पटना। बिहार सरकार आत्मरक्षा के लिए गन को बढ़ावा देने और हथियारों का लाइसेंस जारी करने के पक्ष में नहीं है जिससे मुंगेर में देश की सबसे पुरानी गन फैक्टरी के अस्तित्व पर खतरा गहराता जा रहा है। फैक्टरी एरिया में गन बनाने वाली 36 यूनिट हैं। आज यह इलाका सुनसान पड़ा है और वहां पड़ी गन धूल चाट रही हैं। गन की मांग में भारी कमी के कारण अधिकांश शाखाएं खामोश हो चुकी हैं।  
बैजनाथ ऐंड कंपनी के मालिक संजय कुमार ने कहा, ‘1930 के दशक में मेरे पूर्वज फोर्ट इलाके के करीब सड़क किनारे गन बेचा करते थे। उस जमाने में करीब के मक्सासपुर गांव में हर घर में गन बनती थीं।’ कंपनी को 1950 में गन बनाने का लाइसेंस मिला था और फैक्टरी एरिया में उसने सबसे ज्यादा बंदूकें बेची हैं।

मुंगेर में किसने शुरू करवाया ये कारोबार:

मुंगेर में 29 अप्रैल को चौथे चरण में मतदान होगा। इस शहर को सत्ता का पुराना केंद्र माना जाता है। मुंगेर 17वीं शताब्दी में तब सुर्खियों में आया था जब बंगाल के अंतिम नवाब कासिम अली खान ने अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से मुंगेर स्थानांतरित की थी। खान ने यहां गन बनाने का काम शुरू कराया था और तबसे यह परंपरा बदस्तूर जारी है। किसी जमाने में यह धंधा मुंगेर में कुटीर उद्योग बन गया था। लेकिन बिहार में अपराध बढ़ने के साथ ही गन के अवैध कारोबार पर भी कड़ी कार्रवाई हुई। गन फैक्टरी जिलाधिकारी के कार्यालय से महज एक किलोमीटर दूरी पर है लेकिन माओवादियों के डर से यहां कोई साइन बोर्ड नहीं लगा है। आज गन बनाने का कारोबार खस्ताहाल स्थिति में है। बैजनाथ इकाई में सातों कामगार हड़ताल पर हैं। वे 30 फीसदी वेतन बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। कुमार ने कहा, ‘उनकी मांग जायज है लेकिन जब कारोबार ही नुकसान में चल रहा है तो आय बढ़ाना मुश्किल है। मैंने उन्हें केवल इसलिए रखा है क्योंकि मुझे दूसरे स्रोतों से आय होती है।’   2017 में उन्होंने 140 गन बेची थीं लेकिन 2018 में यह संख्या 46 पर आ गई और इस साल तो वह अब तक केवल 20 बन ही बेच पाए हैं। केंद्र सरकार ने इस यूनिट को हर साल 119 गन बनाने की अनुमति दी है। मुंगेर की भौगोलिक-सामरिक स्थिति के कारण यहां शुरूआती दिनों में गन बनाने के काम को काफी बढ़ावा मिला। यह शहर उत्तर, पश्चिम और दक्षिण की ओर से गंगा से घिरा हुआ है जबकि पूर्व में खडगपुर की पहाडिय़ां हैं। 1962 के भारत-चीन युद्घ के दौरान रक्षा मंत्रालय को 410 बोर मस्कट की जरूरत थी। मुंगेर की गन फैक्टरी ने नमूने के तौर पर तीन 410 बोर मस्कट और तीन मैरी लाइट पिस्टल की आपूर्ति की थी। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक मुंगेर सिगरेट, गन और दालमोठ के लिए मशहूर है। दो दशक पहले तक मुंगेर फैक्टरी स्थानीय लोगों के लिए रोजगार की मुख्य स्रोत थी। यहां कम से कम 2,200 लोगों को रोजगार मिला था। वर्ष 1885 में स्थापित सौखी ऐंड संस के मालिक तारकेश्वर शर्मा कहते हैं कि अब चार-पांच चालू यूनिटों में केवल 20-25 कर्मचारी रह गए हैं।

धीरे-धीरे खत्म हो रही यूनिट्स:

मुंगेर की सभी यूनिटों को हर साल करीब 13,000 गन बनाने की अनुमति है। लेकिन कुछ ऐसी भी यूनिट हैं जो पिछले कुछ वर्षों से एक भी गन नहीं बेच पाई हैं। इनमें बीरो ऐंड कंपनी भी शामिल है जो पिछले दो साल से एक भी गन नहीं बेच पाई है। इसके मालिक 46 साल के उत्तम कुमार ने कहा कि उनके पास करीब 200 गन हैं जिनकी कीमत करीब 40 लाख रुपये है। इनमें से कुछ बंदूकें तो एक दशक पहले बनाई गई थीं। उत्तम ने कहा कि अगर उन्हें दूसरे कारोबार से कमाई नहीं होती तो वह इस यूनिट को बंद कर चुके होते। उनकी खेती और रियल एस्टेट का भी कारोबार है जिससे उन्हें अच्छी कमाई होती है। 2016 तक उनकी यूनिट में नौ लोग काम करते थे लेकिन अब यह संख्या केवल एक रह गई है। उन्होंने कहा, ‘पांच दशक पहले मेरे दादा अमीरों पर लगने वाला कर दिया करते थे। उनका यह कारोबार खूब चलता था। लेकिन आज हमारी ऐसी हैसियत नहीं है।’ उनकी यूनिट के पास 389 डबल बैरल शॉट गन और सिंगल बैरल ब्रीचिंग लोडिंग गन बनाने का लाइसेंस है। मुंगेर फैक्टरी में अधिकांश बंदूकें हाथ से बनाई हुई हैं और इनमें मशीन का कम से कम इस्तेमाल होता है।  

लोग यहां आते थे बंदूकें खरीदने:

ठाकुर नरेश सिंह मुंगेर शहर की सबसे बड़ी गन थोक दुकानों में से एक के मालिक हैं। उनकी दुकान 1964 से चल रही है। वह मुंगेर में गन बनाने के धंधे के पीछे की राजनीति के बारे में बताते हैं। उन्होंने कहा, ‘जब कांग्रेस सत्ता में थी तो यह कारोबार खूब फलफूल रहा था। 1980 के दशक में मुंगेर में भी कांग्रेस का बोलबाला था। 1990 के दशक में जब राम जन्मभूमि आंदोलन चरम पर था और कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो गन की बहुत मांग थी। उन दिनों गनों की कीमत पांच गुना बढ़कर 20,000 रुपये तक पहुंच गई थी।’ इन बंदूकों के कई खरीदार उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के थे। साथ ही बिहार से भी कई लोग गन खरीदने आते थे। उन्होंने कहा, जब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने तो हथियारों के लाइसेंस के खिलाफ बड़ी कार्रवाई हुई। इसी कारण से गन उद्योग खतरे में है। सिंह ने कहा कि उन्होंने पिछले एक साल से एक भी गन नहीं बेची है। गनों की मरम्मत या दूसरे लोगों की गनों को सेफहाउस में रखने से ही उनकी कमाई होती है।

बंदूकों के कारण बढ़े अपराध :

गन फैक्टरी के कारण इस क्षेत्र से बंदूकों को अवैध तरीके से दूसरी जगह भी भेजा गया जिससे बिहार में अपराधों में काफी इजाफा हुआ। मुंगेर पुलिस ने शहर में एके-47 बंदूकों की बरामदगी के मामले में पिछले सप्ताह युवा राष्ट्रीय जनता दल की जिला इकाई के अध्यक्ष मोहम्मद परवेज चांद को गिरफ्तार किया। पुलिस ने पिछले साल से जिले में 22 अवैध एके-47 की बरामदगी की है। राष्टÑीय राजधानी क्षेत्र सहित देश के दूसरे इलाकों में हुए अपराधों में मुंगेर से लाई गई अवैध गन के इस्तेमाल का पता चला है। गन बनाने वाली एक अन्य इकाई आर्मस्ट्रॉन्ग एंड कंपनी के मालिक 60 साल के ज्ञान प्रकाश शर्मा का दावा है कि वैध लाइसेंस रखने वाले लोगों के अपराध में लिप्त होने की कोई खबर नहीं आई है। गन बनाने वाली अधिकांश यूनिटों के मालिकों का कहना है कि हथियार रखने के लिए उदार लाइसेंस व्यवस्था होनी चाहिए। इससे हथियार रखने वाला व्यक्ति सुरक्षा एजेंसियों की नजरों में रहेगा और इस तरह के कदम से रोजगार में भी बढ़ोतरी होगी। लोगों को बैंकों और देश के दूसरे संवेदनशील संस्थानों में सुरक्षा गार्ड की नौकरी मिल सकती है।   मुंगेर की अर्थव्यवस्था में गन फैक्टरी की अहम भूमिका हुआ करती थी। अंग्रेजों ने देश में पहली रेल लोकोमोटिव कार्यशाला खोलने के लिए मुंगेर जिले के जमालपुर को चुना क्योंकि यहां दक्ष कामगार उपलब्ध थे। ठाकुर नरेश सिंह ने कहा, मुंगेर की पहचान गन फैक्टरी थी। वह दूसरे धंधे में नहीं जाना चाहते हैं। उन्हें उम्मीद है कि मुंगेर की गन फैक्टरी अतीत की याद बनकर नहीं रह जाएगी।   Chhattisgarh से जुड़ी Hindi News के अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें  Facebook पर Like करें, Twitter पर Follow करें  और Youtube  पर हमें subscribe करें।