नई दिल्ली। देश की राजधानी में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह आंतरिक सुरक्षा को लेकर बैठक कर रहे हैं। उनकी बैठक में एनएसए अजीत डोभाल भी मौजूद हैं। उधर पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी को दिल्ली तलब किया गया है। ऐसे में पश्चिम बंगाल में धारा 356 लागू होने के आसार नजर आने लगे हैं।

उत्तर 24 परगना में हुई भाजपा कार्यकर्ताओं से भन्नाई भाजपा एक बार फिर बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकती है। ऐसे में भाजपा का कितना फायदा होगा और तृणमूल का कितना नुकसान। इसी का आंकलन करती टीआरपी की ये खास रिपोर्ट-

बंगाल में धारा 356 की मांग करते हैं : विजयवर्गीय-

पश्चिम बंगाल में पार्टी के नेताओं की हत्याओं पर आग बबूला हुई बीजेपी ने राष्ट्रपति शासन लागू करने की चेतावनी दे दी है। पार्टी के महासचिव और पश्चिम बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने सोमवार को दो टूक लहजे में कहा कि अगर बंगाल में ऐसे ही हालात रहे तो केंद्र को हस्तक्षेप करना पड़ सकता है, इसलिए हम धारा 356 की मांग करते हैं। कैलाश विजयवर्गीय का यह बयान, उत्तर 24 परगना जिले में कार्यकर्ताओं की हत्या के बाद पूरे बंगाल में काला दिवस मनाए जाने के दौरान आया है।

कब लागू हो सकता है राष्ट्रपति शासन :

संविधान के जानकार कहते हैं कि अगर किसी राज्य में कानून-व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो गई हो। वहां के राज्यपाल इसकी पुष्टि करते हुए रिपोर्ट भेजें और राष्ट्रपति उस रिपोर्ट को स्वीकार करें तो फिर राष्ट्रपति शासन लग सकता है।

चूंकि संविधान में कहा गया है कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करता है। ऐसे में मंत्रिपरिषद की सिफारिश पर भी राष्ट्रपति धारा 356 के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर किसी राज्य की सरकार को बर्खास्त कर सकते हैं। ध्यान रहे कि किसी राज्य में जब पूरी तरह शासन व्यवस्था फेल होता दिखे, तब ही ऐसे कदम उठाए जाते हैं।

मोदी राज में दो बार हो चुका धारा 356 का इस्तेमाल:

पिछली मोदी सरकार ने दो बार धारा 356 का इस्तेमाल कर सरकारों को बर्खास्त किया था। मार्च 2016 में उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाकर कांग्रेस की हरीश रावत सरकार बर्खास्त कर दी गई थी। जिसे उत्तराखंड हाईकोर्ट ने इसे गलत ठहराया। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो यहां भी सरकार की हार हुई।

इसी तरह अरुणाचल प्रदेश में भी निर्वाचित सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाने वाले फैसले को 13 जुलाई 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। इस प्रकार देखें तो बीजेपी ने दो बार दो राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाया, मगर दोनों बार कोर्ट ने खारिज कर दिया। इसे बीजेपी के लिए झटका माना गया।

भाजपा को क्या होगा फायदा :

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि धारा 356 का इस्तेमाल दोधारी तलवार है। इसका बीजेपी को फायदा भी हो सकता है और नुकसान भी हो सकता है। अब अगर लाभ की बात करें तो इस वक्त पश्चिम बंगाल में बीजेपी का माहौल बना हुआ है। यहां 2014 में जहां सिर्फ दो सीटें मिलीं थीं, वहीं इस बार 18 सीटें मिलीं। वहीं सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के खेमे में लगातार सेंधमारी कर बीजेपी नेताओं को तोड़ने में लगी है।

ऐसे में माना जा रहा है कि राष्ट्रपति शासन लागू करने के बाद जल्द चुनाव होने पर बीजेपी को फायदा मिल सकता है। नहीं तो 2021 तक मामला खिंचने पर बीजेपी को नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। इसकी वजह ये है कि इस दौरान ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में डैमेज कंट्रोल कर सकती हैं।

या फिर अर्थव्यवस्था आदि मुद्दों पर केंद्र सरकार के घिरने के बाद बीजेपी के पक्ष में बना माहौल आगे खराब हो सकता है। इससे बीजेपी समय पूर्व चुनाव कर बने-बनाए माहौल को भुनाने की कोशिश में है।

 

बीजेपी को क्या-क्या हो सकता है नुकसान :

कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पश्चिम बंगाल में धारा 356 के इस्तेमाल की बीजेपी को कीमत भी चुकानी पड़ सकती है। विपक्ष एक बार फिर लोकतंत्र पर चोट की बात कहते हुए मुद्दा बनाएगा, वहीं ममता बनर्जी जनता खुद को विक्टिम साबित कर जनता की सहानुभूति हासिल कर सकती हैं।

उत्तराखंड या अरुणाचल प्रदेश की तरह अगर पश्चिम बंगाल के मामले में भी कोर्ट ने सरकार के फैसले को खारिज किया तो बीजेपी के लिए झटका होगा।

एक राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि दलों के बीच आपसी मतभेद और तनाव के आधार पर ही राष्ट्रपति शासन के फैसले नहीं लिए जाने चाहिए। धारा 356 के इस्तेमाल से पहले विधिवत प्रशासनिक और संवैधानिक पड़ताल जरूरी है।

देश में अब तक कई बार धारा 356 का सरकारों ने दुरुपयोग किया है। इससे राजनीतिक दलों का कितना हित हुआ, यह तो नहीं पता, मगर राज्यों का जरूर अहित हुआ है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार बर्खास्त होने पर विपक्ष को बीजेपी के खिलाफ एक मुद्दा मिलेगा, और वे एक बार फिर एकजुट हो सकते हैं।

 

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