चंद्रकांत सिंह क्षत्रिय
दंतेवाड़ा।
बैलाडीला की खदान डिपॉजिट नंबर 13 को लेकर एक बार फिर आदिवासी पंचायत संघर्ष समिति के बैनर तले मजबूती के साथ लामबंद होने की तैयारी में है।

प्रशासन की जांच से आदिवासी समाज के लोग जरा भी खुश नजर नहीं आ रहे हैं। और एक वृहद आंदोलन की रणनीति में मैं आज दंतेवाड़ा में नए धर्मशाला में एक साथ एकत्रित होकर प्रेसवार्ता कर उन्होंने जानकारी दी है।

सरकारी जांच से खुश नहीं हैं आदिवासी:

संघर्ष समिति के सदस्यों एवं पदाधिकारियों ने यह स्पष्ट कर दिया है। कि जांच में प्रशासन हमें गुमराह कर रहा है इस बार इसलिए एक नई रणनीति के तहत अपने मजबूत इरादों के साथ अपना विरोध प्रदर्शन करेंगे।

संबंधित समिति के सदस्यों का कहना है कि 15 दिनों की मोहलत प्रशासन ने हमसे मांगी थी । 6 दिन बीतने को आ गए हैं, और इस बात का पता भी नहीं चल रहा है कि प्रशासन ने अब तक क्या पहल किया।

पंचायत सचिव अभी तक गायब क्यों है? क्या कहीं प्रशासन ही उसे नहीं छुपा रहा है ?जांच समिति में संघर्ष समिति के सदस्यों के 8 सदस्यों का जांच समिति में लिए जाना तय था। हमने प्रशासन को 13 सदस्यों की टीम को शामिल करने के लिए आवेदन भी किया था।

परंतु इसमें से 8 क्या एक भी सदस्य का जांच समिति में नहीं लिया जाना प्रशासन के दोगलेपन को उजागर करता है।फर्जी ग्राम सभा को अनुमोदन करने के लिए पंचायत सचिव बसंत नायक दो माह से गायब है ।और ऊपर से जिस ग्राम सभा का प्रस्ताव अनुमोदित करके बसंत नायक के दिया है ,106 लोगों के नामों में अधिकांश लोगों के अंगूठे के निशान हैं।

प्रशासन ने जांच को गुमराह करने के लिए सचिव को गायब कर दिया है। यदि किसी पंचायत के सचिव को इतने दिनों तक अनुपस्थित रखा जाए तो उस पर अभी तक कार्रवाई हो जाती।

लेकिन इस सचिव बसंत नायक पर अभी तक प्रशासन क्यों मेहरबान है? साथ ही साथ पेड़ों की कटाई पर वन विभाग को भी आड़े हाथों लेते हुए पंचायत संघर्ष समिति के सदस्यों एवं आदिवासी नायकों ने एक स्वर पर वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों पर यह आरोप लगाया है कि इतने बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई कर दी जाती है और प्रशासन की आंख के सामने अभी तक इतने बड़े पैमाने पर वनों की कटाई करे जाने पर ना ही जिला प्रशासन और ना ही वन विभाग ने अभी तक कोई कड़ी कार्यवाही नहीं की है।

सबसे बड़ी विशेष ग्राम सभा 13 से 16 जून के बीच में प्रत्येक ग्राम में आयोजन होना था उसमें प्रमुख दो बिंदुओं का होना आवश्यक था । पहला वन अधिकार समिति के पूर्व गठन और ग्राम सभा का गठन ।

आधिकारिक तौर पर ग्राम सभा का गठन ना होना पेशा कानून का उल्लंघन करने के बराबर है ।जिसका आने वाले समय में भोले भाले ग्रामीण आदिवासी भाइयों को जिला प्रशासन गुमराह करके अपना पक्ष मजबूत करना चाह रहा है।

जिसका हम पुरजोर विरोध करते हैं ।और आने वाले समय में अगर हमारी मांग पर उचित कार्यवाही नहीं होती है तो हम लामबंद होकर एक विशाल जनसमूह के साथ अपना विरोध प्रशन करेंगे और अडानी ग्रुप को किसी भी कीमत पर लिंगराज पर्वत पर अधिकार नहीं करने देंगे।

 

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