतना ही नहीं छत्तीसगढ़ में बने कालीन की मांग बड़े-बड़े कॉर्पोरेट घराने में भी हो रही है। इसका सारा श्रेय आईएएस अधिकारी एवं राज्य शासन के ग्रामोद्योग विभाग की प्रमुख सचिव डॉ. मनिंदर कौर द्विवेदी को जाता है। उनकी जानकारी में था कि छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग के रघुनाथपुर में कालीन का निर्माण होता था। फिर क्या था उन्होंने इसे फिर से जिंदा करने के लिए सतत प्रयास किया। वर्तमान में छत्तीसगढ़ कालीन निर्माण के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश के समकक्ष आ खड़ा हुआ है।

वर्तमान में 80 से अधिक कारीगर तैयार कर रहे हैं कार्पेट

राज्य के सरगुजा जिले में हांथों से बनाए गए कार्पेट इन दिनों खासा डिमांड में हैं। कोरोना काल में जहां पूरे देश में लोगों की नौकरियाँ जा रही थीं, वहीं दूसरी ओर प्रदेश के सरगुजा जिले में ‘स्वरोजगार योजना’ के तहत सैकड़ों युवाओं को रोजगार मिला है। सरगुजा संभाग के मैनेजर राजेंद्र रजवाड़े ने गांव-गांव जाकर बुनकरों से मुलाकात कर उन्हें कार्पेट निर्माण के साथ स्वरोजगार योजना की जानकारी दी। इस योजना के तहत राजेंद्र रजवाड़े ने अबतक लगभग 80 से ज्यादा लोगों को रोजगार से जोड़ा है। जो कालीन का निर्माण कर रहे हैं।

सबसे पहले राजेंद्र रजवाड़े ने रघुनाथपुर में 20 लोगो को ट्रेनिंग दिया और उन्हें रोजगार दिया गया। उसके बाद दरिमा गाँव के 20 लोगों को प्रशिक्षित किया और रोजगार दिलाया। इसी क्रम में सरगुजा के गंगापुर के 20 लोगों को ट्रेनिंग देकर रोजगार से जोड़ दिया गया है। इस तरह मुहीम के तहत अब तक लगभग 100 लोगों को रोजगार का लाभ मिल रहा है। वहीं आने वाले समय में सरगुजा संभाग में 500 लोगों को इस योजना से जोड़ा जाएगा। कारीगरों को 250-300 रुपए प्रतिदिन मेहनताना भी दिया जाता है।

हो रही है डिजिटल मार्केटिंग

यदी आप भी छत्तीसगढ़ में बने कालीन खरीदना चाहते हैं तो फ्लिपकार्ट, अमेजन, खादी इंडिया और गोकूप्स की साइट पर जाकर ऑनलाइन खरीदारी कर सकते हैं। इसके अलावा कार्पेट के लिए बी2बी मार्केटिंग भी की जा रही है। साथ ही वाट्सएप के जरिए भी मार्केटिंग की जा रही है। लाल बहादुर शास्त्री आईएएस एकेडमी मसूरी में 70 कार्पेट के ऑर्डर को भी पूरा किया जा चुका है। साथ ही भारत सरकार की संस्था ट्राइफेड में भी छत्तीसगढ़ में बुने गए कालीन भेजे गए हैं।

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