पाठ्य पुस्तक निगम के ठेके में अचानक बढ़ गई 35% की दर, निगम पर पड़ेगा 7 से 8 करोड़ का अतिरिक्त बोझ
पाठ्य पुस्तक निगम के ठेके में अचानक बढ़ गई 35% की दर, निगम पर पड़ेगा 7 से 8 करोड़ का अतिरिक्त बोझ

रायपुर। पाठ्यपुस्तक निगम में शिक्षा सत्र 2022–23 के निःशुल्क किताबों के मुद्रण की वित्तीय निविदा खुल चुकी है। इस बार पेपर की गुणवत्ता में खेल करने की बजाय प्रिंटिंग की दर ही लगभग 35 % बढ़ा दी गई है। ठेकेदारों ने जिस तरह लगभग एक सामान दर भरा है, उससे यह साफ़ नजर आ रहा है कि सुनियोजित ढंग से रिंग बनाकर टेंडर भरा गया है।

पिछली बार यह थी दर…

जानकार बताते हैं कि पाठ्य पुस्तक निगम में पिछले वर्ष प्रति फार्मा लगभग 23 पैसे का दर था।अभी तीन महीने पहले ही 2021-22 के सारे प्रिंटिंग के कार्य इसी दर पर पूरे हुए, मगर 2022- 23 शिक्षा सत्र के लिए यही दर बढ़ाकर 23 पैसा औसत से बढ़ाकर लगभग 30 पैसा प्रति फार्मा औसत कर दिया गया है।

ठेकेदारों की एक समान दर कैसे आयी..?

दरअसल पाठ्य पुस्तक निगम के इस टेंडर में सारे प्रिंटर ने न्यूनतम दर 30 पैसा या उससे अधिक भरा है। ऐसा कैसे संभव हुआ, यह जानकार लोग अच्छी तरह समझते हैं, लेकन यह आम लोगों की समझ में नहीं आएगा। माना जा रहा है कि ऐसा प्रिंटर्स का कॉर्टेल बना कर किया गया है। प्रिंटर्स ने पिछले बार की दर 23 पैसे औसत से लगभग 7 से 8 पैसे बढाकर कीमत लगाई है। यह दर लगभग 35% ज्यादा होती है। ठेके के मुताबिक केवल इतना दर बढ़ा दिए जाने भर से पाठ्य पुस्तक निगम के ऊपर 7 से 8 करोड़ रूपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
एक प्रिंटर सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पिछले वर्ष मीनल प्रिंटिंग प्रेस में अवैध प्रिंटिंग की शिकायत पर बी के प्रेस जो मूलतः बिहार के रहने वाले हैं, उन्हें इस टेंडर में खेल करने की जिम्मेदारी दी गयी है, जिसके द्वारा कार्टेल के ठेकेदारों को टेंडर भरे जाने के सम्बन्ध में दिशा-निर्देश दिए गए हैं, ताकि न्यूनतम दर लगभग एक सामान ही रहे।

दूसरे राज्यों की दरें इससे भी कम

बता दें कि पाठ्य पुस्तक निगम की दूसरे राज्यों में छपाई की दरें छत्तीसगढ़ से भी कम हैं। उड़ीसा में पहले के मुकाबले छपाई की दरों में 40% की कमी आयी है, वहीं मध्य प्रदेश में इसी काम की दर 12 से 14 पैसे है। जबकि झारखण्ड में छपाई का काम कागज की आपूर्ति के साथ ही दिया जाता है। इससे साफ़ झलकता है कि छत्तीसगढ़ में पाठ्य पुस्तक निगम के अधिकारी अपनी सुविधा और आवक के हिसाब से नियम-शर्तें और दरें तय करते हैं।

अपनों को किया गया उपकृत

बताया जा रहा है कि कुछ प्रिंटर को ऑन लाइन निविदा में पूरे पेपर नही होने के बाद भी पात्रता की श्रेणी में डाल दिया गया है। वैसे भी पाठ्य पुस्तक निगम का इतिहास रहा है कि यहां की निविदा की जांच विगत दस वर्षों से चलती आ रही है। और माना जा रहा है कि इतिहास एक बार फिर दुहरायेगा। चाहे मिंज रहे हों या सुभाष मिश्रा या कि अशोक चतुर्वेदी, ठीक उसी प्रकार आने वाले समय में किस-किस अधिकारी के ऊपर आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो द्वारा प्रकरण दर्ज किया जाएगा यह तो भविष्य के गर्त में है, पर पुराने अनुभव ये बताते हैं कि ऐसा हो कर ही रहेगा। सारी तैयारियां धीरे धीरे की जा रही हैं और जब भी सही समय आएगा निगम के बोतल से भ्रष्टाचार का जिन्न बाहर निकलेगा, क्योंकि पुस्तके कभी भी इस रूप में नही आती कि खाद या बीज बनकर पानी मे मिल जाएं, जैसा कि कृषि विभाग में कारनामे होते है।

EOW के घेरे में पहले से ही हैं वर्तमान MD

वर्तमान प्रबंध संचालक वैसे भी आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो की जद में पहले से ही हैं, अतः उन्हें सोच समझकर निर्णय लेना होगा अन्यथा एक दो प्रकरण बनने से गड़बड़ी को नहीं रोका जा सकेगा। सूत्र तो यह भी बताते हैं कि मुद्रकों से वसूली के लिए पटना के प्रिंटर को अधिकृत कर दिया गया है।

बहरहाल देखना यह है कि इस तरह की गड़बड़ी को संज्ञान में लेते हुए सरकार के नुमाइंदे इस पर अंकुश लगते हैं या फिर खुद भी इस व्यवस्था में शामिल हो जाते हैं।

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