रायपुर। फोन टेपिंग मामले में आरोपी बनाए गए आईपीएस मुकेश गुप्ता (IPS Mukesh Gupta) और रजनेश सिंह (Rajnesh Singh) के निलंबन की अवधि बढ़ा दी गई है। गृह विभाग ने आदेश जारी कर निलंबन की अवधि छह महीने के लिए बढ़ा दी है। बता दें कि दोनों आईपीएस अधिकारियों पर नान घोटाला मामले में जांच की दिशा बदलने का आरोप हैं।

इस मामले में ईओडब्ल्यू (EOW) ने मुकेश गुप्ता (Mukesh Gupta) और रजनेश सिंह (Rajnesh Singh) के खिलाफ धारा 166, 166 A,(B) 167, 193, 194, 196, 201, 218, 466, 467, 471, 120B तथा भारतीय टेलिग्राफ एक्ट 25, 26 सहपठित धारा 5 (2) के तहत मामला पंजीबद्ध किया गया है।

निलंबन अवधि में 180 दिनों की वृद्धि

ईओडब्ल्यू (EOW) में एफआईआर (FIR) दर्ज होने के बाद राज्य शासन ने अखिल भारतीय सेवा (अनुशासन तथा अपील) नियम 1969 के नियम 3(1) के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए 9 फरवरी 2019 को मुकेश गुप्ता (IPS Mukesh Gupta) और रजनेश सिंह (Rajnesh Singh) को निलंबित किया था। निलंबन की समीक्षा के दौरान अखिल भारतीय सेवा (अनुशासन तथा अपील) नियम 1969 के नियम 3(8) (बी) के तहत 9 अप्रैल 2019 को निलंबन की अवधि 120 दिनों तक के लिए बढ़ा दी गई थी। गृह विभाग ने नियम 3(8) (सी) की अनुसूची शेड्यूल 1(बी) के प्रावधान के तहत गठित समीक्षा समिति ने एक बार मुकेश गुप्ता और रजनेश सिंह के निलंबन की अवधि को बढ़ाने की अनुशंसा की थी, जिसके बाद निलंबन अवधि में 180 दिनों की वृद्धि की गई है।

प्रभावशाली लोगों को बचाने का आरोप

बता दें कि बहुचर्चित नान घोटाले (NAN Scam) मामले में कई प्रभावशाली नेताओं और अधिकारियों के नामों का खुलासा हुआ था। इस मामले की जांच मुकेश गुप्ता (IPS Mukesh Gupta) ही कर रहे थे। ऐसे में अब आरोप लगे हैं कि उन्होंने जानबूझकर जांच की दिशा बदली है और कई बड़े चेहरों को बचाने का काम किया। उस दौरान रजनेश सिंह ईओडब्ल्यू (EOW) में ही एसपी के रूप में काम देख रहे थे। कांग्रेस की सत्ता आते ही इस मामले की जांच नए सिरे से की गई। ईओडब्ल्यू ने डीजी मुकेश गुप्ता एवं एस.पी. रजनेश सिंह के खिलाफ धारा 166, 166 A,(B) 167, 193, 194, 196, 201, 218, 466, 467, 471, 120B तथा भारतीय टेलिग्राफ एक्ट 25, 26 सहपठित धारा 5 (2) के तहत मामला पंजीबद्ध किया गया था।

मुकेश गुप्ता और रजनेश सिंह पर आरोप है कि नान घोटाले (NAN Scam) की जांच के दौरान मिले डायरी के कुछ पन्नों के इर्द-गिर्द ही जांच केंद्रीत रखी गई। जबकि डायरी के कई पन्नों में प्रभावशाली लोगों के नाम लिखे गए थे। इन्हें जांच के दायरे में नहीं लाया गया।

 

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