रायपुर। न्यूनतम मजदूरी ( Minimum wage ) में मोदी सरकार ने 178 रुपए की न्यूनतम वृद्धि की है। धान की लागत मूल्य में वृद्धि के बावजूद समर्थन मूल्य में सिर्फ 65 रु की वृद्धि कर किसानों को निराश करने के बाद अब मोदी सरकार ने मजदूरों की आशाओं पर कुठाराघात किया है। प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री एवं संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि किसान के बाद अब मजदूर मोदी सरकार के निशाने पर है। मोदी सरकार को सिर्फ अंबानी-अदानी की फिक्र है, गरीबों से कोई सरोकार नहीं है।

न्यूनतम मजदूरी में न्यूनतम वृद्धि

उन्होंने कहा, न्यूनतम मजदूरी में मोदी सरकार ने की न्यूनतम वृद्धि की है। केन्द्रीय श्रम राज्य मंत्री संतोष गंगवार ( Union Minister of State for Labor Santosh Gangwar ) ने हाल में न्यूनतम मजदूरी की घोषणा कर सबको हैरत में डाल दिया। केन्द्र सरकार के श्रम विभाग ने न्यूनतम मजदूरी की दर 178 रुपए प्रतिदिन तय की है जो अब तक की प्रचलित दर से सिर्फ 2 रुपए ज्यादा है। इसमें हैरानी इसलिये है कि खुद श्रम मंत्रालय की विशेषज्ञ कमेटी ने अपने सर्वे और ढेर सारे मापदंडों को खंगालने के बाद न्यूनतम मजदूरी की राशि को करीब 200 रुपए बढ़ाकर 375 रुपए प्रतिदिन करने का सुझाव दिया था। सतपति कमेटी ने यह राशि तय करते वक्त बहुत सारे मापदंडों का अध्ययन किया था, जिसमें परिवार के सदस्यों को पौष्टिक भोजन की उपलब्धता, रोजमर्रा की जरूरत के खर्च भी शामिल थे।

वेतन बढ़ने की बजाय घटा है

शैलेश नितिन त्रिवेदी ( Shailesh Nitin Trivedi ) ने कहा, विशेषज्ञ समिति की मंशा यह थी कि किसी भी मजदूर को कम से कम 9750 रु महीना मिले। बजट के पहले पेश किए गए 2019 के इकोनॉमिक सर्वे में भी इस बात का जिक्र किया गया था कि अगर यह राशि बढ़ाई जाती है, तो देश में असमानता और गरीबी को घटाने में मदद मिलेगी। इन सारे तथ्यों को देखते हुये लोगों को उम्मीद थी कि केन्द्र सरकार न्यूनतम मजदूरी में अच्छी-खासी वृद्धि करने जा रही है पर हुआ उल्टा। जितनी वृद्धि की गई है, उसकी तुलना अगर इस दौरान बढ़ी महंगाई से की जाए तो पता चलेगा वेतन बढ़ने की बजाय घट गया है।

कंपनियों के दबाव के चलते नहीं हुई न्यूनतम वेतन में वृद्धि

उन्होंने आगे कहा कि 2019 के इकोनॉमिक्स सर्वे में भी इस बात का जिक्र है कि देश के 37 राज्य और केन्द्र शासित प्रदेशों में केवल पांच राज्य ऐसे हैं, जहां पर न्यूनतम वेतन 178 रुपए से कम है। इसके उलट 32 राज्य या यूं कहिए देश के 86 फीसदी राज्य आज भी केन्द्र सरकार की नई दर से कहीं ज्यादा राशि न्यूनतम वेतन के रूप में दे रहे है। छत्तीसगढ़ में ही यह राशि 240 रुपए और ओड़िसा में 280 रुपए है। दिल्ली में सबसे अधिक 538 रुपए प्रतिदिन मजूरी तय है। 178 रुपए में सरकार का कोई मंत्री 1 दिन परिवार के साथ गुजारा करके दिखा दे। यह आरोप भी लग रहे हैं कि उद्योगों और कंपनियों के दबाव की वजह से न्यूनतम वेतन में वृद्धि नहीं की गई।

न्यूनतम मजदूरी राशि में वृद्धि के बारे में सोचे सरकार

प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री एवं संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि अब सभी संगठनों को उम्मीद है कि सरकार सारे तथ्यों को देखते हुए न्यूनतम मजदूरी राशि में वृद्धि के बारे में सोचेगी, क्योंकि सरकार के इस फैसले की वजह से कहीं ज्यादा राशि दे रहे राज्य चाहे तो अपने वर्तमान न्यूनतम वेतन में कटौती भी कर सकते है। न्यूनतम मजदूरी के मामले में एशिया पेसिफिक विजन के 22 देशों की बात करें, तो भारत बहुत नीचे 19 नंबर पर आता है। भारत ( India ) से कम मजदूरी देने वाले देशों में पाकिस्तान, बांग्लादेश और मंगोलिया है। कांग्रेस ने मांग की है कि मोदी सरकार अपनी ही विशेषज्ञ कमेटी के सुझावों पर दोबारा विचार करे और उन्हें स्वीकार करने की घोषणा करें।

 

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